घोडों से पहुंचाया जाता है छात्रावासों में राशन, घानाकौढिया तक पहाड़ के कारण नही है रास्ता

छिंदवाड़ा, पातालकोट की भौगोलिक बनावट विकास ने विषम परिस्थितियां खड़ी करती है लेकिन यहां निवास करने वाले भारिया जनजाति को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शासकीय सेवक भी कम जतन नही करते है पातालकोट के गांव घाना कौढ़िया और मउ के सूखा भंडार में आदिवासी विकास विभाग में 50-50सीटर छात्रावास बनाए है इन छात्रावासों में सीट हाउसफुल है पातालकोट के ही गांवों के बच्चे छात्रावासों में आवासीय सुविधा के साथ पहली से कक्षा आठवीं तक की अनिवार्य शिक्षा हासिल कर रहे है आवासीय छात्रावास के लिए हर माह राशन पानी की जरूरत होती है राशन पातालकोट के ऊपर के गांव गैलडुब्बा की राशन दुकान से उपलब्ध होता है लेकिन इसे घानाकौढ़िया और मउ के छात्रावासों में पहुंचाना आसान नही होता है दोनों गांव पहाड़ की तराई में बसें है यहां पहुंचने के लिए अब तक रास्ता नही बना है और भौगोलिक बनावट के कारण यहां रास्ता बनना भी संभव नही है ग्रामीण पहाड़ के रास्ते से ही आना-जाना करते है ऐसे में विभाग के सामने यह समस्या थी कि छात्रावासों तक राशन कैसे पहुंचाया जाए और विभाग के छात्रावासो के अधीक्षकों ने ही इसका हल निकाला है पहले अधीक्षक मजदूर लगाकर एक-एक बोरी अनाज छात्रावास तक ढुलवाते थे लेकिन मजदूर की हालात भी खराब हो जाती थी ऐसे में अधीक्षकों ने वहां दो घोड़े वालों की व्यवस्था की है जो हर माह अपने घोड़े लेकर गैलडुब्बा पहुंचते है और फिर घोड़ों पर अनाज लादकर उन्हें छात्रावास तक पहुंचाया जाता है विभाग छात्रावास के खर्चे के साथ ही हर माह घोड़े से अनाज ढुलवाई का खर्चा भी उठा रहा है।
पातालकोट में है चार छात्रावास
आदिवासी विकास विभाग ने पातालाकेट के 12गांवों में से 4गांवों में छात्रावास बनवाएं है चारों छात्रावास 50-50सीटर है और पातालकोट के गांवों में रहने वाले भारिया जनजाति के बच्चों को यहां प्रवेश दिया गया है। ये छात्रावास केवल छात्रावास नही बल्कि स्कूल भी है यहां बच्चों को पहली से आठवीं तक शिक्षा दी जाती है। ये छात्रावास मउ के गांव सूखा भंडार, घानाकौढ़िया, चिमटीपुर और रातेड़ में बनाएं गए है चिमटी पुर और रातेड़ पातालकोट के ऊपर गांव के जबकि सूखाभंडार और घानाकौढिया पातालकोट के भीतर गांव है जहां आवागमन ð लिए पैदल के अलावा दूसरा विकल्प नही है।
इनका कहना है
पातालकोट के भीतर गांवों में रास्ता ना होने से छात्रावासों में राशन की ढुलाई हर माह घोड़ों के माध्यम से कराई जाती है। घोड़े वाले गैलडुब्बा राशन दुकान से निश्चित तिथि पर राशन लेकर घोड़ों के माध्यम से पहाड़ उतरकर छात्रावास तक पहुंचते है।

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