नई दिल्ली, बहुत ही कम लोगों को जानकारी हो पाती है कि उनका बच्चा अटेंशन डिफिसिट डिसऑर्डर (एडीएचडी)से पीड़ित है। यह बच्चों की बहुत सामान्य समस्या है। इस डिसऑर्डर के लक्षण आमतौर पर बालसुलभ क्रियाओं की तरह ही होते हैं। इसलिए माता-पिता इनमें अंतर नहीं कर पाते हैं। हालांकि हर 20 में से एक बच्चा एडीएचडी से पीड़ित होता है। खास बात यह है कि लड़कियों की तुलना में यह डिसऑर्डर लड़कों में अधिक देखने को मिलता है। जो बच्चे एडीएचडी से पीड़ित होते हैं, वे आमतौर पर हाइपर ऐक्टिव होते हैं। किसी एक काम को ध्यान लगाकर नहीं कर पाते हैं। एक साथ कई कामों में व्यस्त हो जाते हैं और फिर कोई एक भी काम ठीक से नहीं कर पाते हैं। यह डिसऑर्डर 3-4 साल की उम्र से लेकर 13 साल तक की उम्र तक बच्चों में देखने को मिलता है। और इस उम्र के बाद ज्यादातर बच्चों में यह दिक्कत दूर हो जाती है। लेकिन कुछ केसेज में यह समस्या 25 साल की उम्र तक बच्चे को परेशान कर सकती है।कई स्टडीज में यह बात सामने आई है कि ओमेगा-3 फिश ऑइल एडीएचडी से पीड़ित बच्चों को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन वहीं कुछ रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि ओमेगा-3 के सेवन से कुछ बच्चों में तो तेजी से सुधार देखने को मिला। क्योंकि ये टॉलरेटेड और सेफ होते हैं। जबकि कुछ बच्चों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। ओमेगा-3 हमारे दिमाग की ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। फिर सेहतमंद ब्रेन के लिए भी इसकी आश्यकता होती है। इसे हम फिश ऑइल और नट्स से प्राप्त कर सकते हैं। पूर्व में हुए शोध में एडीएचडी से पीड़ित बच्चों को बिना यह चेक किए ओमेगा-3 की डोज दी गई कि उनके शरीर को इसकी जरूरत है भी या नहीं। जबकि जिन बच्चों को इसकी जरूरत होती है, उनके नाखून रूखे-खुरदरे, त्वचा शुष्क और एग्जिमा जैसी समस्या उन्हें हो सकती है। ट्रासलेशन सायकाइट्री जर्नल में प्रकाशित हुए ताजा शोध में बताया गया है कि जिन बच्चों को ओमेगा-3 की जरूरत होती है, उन्हें एडीएचडी के ट्रीटमेंट के दौरान इसके सप्लिमेंट्स देने पर तेजी से सुधार होता है। जबकि जिन बच्चों की बॉडी में इसकी कोई कमी नहीं होती है उन्हें इसकी डोज देने पर उनमें एडीएचडी के कई सिंप्टम्स में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। उनके लिए यह ड्रग्स की तरह काम करता है। ताजा रिसर्च में यह बात सामने आई है कि एडीएचडी के ट्रीटमेंट के दौरान बच्चों को जो ज्यादातर ड्रग्स दी जाती हैं, वे 20 से 40 प्रतिशत तक बच्चों पर बेअसर साबित होती हैं।एडीएचडी के लिए दी जानेवाली दवाइयां लंबे समय से विवाद का विषय रही हैं।