शरीर में एंटीबॉडी बन जाने के बाद फिर से कोरोना की चपेट में आने का खतरा हो जाता है खत्म

नई दिल्ली,कोरोना संक्रमण के बाद शरीर में बनने वाली एंटीबाडीज से इसके दोबारा संक्रमण का खतरा नहीं है। वैज्ञानिकों ने पहली बार इस बात की पुष्टि की है। अभी तक इस मुद्दे पर अलग-अलग दावे किए गए थे। हालांकि, ये एंटीबाडीज कितने समय तक कारगर रहेंगी, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है। नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता अलेक्जेंडर ग्रेनिंनजर की टीम ने अमेरिका के एक फिशिंग शिप के क्रू मेम्बर की जांच के बाद इस दावे की पुष्टि की है। शोध के अनुसार, शिप में सवार हुए 122 क्रू मेम्बर में से 120 का कोरोना टेस्ट इसके रवाना होने से पहले किया गया। इन सभी के टेस्ट निगेटिव थे। इनमें तीन क्रू मेम्बर ऐसे थे, जिनमें कोरोना एंटीबाडीज मिली थी और उनमें कोरोना वायरस को निष्क्रिय करने की एक्टिविटी पाई गई थी। यानी वे पहले ही कोरोना से संक्रमित होकर ठीक हो चुके थे, लेकिन बाद में इस जहाज में कोरोना फैल गया। करीब 18 दिनों के बाद जब शिप वापस लौटा तो इनमें से 104 लोगों का कोरोना टेस्ट पॉजीटिव निकला। शोधकर्ताओं ने कहा कि शिप में कोरोना का अटैक रेट रिकॉर्ड 85.2 फीसदी दर्ज किया गया है। संभवत: जिन दो लोगों के टेस्ट नहीं हुए थे, उन्हीं से अन्य को कोरोना फैला। इस व्यापक अटैक रेट में उन तीन क्रू मेम्बर को कोरोना नहीं हुआ, जिनमें पहले से एंटीबाडीज मौजूद थी। उनमें जरा भी कोरोना के लक्षण नहीं पाए गए। शिप से लोगों का करीब 32 दिनों तक अध्ययन किया गया, जिनमें से कुछ और लोगों के टेस्ट भी बाद में पॉजीटिव निकले। मैड रैक्सीव जर्नल ने इस पूरे शोध को प्रकाशित किया है। साथ ही दावा किया है कि यह पहला प्रमाण है, जिसमें पाया गया है कि रक्त में मौजूद एंटीबाडीज दोबारा संक्रमण से बचाव करने में कारगर हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि इस पर आगे और शोध करने की जरूरत है। शोधकर्ताओं ने कहा कि 85 फीसदी के अटैक रेट में बीमारी से बचाव की मुख्य वजह एंटीबाडीज का संरक्षण प्रदान करना ही है। एंटीबाडीज से दोबारा संक्रमण नहीं होने की पुष्टि से एंटीबाडीज का इस्तेमाल टीका बनाने में संभव हो सकेगा। इस पर भारत समेत कई देशों में शोध चल रहे हैं। जिन लोगों में अच्छी मात्रा में संक्रमण के बाद एंटीबाडीज बनी हैं, उनका नमूना लेकर लैब में कृत्रिम एंटीबाडीज बना दी जाती हैं, जिसका इस्तेमाल फिर टीकाकरण के लिए किया जाता है।

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