नई दिल्ली,अर्थव्यवस्था की सेहत को रेखांकित करने वाली आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट गुरुवार को संसद में पेश की गई। आर्थिक समीक्षा मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने तैयार की है। आर्थिक सर्वे में अनुमान व्यक्त किया गया है कि आगामी वित्तवर्ष 2019-2020 में देश की जीडीपी 7 फीसदी तक रह सकती है। उल्लेखनीय है कि आर्थिक सर्वे में अगले वित्त वर्ष के लिए केंद्र सरकार के नीतिगत फैसलों के संकेतक के रूप में भी देखा जाता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में सर्वे रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा। आर्थिक सर्वे दरअसल बजट से ठीक पहले देश की आर्थिक दशा की तस्वीर होती है। इसमें पिछले 12 महीने के दौरान देश में विकास का ट्रेंड क्या रहा, योजनाओं को किस तरह अमल में लाया गया? इस बारे में विस्तार से बताया जाता है। इस बार के आर्थिक सर्वे में वित्त वर्ष 2019-20 में देश की विकास की रफ्तार 7 फीसदी रहने का अनुमान जाहिर किया गया है।
सर्वे में आर्थिक वृद्धि के लिए अच्छी संभावनाओं की भविष्यवाणी की गई है। देश को 2024-25 तक 5,000 अरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर को निरंतर 8 प्रतिशत पर रखने की जरूरत होगी। समीक्षा कहती है कि 2024-25 तक भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टारगेट को हासिल करने के लिए भारत को अपनी वास्तविक वृद्धि दर को 8 प्रतिशत पर बनाए रखने की जरूरत होगी।
उल्लेखनीय है कि 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर पांच साल के न्यूनतम स्तर 6.8 प्रतिशत रही थी। 7 फीसदी ग्रोथ का मतलब है कि भारत दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ता रहेगा। वहीं, ग्लोबल ग्रोथ के कम रहने की भी संभावना व्यक्त की गई है।
समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि मांग, नौकरियों, निर्यात की विभिन्न आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए इन्हें अलग समस्याओं के रूप में नहीं, बल्कि एक साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि भारत की औसत विकास दर 2015-15, 2017-18 में न केवल चीन से बल्कि कई दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से भी ज्यादा रही थी।
सर्वे में 2018-19 में राजकोषीय घाटा 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जाहिर किया गया है। 2018 में यह 6.4 फीसदी था। इसका संशोधित बजट अनुमान 3.4 प्रतिशत का था। राजकोषीय घाटा आखिर होता क्या है, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जिस तरह से कमाई से ज्यादा खर्च किसी व्यक्ति की वित्तीय सेहत के लिए खतरनाक होता है, उसी तरह किसी देश को ज्यादा खर्च बर्बाद कर सकता है। देश की आय की तुलना में ज्यादा खर्च के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता हैं।
आर्थिक सर्वे में आने वाले दिनों तेल कीमतों में गिरावट का अनुमान जताया गया है। सर्वे के मुताबिक तेल कीमतों में 2019-20 में गिरावट आएगी। आर्थिक सर्वे में भविष्य में जल संकट की ओर गंभीर इशारा किया गया है। 2050 तक भारत में ‘पानी की किल्लत’ एक बड़ी समस्या होगी। सर्वे में कहा गया है कि सिंचाई जल पर तुरंत विचार करने की जरूरत है ताकि कृषि की उत्पादकता बढ़ सके।
सर्वे में न्यूनतम मजदूरी तय कर करने की एक रूपरेखा भी तय की गई है। सर्वे में कहा गया है कि एक बेहतर और प्रभावी न्यूनतम मजदूरी तय करने की प्रक्रिया को मजबूत किया जाएगा। इससे निचले स्तर पर न्यूनतम मजदूरी को बेहतर किया जा सके।क्लाइमेट चेंज पर भी सरकार के प्रयासों के रूपरेखा की चर्चा आर्थिक सर्वे में किया गया है। सर्वे में कहा गया है कि भारत के 2020 तक 20-25 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की घोषणा को देखते हुए क्लाइमेट चेंज ऐक्शन प्रोग्राम (सीसीएपी) को कुल 290 करोड़ की लागत से 2014 में लॉन्च किया गया था।