वीरांगना दुर्गावती ने अकबर की सेना को धूल चटाई थी-राजीव सिंह

भोपाल, प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय के सभाकक्ष में आज आदिवासी कांग्रेस जिला भोपाल के तत्वावधान में वीरांगना महारानी दुर्गावती का 503 वां जन्मवर्ष मनाया गया। इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री प्रशासन प्रभारी राजीव सिंह ने महारानी दुर्गावती के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि महारानी दुर्गावती का जन्म 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर हुआ था, इसलिए उनका नाम नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेजस्वी, साहसी, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही दुर्गावती के पति राजा दलपतशाह का निधन हो गया। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया और गोण्डवाना साम्राज्य की महारानी बनीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर की सेना को भी तीन बार धूल चटायी थी।
श्री सिंह ने बताया कि रानी दुर्गावती के सम्मान में उनके नाम पर विश्वविद्यालय का नाम रखा गया, डाक टिकट जारी किया गया और म्यूजियम भी बनाया गया। वहीं जिस तरह रानी दुर्गावती अपने राज्य की रक्षा के लिए आखिरी सांस तक साहस के साथ लड़ती रहीं और अपने प्राणों की आहूती दे दी। इससे हर परिस्थिति में साहस और धैर्य से काम लेने की प्रेरणा मिलती है। रानी दुर्गावती की वीरता की गाथा आज भी इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई है।
श्री सिंह ने कहा कि उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया था। रानी दुर्गावती 24 जून, 1564 में वीरगति को प्राप्त हुईं।
प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रकाश जैन ने कहा कि रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने ‘हरम’ में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा, रानी ने यह मांग ठुकरा दी थी। जन्मवर्ष समारोह में आदिवासी कांग्रेस के जिला अध्यक्ष आर.के. इनवाती (सूर्या) ने भी महारानी दुर्गावती के जीवन पर प्रकाश डाला।

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