भोपाल,(वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन ) अपेन्डिसाइटिस किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन यह अकसर 10 से 30 वर्ष की उम्र के बीच होता है। यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक आम है। यदि इसे बिना उपचार किए छोड़ दिया जाए तो इसमें मवाद या पस बन जाता है, जिसे अपेंडिक्यूलर लम्प कहा जाता है। ऐसी स्थिति में तुरंत ऑपरेशन करने की आवश्यकता होती है। इस दौरान अगर समय पर ऑपरेशन ना किया जाए तो लम्प फट सकता है और संक्रमण पूरे पेट में फैलने की आशंका बढ़ सकती है। यह रोगी के लिए बहुत गंभीर और कभी-कभी घातक हो सकता है, इसलिए इसके बारे में जानकारी भी जरूरी हो जाती है।
अपेंडिक्स में किसी प्रकार की बाधा अपेन्डिसाइटिस को जन्म देती है। यह बाधा आंशिक या फिर पूर्ण रूप से हो सकती है। पूर्ण बाधा आने पर आपातकालीन सर्जरी जरूरी हो जाती है। अपेंडिक्स में यह अवरोध अकसर मल के जमा होने के कारण होता है। इसके लिए बढ़े हुए लिम्फोइड, कीड़े, आघात और ट्यूमर जैसे अन्य कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं।आँतों में भोजन के कुछ कण जाने के कारण अपेंडिक्स में समस्या आ जाती हैं। फलों के बीज अपेंडिक्स में फंस जाते हैं इसके कारण अपेंडिक्स पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता हैं
लक्षणों की न करें अनदेखी
अपेन्डिसाइटिस होने पर रोगी को शुरुआत में पेट में दर्द होता है। यह दर्द नाभि के ऊपरी हिस्से से शुरू होता है और धीरे-धीरे नाभि के चारों तरफ महसूस होता है। अंत में यह शरीर की दाईं तरफ के लोअर अब्डोमन में जा ठहरता है।पेट दर्द के साथ उलटियां होना।अधिक संक्रमण होने पर बुखार होना। बुखार के साथ-साथ पेट दर्द और एक या दो बार उल्टी की स्थिति भी देखने को मिलती है।भूख में कमी आना।दस्त होन गैस पास करने में परेशानी आना।72 घंटे के भीतर ही इसकी सर्जरी करनी बेहद आवश्यक है।
कैसे करें निदान
सबसे पहले रक्त जांच के माध्यम से पता लगाया जाता है कि व्यक्ति अपेन्डिसाइटिस से ग्रस्त है या नहीं। यदि व्यक्ति को अपेन्डिसाइटिस की समस्या होती है तो व्यक्ति में टीएलसी(टोटल ल्यूकोसाइट काउंट) की मात्रा में वृद्धि पायी जाती है।
इस रोग का पता करने के लिए रोगी का फिजिकल टेस्ट किया जाता है। इस दौरान पेट के निचले दाहिने क्वाड्रन्ट में पीड़ा को देखा जाता है। अगर रोगी महिला गर्भवती है तो दर्द में वृद्धि हो सकती है।
अपेन्डिसाइटिस का निदान करने के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है। शुरुआत में इसका पता करने के लिए सीबीसी यानी कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट कराया जाता है। इसके माध्यम से पुष्टि की जाती है कि कहीं बैक्टीरियल इन्फेक्शन तो नहीं है। बैक्टीरियल संक्रमण अकसर अपेन्डिसाइटिस के साथ-साथ चलता है।
इसके अलावा दूसरी अन्य स्थितियों का पता करने के लिए कुछ दूसरे टेस्ट भी किये जाते हैं।
यूरानिलिसिस के माध्यम से पेशाब पथ में संक्रमण या फिर किडनी स्टोन का पता लगाया जाता है।
पेल्विक यानी पेडू के परीक्षण से सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी को प्रजनन से संबंधित कोई परेशानी तो नहीं है। इसके माध्यम से पेडू से संबंधित अन्य संक्रमण का भी पता लगाया जा सकता है।
प्रेग्नेंसी टेस्ट द्वारा संदिग्ध अस्थानिक गर्भावस्था के बारे में मालूम किया जाता है।
एब्डोमिनल इमेजिंग से पेट में फोड़ा या अन्य समस्याओं का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए एक्सरे, अल्ट्रासाउंड या सीटी स्केन किया जाता है।
छाती का एक्सरे कर लोअर लोब निमोनिया का पता लगाया जा सकता है। कभी-कभी इसमें भी अपेन्डिसाइटिस के समान लक्षण होते हैं।
क्या है इसका उपचार
