मुंबई, बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद लॉकडाउन में शहरों में फंसे लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए मसीहा साबित हुए हैं। प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की उनकी पहल में उन्हें रोजगार देने से लेकर, जरूरतमंदों को मेडिकल हेल्प और खाना मुहैया कराने तक तमाम तरह के कामों के जरिए ये रील हीरो रियल हीरो बन बैठे हैं। आजादी की 74 वीं सालगिरह के मौके पर वे आजादी के मायनों, समाज सेवा, अपनी मां, पहली कमाई, रिजेक्शन, संघर्ष और परिवार के बातें करते हैं। सोनू ने कहा कि देखिए मेरे लिए आजादी वो है कि लोगों के मन में कोरोना का जो डर बैठा हुआ है, उसे पराजित करके वे घर से बाहर निकलें। ये सोच कर घर में न बैठें कि मैं सेफ हूं। आप अपने घर से बाहर निकलें और लोगों की मदद करें। जिससे आप में घर से बाहर निकलकर लोगों की मदद करने की ताकत आएगी, आप सही मायनों में उसी दिन अपनी आजादी का जश्न मना सकेंगे। बचपन में तो आजादी का दिन स्कूल जाकर झंडा फहराना और चॉकलेट पाने की खुशी में बीतता था। उस दिन यह सोचकर भी खुश रहते थे कि पढ़ाई से छुट्टी मिलेगी। उस वक्त आजादी के अर्थ की समझ नहीं थी। मगर कोरोना काल में जब मैं प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की मुहिम के तहत घर से निकला और जिस दिन मैंने पहली बस उनके घरों के लिए रवाना की, तो उस वक्त छोटे-छोटे बच्चों और मुरझाए चेहरों पर जो मुस्कान थी और हाथ हिलाते हुए वे जिस तरह से मुझे बाय-बाय कर रहे थे, उस वक्त मुझे लगा कि लॉकडाउन की बेबसी के बीच वे आजाद होकर अपने घरों का रुख कर रहे हैं। तभी मैंने भी अपनी आजादी महसूस की। उन्होंने कहा कि जब मुझे मेरे फैन ने अपने हाथों पर मेरे फेस का टैटू दिखाया तो मैं शरमा गया था। मैंने फैन से यही कहा कि ऐसा करने की जरूरत नहीं थी। मैं यही कहूंगा कि कहीं ना कहीं माता-पिता और भगवान की दुआएं रही हैं, जो लोग मुझे इस कदर चाहने लगे हैं। एक प्रश्न के जबाब में सोनू ने कहा कि यह लोगों के प्यार और विश्वास को दिखाने का एक तरीका है और उनके इस प्यार से मुझे लगता है कि मैं सही रास्ते पर हूं। ऐसे समय में मैं अपने माता-पिता को बहुत मिस करता हूं कि वे होते, तो उन्हें कितनी ज्यादा खुशी होती।