भोपाल, ग्वालियर हाईकोर्ट द्वारा प्रदेश में नगरीय निकायों में आरक्षण को लेकर दिए गए स्टे के बाद अब दूसरे नगर निगम, नगर पालिका और परिषदों के चुनाव पर भी संकट के बादल गहरा गए हैं। जब तक प्रदेश सरकार स्टे वाले निकायों पर फिर से आरक्षण नहीं करवा देती, तब तक दूसरे चुनाव भी नहीं हो सकेंगे। इस पर सुनवाई अप्रैल में होना है और सरकार को भी इसकी तैयारी में वक्त लगेगा। इससे लग रहा है कि प्रदेश में अप्रैल में होने वाले निकाय चुनाव बारिश तक टल जाएंगे।
पिछले साल 10 दिसम्बर को सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर नगरीय निकाय के अध्यक्ष और महापौर के लिए आरक्षण कर दिया था। इसी को लेकर कल ग्वालियर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई है, जिसमें सरकार द्वारा रोटेशन पद्धति की अनदेखी करने का तर्क दिया गया है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने इस मामले में स्थगन दे दिया है। एडवोकेट मानवर्धनसिंह तोमर द्वारा यह याचिका दाखिल की गई है। तोमर ने कोर्ट के समक्ष बताया कि रोटेशन की अनदेखी से एक वर्ग का व्यक्ति लगातार दो बार चुनाव लड़ सकेगा और गैर-आरक्षित वर्ग के व्यक्ति को प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिलेगा। हालांकि यह याचिका उज्जैन व मुरैना नगर निगम के साथ अन्य 79 नगर पालिका और नगर परिषद के लिए लगाई गई थी, जिस पर स्टे दे दिया गया। मामले में अगली सुनवाई अप्रैल में होना है। इसके पहले सरकार को जवाब भी पेश करना है। सरकार की ओर से क्या जवाब दिया जाता है यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मई में परीक्षाओं के कारण चुनाव नहीं हो सकते और बारिश में चुनाव करवाने का प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसे में चुनाव 6 महीने टल सकते हैं।
ऐसे पड़ेगा दूसरे निकायों पर असर
हाईकोर्ट ने कुछ निकायों में आरक्षण को लेकर स्टे दिया है, लेकिन इसका असर अन्य निकायों के चुनावों पर भी पड़ेगा। कानून के जानकारों के मुताबिक 2011 की जनसंख्या को ही आधार बनाकर महापौर या अध्यक्ष का आरक्षण करवाया जाएगा और इसमें सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण का पालन करना होगा। प्रदेश में 7 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 22 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा है और बाकी सीटें अनारक्षित रहती हैं। अगर सरकार आरक्षित सीटों पर फिर से आरक्षण करवाती है तो दूसरी सीटों पर आरक्षित वर्ग के आरक्षण का गणित गड़बड़ा जाएगा। इसलिए दूसरी सीटों के लिए भी नए सिरे से आरक्षण करना पड़ेंगे।