भोपाल/इंदौर/ उज्जैन/जबलपुर, गृह विभाग ने भोपाल, इंदौर और उज्जैन संभाग के बस ऑपरेटरों को प्रदेश में बस संचालन की अनुमति दे दी है, लेकिन बस ऑपरेटर इसके विरोध में उतर गए हैं। बस ऑपरेटर मार्च माह से टैक्स माफ करने की मांग कर रहे हैं, सरकार के आदेश के बाद भी मंगलवार को उन्होंने अपनी बसें बाहर नहीं निकालीं। तीनों संभागों के बस ऑपरेटरों का कहना है कि जब तक टैक्स माफ नहीं होगा, तब तक बसों का संचालन नहीं होगा।
गौरतलब है, कि प्रदेशभर में करीब 35 हजार से अधिक यात्री बसें संचालित होती हैं। 23 मार्च से हुए लॉकडाउन के बाद बसों का संचालन बंद हैं। 1 जून से अनलॉक होने के बाद कुछ जिलों में बस संचालन की अनुमति दे दी गई थी, भोपाल, इंदौर और उज्जैन संभाग के रेड जोन होने के कारण बसों का संचालन बंद था। सोमवार को गृह विभाग के प्रमुख सचिव एस.एन. मिश्रा ने कुछ शर्तों के साथ तीनों संभागों में बस संचालन की अनुमति दे दी, लेकिन बस ऑपरेटर टैक्स माफ करने की मांग पर अड़ गए हैं। विभिन्न प्रतिबंधों के कारण बसों में पर्याप्त सवारियां भी नहीं मिलती हैं।
हमारी मांगों पर सरकार करे विचार
प्राइम रेट बस ऑपरेटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने कहा कि हम सरकार से लॉकडाउन की अवधि का टैक्स माफ करने की मांग कर रहे हैं। बसों का संचालन शुरू होने पर टैक्स में रियायत मांग रहे हैं, सरकार ने इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया। जिसके कारण बसें नहीं चलाने का फैसला लिया है। सभी बसें अपने ही स्थान पर खड़ी हैं। जब तक सरकार टैक्समाफी नहीं करेगी तब तक बसों का संचालन नहीं होगा। डीजल के दामों में भी लगातार वृद्धि हो रही है। सरकार से पहले ही किराया बढ़ाने की मांग भी कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने इस पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण बसों का संचालन कर पाना आपरेटरों के बस में नहीं है।
प्रतिमाह एक बस का टैक्स 24 हजार रुपए
एक 52 सीटर बस का एक महीने का टैक्स 24 हजार रुपए होता है। अगर सरकार बंद के दौरान बस का टैक्स लेती है तो बस ऑपरेटर को 72 हजार रुपए भरना होंगे। टेक्स समय पर नहीं चुकाने पर पेनाल्टी भी लगती है। इसके साथ ही घर बैठे ड्राइवरों और कंडक्टर को भी तनख्वाह के रूप में राशि भी देना पड़ी। इस तरह से एक बस पर प्रति माह लाखों रुपयों का घाटा बस ऑपरेटर को होगा। अब सरकार 50 प्रतिशत यात्रियों को बैठाकर बस संचालन की अनुमति दे रही है। उससे भी बस ऑपरेटरों को आय बहुत कम हो जाएगी। बस संचालन से संबंधित कई खर्चे इस बीच बढ़ गए हैं। 52 सीटर बस 300 किमी आना-जाना करती है, तो उसका खर्चा साढ़े 11 हजार रुपए आता है। वह 5 हजार की सवारी लेकर जाएगी तो निश्चित ही इसमें भी घाटा होगा।
3 लाख से अधिक लोगों की रोजी-रोटी संकट में
