मांस के नाम पर खा रहे जैविक कचरा, जहां नहीं बिकना चाहिये वहां कट रहे मुर्गा और बकरा

जबलपुर, संस्कारधानी में इस समय बल्र्ड फ्लू की दहशत है। मांस और मछली के साथ पोल्ट्री उत्पाद की बिक्र्री में एकदम से गिरावट आ गई है। पोल्ट्री उत्पादों के दाम भी घट गये हैं। जबलपुर में इस समय बर्ड फ्लू की दहशत तो है ही साथ में इसके फैलने का खतरा भी सर्वाधिक हैं क्योंकि संस्कारधानी में मांस, मछली और चिकन के साथ वह सब भी खा लिया जाता है जो नहीं खाया जाना चाहिये। मुर्गा-बकरा काटे जाने के बाद जो जैविक वेस्ट निकलता है यहां वह भी खा लिया जाता है।
मुर्गे के पंजे बिकते हैं
मुर्गा काटे जाने के बाद उसके दोनों पंजे काटने वाले फेंकते नहीं हैं। उन्हें एक डिब्बे में रख लिया जाता है। मुर्गे के यह पंजे शहर का एक तबका खाता है। मुर्गे के दो पंजे के बदले बीस रूपये तक काटने वाले को मिल जाते हैं जबकि मुर्गे के पंजों में ही सर्वाधिक गंदगी लगी रहती है।
आंत और खाल तक नहीं छोड़ते
मांसाहारी लोग मुर्गे की आंते और खाल तक खाते हैं। चिकन की दुकान चलाने वाले मुर्गा छीलकर उसकी खाल रख लेते हैं। सुबह काटे गये मुर्गे की खाल को जिस डिब्बे में रखा जाता है उस डिब्बे में सुबह से लेकर शाम तक लाखों की संख्या में मक्खियां भिनभिनातीं रहती हैं। खाने वाले शाम के समय तब खाल खरीदने पहुंचते हैं जब मुर्गे की दुकान में ज्यादा भीड़ नहीं होती है। दस से बीस रूपये में एक खाल बेची जाती है। खाल खरीदने वाले उसमें लगे पंख नोंचकरअलग करते हैं और उसे पकाकर खा जाते हैं। आंतों को भी धोकर पका लिया जाता है।
बकरे की गोबर की थैली खाई जाती है
जबलपुर मेंं केवल मुर्गा काटे जाने के बाद निकलने वाले जैविक कचरे के अलावा बकरा काटे जाने के बाद निकले वाले जेैविक कचरे को भी खाया जाता है। बकरे के गोबर की थैली को पचौनी कहा जाता है। बकरा काटने वाला इसे वर्तमान में डेढ़ सौ रूपये तक में बेचता है।
जैविक कचरा जानलेवा हो सकता है
संस्कारधानी में जैविक कचरा बिक रहा है और लोग उसे खा भी रहे हैं इस संबंध में वेटनरी विश्व विद्यालय के विशेषज्ञों का कहना है कि बकरे और मुर्गे की हर चीज नहीं खाई जा सकती। मुर्गे के पंजे, आतें, और खाल का सुरक्षित निपटान किया जाना चाहिये। इसी तरह बकरे की गोबर की थैली को खाना जानलेवा भी हो सकता है।
गंदे नालों पर लगती है मांस-मछली की दुकानें
शहर में संचालित हो रही मांस-मछली की ज्यादातर दुकाने प्रदूषण नियंत्रण के मानदंडों पर खरा नहीं उतरतीं। करीब दो दर्जन मांस और मछली की दुकानें हीं ऐंसी मिलेंगी जिनमें प्रदूषण के मानदंडों का ध्यान रखा मांस-मछली बेची जाती है। शेष दुकानें तो गंदे बजबजाते नालों के ऊपर लगाई जातीं हैं। इन दुकानों में मुर्गें और बकरे हाईजीनिक तरीके से नहीं काटे जाते हैं।
नगर निगम इस ओर ध्यान दे
स्मार्ट सिटी का संचालन कर रहे नगर निगम के स्वास्थ्य अमले को इस ओर भी ध्यान देना चाहिये कि मांस, मछली की दुकानों में जैविक कचना न बिकने पाये। चिकन और मटन शॉप से जैविक कचरा कलेक्शन की विशेष वाहन के जरिये व्यवस्था होना चाहिये।
यह होना चाहिये
मांस-मछली के विक्रय के लिये निर्धारित मानदंडों के अनुसार दुकान की बार-बार धुलाई की जाना चाहिये और काटे गये मुर्गे और बकरे को खास तौर पर बनाये गये प्रâीजर में स्टोर कर रखना चाहिये। मांस-मछली की दुकान में बहुत ही बारीक जाली लगी होना चाहिये। बिक्री करने के लिये काटे जाने मुर्गे और बकरे की वेटरनरी डॉक्टर से जाँच करवाना अनिवार्य है।

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