अपेन्डिसाइटिस के लिए उपचार भिन्न हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में सर्जरी आवश्यक होती है, जो कि समस्या पता लगने के 72 घंटों के भीतर करानी आवश्यक है। सर्जरी कैसी होगी, यह केस के विवरण पर भी निर्भर होता है। यदि किसी रोगी को फोड़ा है, लेकिन यह फटा नहीं है तो रोगी को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। बाद में त्वचा में ट्यूब का प्रयोग करके फोडे़ को हटा दिया जाता है। फोडे़ का उपचार करने के बाद सर्जरी के माध्यम से अपेंडिक्स को निकाल दिया जाता है।
यदि रोगी का फोड़ा या अपेंडिक्स फट गया है तो तुरंत सर्जरी की जाती है। अपेंडिक्स हटाने के लिए की जाने वाली इस सर्जरी को ऐपन्डिक्टमी के नाम से जाना जाता है। इसे ओपन सर्जरी सा फिर लेप्रोस्कोपी के माध्यम से किया जाता है। लेप्रोस्कोपी कम आक्रामक है और रिकवरी टाइम को भी कम करती है, लेकिन रोगी को फोड़ा या पेरिटनाइटिस है तो ओपन सर्जरी जरूरी हो जाती है।
यदि पेट में दर्द हल्का है और डायग्नोस्टिक टेस्ट सामान्य हैं तो अपेन्डिसाइटिस का बिना सर्जरी किये उपचार किया जा सकता है। ऐसे केस बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इस स्थिति में रोगी के उपचार प्लान में एंटीबायोटिक्स और तरल आहार को शामिल किया जा सकता है, जब तक रोगी के लक्षण का हल ना हो जाए। परन्तु किसी भी लक्षण की अनदेखी किए बिना डॉक्टर की सलाह बेहद जरूरी है। सर्जरी करने के बाद व्यक्ति को उच्च फाइबरयुक्त भोजन लेने की सलाह दी जाती है, ताकि मलत्याग प्रक्रिया दुरुस्त रहे।
फाइबर के बेहतर स्रोत— मक्का, दाल, फल ,रेशेदार, सब्जियां, ब्राउन ब्रेड, सूखे मेवे, गेहूँ के आटे से बनी रोटियां ,ब्राउन राइस ,मटर।
ओटमील।
घरेलू तरीकों से पाएं निजात
अपेंडिक्स के दर्द का इलाज तुरंत करना जरूरी होता है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो अपेंडिक्स फट भी सकता है और इसमें बहुत तेज दर्द होता है जो कि असहनीय होता है।
जब अपेंडिक्स में सूजन आ जाए तो अपेंडिसाइटिस की समस्या पैदा हो जाती है। अपेंडिसाइटिस एक दीर्घकालिक स्थिति है जिसका अगर इलाज न किया जाए तो बहुत तेज दर्द हो सकता है। वैसे तो अपेंडिक्स का दर्द बहुत तेज होता है और इसे तुरंत इलाज की जरूरत होती है लेकिन फिर भी आप कुछ घरेलू तरीकों की मदद से गंभीर स्थिति पैदा होने से पहले ही अपेंडिक्स में सूजन को कम कर सकते हैं।
अरंडी का तेल
अरंडी के तेल में रिसिनोलिक एसिड होता है जिसमें दर्द निवारक और सूजन-रोधी गुण होते हैं। एक मुलायम कपड़ा लें और उसे दो चम्मच अरंडी के तेल में डुबोकर कुछ मिनटों के लिए प्रभावित हिस्से पर लगाएं। दिन में दो बार ऐसा करें।
एप्पल साइडर विनेगर
इसमें सूजन-रोधी गुण होते हैं। एक गिलास गर्म पानी में एप्पल साइडर विनेगर डालकर घूंट-घूंट कर के पिएं। दर्द से छुटकारा पाने के लिए रोज इसका सेवन करने से लाभ होगा।
छाछ
छाछ पाचन में सुधार कर किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने के लिए प्रोबायेटिक बनाती है। दिन में एक बार एक लीटर छाछ जरूर पिएं। आप छाछ में जीरा, अदरक, पुदीना भी मिलाकर पी सकते हैं।
बेकिंग सोड़ा
इसमें एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं। ये पाचन तंत्र को आराम देता है और अपेंडिसाइटिस के दर्द को कम करता है। एक गिलास पानी में एक चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर तुरंत पी लें। जब भी दर्द हो इसका सेवन करें।
लहसुन
लहसुन में सूजन-रोधी और माइक्रोबियल-रोधी गुण होते हैं। इसके सूजन-रोधी गुण दर्द को कम कर सकते हैं जबकि माइक्रोबियल-रोधी तत्व हानिकारक बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और परजीवियों को खत्म कर सकते हैं। लहसुन की एक-दो कलियां लें और उन्हें कूटकर पानी के साथ निगल लें।
ग्रीन टी
ग्रीन टी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं। इससे काफी हद तक दर्द से राहत मिल सकती है। एक कप गर्म पानी में ग्रीन टी का एग बैग डालें और कुछ मिनट बाद स्वदानुसार शहद डालकर मिक्स कर लें। गर्म ही इस चाय का सेवन करें। दिन में दो बार इसका सेवन करें।
इसमें बचाव के साथ रोग होने पर तत्काल इलाज़ जरूरी हैं।