भीमा-कोरेगांव मामले की जाँच एनआईए को सौंपी गई

मुंबई, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जनवरी 2018 में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले की जांच एनआईए को सौंपने को लेकर मंजूरी दे दी है. मुख्यमंत्री ठाकरे के इस फैसले ने सभी को चौंकाया है कि जिन पवार के प्रयासों से उनकी सरकार बनी उन्हीं की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने कैसे ये फैसला ले लिया. दरअसल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले की जांच एनआईए को सौंपने की मंजूरी दे दी थी. एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने जांच को केंद्रीय एजेंसी से करवाए जाने का विरोध किया था. ये जांच अब तक पुणे पुलिस कर रही थी. पुणे पुलिस का आरोप है कि 31 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र के पुणे में एक एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. इसी परिषद में जातीय हिंसा की योजना बनाई गई. परिषद के आयोजन के अगले ही दिन पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दंगे भड़क उठे थे. इस मामले में पुणे पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ्तार किया था. ये सभी नौ लोग जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं और जन अधिकारों के लिए संघर्ष करते आए हैं. देवेंद्र फडणवीस सरकार के कार्यकाल में गिरफ्तार किए गए लोगों पर पुलिस ने अर्बन नक्सल होने का आरोप लगाया था. गौरतलब हो कि हाल ही में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा और कहा कि फडणवीस सरकार ने गिरफ्तार किए गए लोगों को झूठे मामले में फंसाने की साजिश रची थी. गिरफ्तार लोगों पर दर्ज आपराधिक मामलों की समीक्षा की जरूरत है और इसके लिए एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम गठित की जानी चाहिए. पवार के सुझाव के बाद महाराष्ट्र सरकार हरकत में आई. राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने एक समीक्षा बैठक बुलाई जिसमें पुणे पुलिस के आला अधिकारियों से कहा गया कि वे गिरफ्तार किए गए लोगों से संबंधित सबूत पेश करें. अभी उस समीक्षा बैठक का कोई नतीजा निकला भी ना था कि केंद्र सरकार ने आनन-फानन में मामले की जांच को ही पुलिस से ट्रांसफर करके एनआईए को दे दिया. 25 जनवरी को महाराष्ट्र सरकार ने विशेष अदालत में जांच एनआईए को सौंपे जाने पर अपना विरोध जताया. इसके बाद गृहमंत्री अनिल देशमुख ने एलान किया कि जांच पुणे पुलिस के आधीन ही रहेगी, लेकिन 13 फरवरी को गृहमंत्री के मत को दरकिनार करते हुए उद्धव ठाकरे ने मामला एनआईए को सौंपने के लिये अपनी मंजूरी दे दी. बहरहाल अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर दो साल बाद अचानक केंद्र सरकार को ये मामला एनआईए को देने की क्यों सूझी. इसे केंद्र की ओर से राज्य सरकार के अधिकारों पर अतिक्रमण के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी राज्य सरकार का विषय है. महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के मुताबिक केंद्र सरकार को इस मामले में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए थी उन्होंने इस हरकत को असंवैधानिक बताया.

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