भोपाल, उच्च शिक्षा विभाग 2009 में भर्ती हुए प्रोफेसरों के वेतनमान को लेकर बैगफुट पर आ गया है। 28 अप्रैल को जारी आदेश में विभाग ने 2009 में जारी विज्ञापन से भर्ती हुए प्रोफेसरों को रीडर बनाया था। उनका वेतनमान 15600-39000 एजीपी 8000 कर दिया। अब विभाग ने गलती मानते हुए इस आदेश को निरस्त कर दिया है। इधर, एसटीएफ में दर्ज प्रकरण में 65 प्रोफेसरों के खिलाफ सबूत होने के बाद भी विभाग कार्रवाई करने से बच रहा है।
28 को जारी आदेश हाईकोर्ट की अवमानना
एमपीपपीसी द्वारा चुने गए 65 कालेज प्रोफेसरों के खिलाफ एसटीएफ में प्रकरण दर्ज है। नियुक्ति और चयन विवादस्पद होने पर शासन ने इनकी परवीक्षा समाप्त नहीं की। कोर्ट ने 3 माह में शासन को आदेश जारी करने कहा है। लेकिन विभाग ने 28 अप्रैल को 8000 एजीपी का आदेश दिया। जबकि 65 प्रोफेसरों के खिलाफ कार्रवाई होना थी। 28 को जारी आदेश हाईकोर्ट की अवमानना है, इसलिए विभाग ने निरस्त किया।
निरस्त किए आधा दर्जन संशोधन
यूजीसी ने कालेज प्रोफेसरों का 12000-18300 वेतनमान 37400-67000 एजीपी 9000 स्वीकृत किया। ये आदेश 28 नंवबर 2009 को जारी किया। इसे निरस्त कर 16 अप्रैल 2010 को प्रोफेसरों का एजीपी 10,000 हुआ। इसके 6 संशोधन निकाले गए, जिन्हें निरस्त कर 14 सितंबर 2010 को नए आदेश में प्रोफेसरों को एजीपी 10,000 दिया गया। यह पदनाम से था। वेतनमान का तथस्थायी एजीपी 9 हजार ही था।
हाईकोर्ट में विचाराधीन है मामला
यूजीसी ने 2009 में विज्ञापन द्वारा प्रोफेसरों को एजीपी 10,000 पर नियुक्ति दी। यूजीसी स्पष्ट कर चुका था कि नये रीडर को 15600-39000 के वेतनमान में एजीपी 8 हजार देना है। इसके अनुपालन में 2013 में शासन ने आदेश जारी किया, जिसे हाईकोर्ट ने स्थगित कर दिया, यह अभी विचारधीन है। एजीपी 2 हजार सहित वेतनमान भुगतान फरवरी 2012 से हो रहा है। प्रोफेसरों ने अवमानना चायिका दायर कर दी थी। दूसरी ओर पदोन्नत प्रोफेसरों को पूर्व में दिया गया वेतनमान में एजीपी दस के स्थान पर नौ हजार कर दिया गया।