कोलांस नदी और भोपाल झील का पुनर्जीवन होगा, भोपाल के 63 और सीहोर के 24 गांवों में होंगे काम

भोपाल, राज्य शासन की मंशा अनुरूप कमिश्नर श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव ने पानी और पर्यावरण संरक्षण के लिए फिर से एक बड़ा कार्यक्रम प्रारंभ किया है। कोलांस नदी के पुनर्जीवन के साथ ही भोपाल के बड़े तालाब को अपने पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए जल्दी ही भोपाल के 63 और सीहोर के 24 गांवों में समन्वित कई कार्य कराए जाएंगे । आज सम्पन्न हुई बैठक में ग्राम एवं नगर निवेश द्वारा तैयार किए गए प्रजेंटेशन पर गंभीर चर्चा के बाद कार्यवाही के बिन्दु निर्धारित किए गए हैं।
बैठक में कलेक्टर भोपाल तरूण पिथोड़े, सीहोर कलेक्टर अजय गुप्ता, मुख्य वन संरक्षक एस.के.तिवारी सहित आयुक्त नगर निगम भोपाल विजय दत्ता तथा जिला पंचायत भोपाल के सीईओ सतीश कुमार एस, सीहोर के सीईओ अरूण विश्वकर्मा और ग्राम एवं नगर निवेश की संयुक्त संचालक श्रीमती सुनीता सिंह और अन्य विभागों के अधिकारी उपस्थित थे। बैठक में कोलांस नदी की लगातार कम होती जा रही जलधारा पर गंभीर चिंता तो व्यक्त की ही भोपाल की प्यास बुझाने वाले बड़े तालाब के जल भराव एरिया में आई कमी को भी गंभीरता से लिया गया। कमिश्नर ने दोनों कलेक्टर्स से कहा है कि वे लघु और दीर्घकालीन दो योजनाएं बनाएं।
कमिश्‍नर ने इन दोनों स्त्रोतों से जुड़े सीहोर और भोपाल के 87 ग्रामों के लिए प्रत्येक गांव का अलग अलग प्लान बनाने के कलेक्टर्स को निर्देश दिए। नदी और तालाब से ग्रामों और आबादी की सीमा यानि हदबंदी, वाटर रिचार्जिंग के लिए किए जाने वाले कार्य और सघन वन क्षेत्र तैयार करने पर तत्काल काम प्रारंभ किया जाएगा । हदबंदी कर कोलांस और तालाब को बचाने के लिए ग्रामीणों के साथ बैठकर और विशेषज्ञों के साथ मौका मुआयना कर प्लानिंग की जाएगी। हरियाली से हदबंदी का काम शीघ्र शुरू किया जाएगा ।
कृषि- उद्यानिकी और वन विभाग के समन्वय से एक दो वर्षीय कार्य योजना बनाकर कार्य प्रारंभ किया जाएगा । बैठक में तय किया गया है कि तालाब के किनारों को हरा-भरा बनाकर यानि हरियाली से हदबंदी की जाएगी । यह भी तय किया गया कि किसानों को रासायनिक खेती की जगह जैविक खेती करने पर जोर दिया जाएगा । उस दौरान प्रवासी पक्षियों की आमद बढ़ाने के लिए पर्यावरण संरक्षण किये जाने पर बल दिया गया। इस एरिया में जो भी निर्माण कार्य किए जाएंगें वे ऐसी तकनीक से होंगे कि कहीं भी जलधारा को क्षति नहीं पहुंचे। कोशिश होगी कि नदी और झील में जाने वाली मिट्टी को कटाव एरिया में ही रोका जाए ।

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