मां और बच्चा दोनों के लिए गर्भावस्था के दौरान हाई बीपी होना नहीं होता है सही इससे पैदा होती हैं समस्याएं

नई दिल्ली,किसी भी व्यक्ति की हेल्थ के लिए हानिकारक हाई ब्लड प्रेशर व्यक्ति के दिल और किडनी पर प्रेशर बढ़ाता है। इससे स्ट्रोक, हार्ट अटैक, किडनी फेलियर जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। परंतु प्रेग्नेंसी में यह स्थिति केवल मां ही नहीं बल्कि, कोख में पल रहे बच्चे के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है। दरअसल, कई महिलाओं को पहले से ही हाई बीपी की समस्या होती है, जबकि कुछ को प्रेगनेंट होने के कुछ महीनों बाद यह समस्या होने लगती है। इसे लेकर महिलाओं को बहुत ज्यादा सतर्क रहना जरूरी है। प्रीक्लेम्पसिया वह स्थिति है, जिसमें प्रेग्नेंसी के दौरान हाई बीपी होने के कारण महिला के कुछ अंगों जैसे किडनी, लिवर आदि सही तरह से काम करना बंद कर देते हैं। यदि इसका शुरुआत में ही इलाज न किया जाए और यह गंभीर रूप ले ले, जिससे किडनी फेलियर, लिवर फेल और ब्रेन डैमेज हो सकता है। यह कोमा में भी पहुंचा सकता है, जो बाद में जान भी ले सकता है।हाई बीपी और प्रीक्लेम्पसिया होने की स्थिति में इलाज के बाद महिला को समय से पहले बच्चे को जन्म देना पड़ सकता है। ऐसे ज्यादातर केस में इसके लिए सी-सेक्शन डिलिवरी का सहारा लिया जाता है। दरअसल, हाई बीपी गर्भ तक जाने वाली नसों का साइज छोटा कर देता है, जिससे बच्चे तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन व न्यूट्रिशन नहीं पहुंचता, जो उसके धीमे विकास की वजह बन जाता है। ऐसे में जन्म के समय बच्चे का वजन काफी कम होता है, जिससे उसे मेडिकल सहायता देनी पड़ती है। जिसके अलावा ब्लड प्रेशर ज्यादा होने पर प्लेसेंटा यूट्रेस की वॉल से अलग हो सकता है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को ऑक्सिजन और पोषण नहीं मिल पाता। इसके साथ ही इस स्थिति में ब्लीडिंग भी शुरू हो सकती है, जो मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। हाई बीपी के ज्यादातर मामलों में डॉक्टर सी-सेक्शन डिलिवरी का ही सुझाव देते हैं, क्योंकि नैचरल डिलिवरी के दौरान शरीर के अंगों पर जोर पड़ता है, जो वैसे ही ब्लड प्रेशर को प्रभावित करता है। ऐसे में पहले से हाई बीपी होने पर नैचरल डिलिवरी करवाना जान पर भारी पड़ सकता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *