नई दिल्ली, अयोध्या के जिस ऐतिहासिक मामले में शनिवार को फैसला सुनाया जाना है उसका इतिहास विवाद और हिंसक तनाव से भरा पड़ा है। यह झगड़ा यूँ तो 400 वर्ष से है, किन्तु 1885 में हिन्दू पक्ष की सक्रियता के बाद यह मुद्दा लगातार ज्वलंत होता गया।
अयोध्या विवाद का पूरा इतिहास
सवा सौ साल पहले हुए मंदिर मस्जिद झगड़े के पहले बाबरी मस्जिद के दरवाजे के पास बैरागियों ने एक चबूतरा बना रखा था। 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। यह मांग खारिज हो गई।
1946 में विवाद उठा कि बाबरी मस्जिद शियाओं की है या सुन्नियों की। फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी की था इसलिए सुन्नियों की मस्जिद है।
1949: जुलाई में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की। लेकिन यह भी नाकाम रही।
1949 में ही 22-23 दिसंबर को मस्जिद में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गईं।
1949 : 29 दिसंबर को यह संपत्ति कुर्क कर ली और वहां रिसीवर बिठा दिया गया।
1950 से इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू होता है। इस तारीखी मुकदमे में जमीन के सारे दावेदार 1950 के बाद के हैं।
1950 : 16 जनवरी को गोपाल दास विशारत अदालत गए। कहा कि मूर्तियां वहां से न हटें और पूजा बेरोकटोक हो। अदालत ने कहा कि मूर्तियां नहीं हटेंगी, लेकिन ताला बंद रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी करेगा। जनता बाहर से दर्शन करेगी।
1959: निर्मोही अखाड़ा अदालत पहुंचा और वहां अपना दावा पेश किया।
1961: सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अदालत पहुंचा। मस्जिद का दावा पेश किया।
1986: 1 फरवरी को फैजाबाद के जिला जज ने जन्मभूमि का ताला खुलवा के पूजा की इजाजत दे दी।
1986 : कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाने का फैसला हुआ।
1989: वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया।
1989: नवंबर में मस्जिद से थोड़ी दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया।
25 सितंबर 1990 को बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से एक रथ यात्रा शुरू की। इस यात्रा को अयोध्या तक जाना था। इस रथयात्रा से पूरे मुल्क में एक जुनून पैदा किया गया। इसके नतीजे में गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए। ढेरों इलाके कर्फ्यू की चपेट में आ गए। लेकिन आडवाणी को 23 अक्टूबर को बिहार में लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया।
1990 : कारसेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गए और गुम्बद तोड़ा। वहां भगवा फहराया। इसके बाद दंगे भड़क गए।
1991 : जून में आम, चुनाव हुए और यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई।
1992 : 30-31 अक्टूबर को धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई।
1992 : नवंबर में कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया।
लेकिन 6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी। कारसेवक 11 बजकर 50 मिनट पर मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े। करीब 4।30 बजे मस्जिद का तीसरा गुम्बद भी गिर गया।
इस घटना के बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जिन्होंने अदालत में हलफानामा देकर मस्जिद की हिफाजत की जिम्मेदारी ली थी, अपनी बाद से पलट गए थे। उन्होंने इस पर फख्र जताया था।
कल्याण सिंह ने कहा था, अधिकारियों का कर्मचारियों का किसी रूप में कहीं कोई दोष नहीं। कसूर नहीं, सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं। इस्तीफा देता हूं। किसी कोर्ट में कोई केस चलना है तो मेरे खिलाफ करो। किसी कमीशन में कोई इन्क्वायरी होनी है तो मेरे खिलाफ करो।
2003: हाईकोर्ट ने 2003 में झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाई ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था।
2005 में यहां आतंकवादी हमला हुआ। लेकिन आतंकवादी वहां कुछ नुकसान नहीं कर सके और मारे गए।
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या में विवादित जमीन को राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया जिसे सबने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है।
8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बातचीत से सुलझाने का फैसला किया और इसके लिए तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का गठन कर दिया। इस समिति के अध्यक्ष जस्टिस खलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल हैं।