जिन मरीजों में कोरोना संक्रमण के लक्षण दिखे उनका इम्यून सिस्टम बिना लक्षणों वाले संक्रमित से है ज्यादा मजबूत

नई दिल्ली, बढ़ते कोरोना मामलों के साथ ही दुनिया में इस पर शोध भी बढ़ते जा रहे हैं। आजकल कोरोना वायरस को लेकर एसिम्प्टमैटिक और सिम्टोमैटिक मरीजों के अंतर से संबंधित हुए शोधों की ज्यादा चर्चा है। इनमें से एक शोध यह बता रहा है कि जिन मरीजों में कोरोना संक्रमण के लक्षण दिखते हैं, उनका इम्यून सिस्टम उन संक्रमित लोगों से ज्यादा मजबूत होता है, जिनमें लक्षण दिखाई नहीं देते। यह शोध नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।
यह बात हैरान करने वाली लगती है कि गंभीर रूप से बीमार लोगों का इम्यून सिस्टम उन लोगों से ज्यादा मजूबत कैसे हो सकता है, जिनमें लक्षण स्पष्ट नहीं दिखाई देते। लेकिन शोध का कहना है कि इस वायरस के खिलाफ तो यही बात है। उल्लेखनीय है कि ज्यादातर संक्रमित मरीजों ने या तो बहुत कम लक्षण दिखाए हैं या कुछ में बिलकुल भी लक्षण दिखाई नहीं दिए हैं। इस एसिम्प्टमैटिक समूह के बारे में काफी कम जानकारी है, क्योंकि एक तो इस तरह के लोगों को लगता ही नहीं है कि वे संक्रमित हैं और वे डॉक्टर तक पहुंचते ही नहीं हैं। इनकी जांच होने की संभावना भी कम ही होती है। चीन के शोधकर्ताओं ने दो समूह के लोगों पर अध्ययन किया जो वानझोउ जिले में कोविड-19 के संक्रमण के शिकार हुए थे। इनमें से 37 लोगों में लक्षण दिखे थे, जबकि अन्य 37 लोगो में लक्षण दिखाई नहीं दिए थे। इन सभी लोगों के संक्रमण मुक्त होने के कुछ सप्ताह बाद उनके खून के नमूने की जांच की गई। पाया गया कि एसिम्प्टमैटिक समूह के 62.2 प्रतिशत में शॉर्ट टर्म एंटीबॉडीज थीं। वही वे लोग जिनमें संक्रमण के दौरान लक्षण दिखाई दिए थे, उनमें यह प्रतिशत 78.4 प्रतिशत पाया गया।
इसके अलावा अध्ययन में यह भी पाया गया कि 81.1 प्रतिशत एसिम्प्टमैटिक मरीजों में एंटीबॉडी कम हो गई, जब कि सिम्प्टोमैटिक मरीजों का प्रतिशत इस मामले में 62.2 ही रहा। इतना ही नहीं दूसरे मरीजों के मुकाबले एसिम्प्टमैटिक मरीजों में 18 एंटी इन्फ्लेमेट्री सेल सिग्नलिंग प्रोटीन की मात्रा का स्तर कम पाया गया। इससे यह पता चलता है कि एसिम्प्टमैटिक समूह के इम्यून सिस्टम का नोवल कोरोना वायरस के प्रति कमजोर रिस्पॉन्स था। यह शोध नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इसके लेखकों का कहना है कि उनके अध्ययन के नतीजों से इस मत पर सवाल उठते हैं कि कोरोना संक्रमित हो चुके मरीजों को भविष्य में संक्रमण नहीं हो सकता। इससे इम्यूनिटी पासपोर्ट की अवधारणा के जोखिम का भी पता चलता है। कई अन्य शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अध्ययन हमारे कोविड-19 की रणनीति पर सवाल उठाने वाला अध्ययन है और चिंता का विषय भी है।

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