गांधी और विवेकानंद के विचारों से बनी थी स्वामी आत्मानंद की कर्मभूमि -बघेल

रायपुर,दुर्ग जिले के पाटन में आयोजित स्वामी आत्मानंद जयंती समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वामी आत्मानंद जी के यशस्वी क्षणों को साझा किया। उन्होंने कहा कि वर्धा आश्रम में स्वामी जी के पिता बुनियादी शिक्षक थे, गांधी जी का प्रेम स्वामी जी को खूब मिला। जब वे 4 साल के थे तो गांधी जी के भजन रघुपति राघव राजाराम में हारमोनियम पर संगत देते थे। बाद में स्वामी विवेकानंद के विचारों का भी उन पर गहरा असर हुआ और उन्होंने अपना पूरा जीवन दरिद्र नारायण की सेवा में बिता दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि ईशोपनिषद पर स्वामी जी की व्याख्या अद्भुत है। उनके गीता तत्व चिंतक की रिकॉर्डिंग उपलब्ध है। इसे सुनना ज्ञान के सागर में डूबने जैसा है। जब वे राम नाम संकीर्तन करते थे तो उनकी सुमधुर आवाज में इसे सुनना दैवीय अनुभव होता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगली बार जब हम इकट्ठा होंगे तो इसे सुनेंगे और आप भी इसे महसूस करेंगे।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर नारायणपुर आश्रम की स्थापना के संबंध में भी विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि उस समय स्वामी आत्मानंद तेजी से सेवा का अद्भुत कार्य कर रहे थे। जब बेलूर मठ में स्वामी वीरेश्वरानंद जी की अंतिम यात्रा पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्वामी जी से मिली तो कहा कि नारायणपुर में आपके आश्रम की गतिविधि संचालित होगी तो इस वन्य क्षेत्र में सेवा के कार्यों का विस्तार होगा। इसके बाद आश्रम की रूपरेखा तैयार हुई और सेवा का कार्य वहां प्रारम्भ हुआ।
7 बच्चे थे, सारे मेरिट में आये-
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर एक रोचक वाकया बताया। उन्होंने कहा कि जब पहली बार आश्रमठ के बच्चे पांचवी पहुंचे तब पहले से लेकर 7वें स्थान तक यहीं के बच्चे मेरिट में आये। किसी ने पूछा कि आठवें स्थान से कैसे चूक गए तब बताया कि पहली बैच में केवल 7 बच्चे ही थे।

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