ऑपरेटर और सरकार के बीच में आपसी तालमेल नहीं होने से प्रदेश के यात्री जो सार्वजनिक परिवहन सेवा से यात्रा कर रहे हैं, वे तो परेशान हो ही रहे हैं। निजी बसों पर कार्य करने वाले 1,10,000 कर्मचारियों के साथ-साथ लगभग 3 लाख ऐसे लोग है। जिनके परिवार का पालन पोषण सार्वजनिक परिवहन उद्योग के माध्यम से होता है। पिछले तीन महा से वह भुखमरी के शिकार है। सड़क परिवहन कर्मचारी अधिकारी उत्थान समिति मध्य प्रदेश के अध्यक्ष श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि मध्य प्रदेश में सड़क परिवहन निगम का अस्तित्व का नहीं है। देश में मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ दो ऐसे राज्य हैं जहां पर पूर्णतत: निजीकरण है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था निजी ऑपरेटरों की हवाले है। सरकार को इस स्थिति पर विचार करना चाहिए। निगम की बसे होती तो सरकार घाटा उठाती। जो स्थिति अब निर्मित हुई व भविष्य में ना हो। इसका एकमात्र विकल्प है, सार्वजनिक परिवहन सेवा को सरकार अपने अधीनस्थ ले। मध्यप्रदेश में बस ऑपरेटरों के वाहनों का संचालन सड़क परिवहन निगम के माध्यम से अनुबंध कर किया जाए। जितने किलोमीटर बस चलेगी। उतना पैसा सरकार दे।
-जनहित याचिका दायर करने की तैयारी
उधर, इस मामले को लेकर सड़क परिवहन कर्मचारी एवं हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाने जा रही हैं। समिति का कहना है कि बसों के संचालन की स्थिति ठीक शराब बिक्री की तरह हो गई है। सरकार कह रही है, बस चलाओ, बस ऑपरेटर मना कर रहे हैं। सरकार के रुख से बस आपरेटर दिवालिया होने जा रहे है। जिसके कारण प्रदेश की जनता परेशान हो रही है।
बस ऑपरेट्र्स की मांग
लॉक डाउन अवधि अप्रैल, मई एवं जून का टैक्स एवं पेनाल्टी शून्य हो।
सोशल डिस्टेंस नियम तक बस संचालन करने पर शासन क्षतिपूर्ति दे।
अक्टूबर माह तक टैक्स में छूट प्रदान की जाए।
परिवहन उद्योग से जुड़े कर्मचारियों को शासन संकट के समय मानदेय-भत्ता दे।
परिवहन कर्मचारियों को कोरोना योद्धा मानकर सरकार बीमा कराए।
इनका कहना है
-बस ऑपरेटर्स ने सरकार के सामने अपनी मांगें रखी है। वे तीन माह के टैक्स को माफ करने तथा सोशल डिस्टेंस नियम से बस संचालन करने पर क्षतिपूर्ति मांग रहे हैं। सरकार को इस संबंध में फैसला करना है।
वी मधु कुमार, परिवहन आयुक्त
-हमने अपनी समस्या और मांगें सरकार को कई बार बताई है। बस ऑपरेटर घाटे में तो बसों का संचालन नहीं कर सकते हैं। अगर सरकार मांगें मान ले, तो बसों का संचालन शुरू हो सकता है।
गोविंद शर्मा, अध्यक्ष
प्राइवेट बस ऑनर एसोसिएशन
-अप्रैल, मई का तो टेक्स तो हर हाल में माफ होना है, आवश्यकता दिसंबर तक के टैक्स माफी की है, जब पर्याप्त संख्या में सवारी ही नहीं मिलेगी, तो बस कैसे संचालित होगी, जब आमदनी नहीं होगी तो टैक्स कैसे भर पाएंगे। इसके लिए फार्म के को, दो माह के बंधन को मुक्त किया जाना जरुरी है, जिससे खड़ी बस का टैक्स ना लगे, कर्मचारियों की आर्थिक सहायता भी सरकार से करवानी है।
कमल किशोर तिवारी, अध्यक्ष
आईएसबीटी बस ऑपरेटर एसोसिएशन, जबलपुर
– मप्र को छोड़ कर सभी राज्यों में बस चलने लगी हैं। सरकार अगर हमारी मांगें मान लेती तो यहां भी बसें शुरु हो जाती। सिवनी में रोजाना 200-250 बसें आती-जाती हैं। सब रूकी हुई हैं। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है।
तेजबली सिंह
बस आपरेटर एसोसिएशन, सिवनी
-जब तक हमें लॉकडाउन के दौरान का वेतन बस ऑपरेटर या बस मालिक नहीं देते, तब तक हम यात्री बसें नहीं चलाएंगे।
सैय्यद सलीम, अध्यक्ष
निजी बस ड्राइवर-कंडक्टर एसोसिएशन, भोपाल