‘राम वनगमन पथ’ पर बने माता सीता का मंदिर, लंका में मंदिर रावण का चारण और मंथरा का अनुयायी ही चाहेगा – पीसी

भोपाल, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व मंत्री, पी.सी. शर्मा ने माता सीता के लंका में मंदिर निर्माण को लेकर पलटबार करते हुए कहा कि राजनैतिक स्वार्थ के वशीभूत पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान माता सीता जी का मंदिर लंका में बना कर अपहरण एवं अग्निपरीक्षा की पीड़ा और वेदनाओं को चिरस्थाई बनाना चाहते हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि सीता जी के लिए सर्वस्व भगवान राम हैं, वे पति की अनुगामिनी बनीं ताकि उनके पति स्वयं को कभी अधूरा अनुभव न करें। अशोक वाटिका के बंदी जीवन में भगवान राम के विरह की वेदनाओं से व्यथित और रावण की प्रताड़नाओं से पीड़ित माता सीता जी कभी अपने हरण और भगवान राम से वियोग को स्मरण भी नहीं करना चाहती थीं। लंका में जो कुछ घटा था वो माता सीता जी के लिए बेहद दुखदाई और पीड़ादाई था। लंकापति रावण का माता का आत्मसमर्पण चाहना और माता सीता की अग्निपरीक्षा की विवशता, दोनों ही माता के लिए अत्यंत कड़वी यादें उस भूमि से जुड़ी हैं। माता सीता के लिए अशोक वाटिका में वेदनाओं से भरा था वो समय ।अपहरण से भी अधिक वियोग से माँ आहत थीं। पल-पल, तिल-तिल कर वो समय व्यतीत करती थीं।
सीता जी की वेदनाओं को समझने के लिए लंका में घटित दो प्रसंग ही काफी हैं।
1) एक बार रावण ने अशोक वाटिका में माता सीता के सम्मुख दो कटे हुए शीश फेंक दिए और कहा, ‘‘ये लो मैने तुम्हारे पति और उसके छोटे भाई का वध कर दिया है। अब तुम्हें बचाने कोई नहीं आएगा।’’ जब रावण चला गया तो त्रिजटा बोली, ‘‘यही छल रावण ने राम के साथ भी किया है। उसने मायावी बेंजकाया को तुम्हारा रूप धर कर सागर में बहा दिया ताकि राम तुम्हारी खोज त्याग दें।’’ ऐसी अनेकों यातनाएं सीता जी को दी जाती थीं।
2) जब भगवान राम ने रावण के साथ भीषण युद्ध लड़कर लंका पर विजय पाई तब अपने प्रभु राम से मिलने के लिए आतुर माता सीता ने भगवान राम की आँखों में देखा और अव्यक्त विचारों का आदर किया, क्योंकि राम के प्रति असीम विश्वास से उपजा था, उनका धैर्य।
अतः सीता जी ने शांत भाव से कहा, ‘‘लकड़ी के लट्ठे और तिनकों की ढेरियाँ लेकर आग का अलाव जलाइए’’ और वे अग्निपरीक्षा को समर्पित हो गईं। लंका में सीता जी के मंदिर का निर्माण माता को रावण की पीड़ा और प्रताड़ना की याद दिलाने वाला और अग्निपरीक्षा की आग में पुनः झोंकने जैसा होगा। माता सीता के लंका में मंदिर का निर्माण कोई रावण का चारण और मंथरा का अनुयायी ही चाहेगा।
अतः भगवान राम-माँ जानकी और लक्ष्मण जी के वैभवशाली मंदिर का निर्माण मध्यप्रदेश के ‘राम वनगमन पथ’ पर कराइए और प्रभु सीता-राम के पवित्र पग मध्यप्रदेश की भूमि को पावन कर गए इस बात को चिरस्थाई बनाइए।

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