नई दिल्ली, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने डॉक्टरों को सुरक्षा देने के लिए मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा और इसके साथ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा तैयार मसौदे को अटैच किया। हिंसा रोकथाम और नुकसान या संपत्ति नुकसान अधिनियम, 2017 मसौदे के तहत डॉक्टरों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ 10 साल की जेल और 5 लाख का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। हालांकि आईएमए वर्तमान में डॉक्टरों पर हमला करने वालों को सात साल की जेल देने की मांग कर रहा है।
इस मसौदे को आईएमए ने 2017 में ही मंत्रालय को सौंपा था। जिसमें डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग की गई थी। पश्चिम बंगाल के एनआरएस अस्पताल में हुई हिंसा के बाद एक बार फिर आईएमए ने अपनी मांग दोहराई है। मसौदा में कड़े प्रावधान किए गए हैं। इसमें डॉक्टरों पर होने वाली शारीरिक और मानसिक हिंसा को वर्गीकृत किया गया है। यह केवल अस्पताल या उसके आस-पास के 50 मीटर दायरे को ही नहीं बल्कि होम विजिट (घर आकर चेकअप करना) को भी कवर करता है। मसौदे के अनुसार इस तरह की हिंसा को संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध मानकर प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में ट्रायल चलाने योग्य माना जाना चाहिए। दंड प्रावधानों के अलावा मसौदे में कहा गया है कि यदि दोषी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे क्षतिपूर्ति के तौर पर मुआवजे की दोगुनी कीमत चुकानी होगी। आईएमए के तत्कालीन अध्यक्ष डॉक्टर केके अग्रवाल ने मंत्रालय को यह मसौदा सौंपा था। डॉक्टर अग्रवाल ने कहा, ‘उस समय जब हमने डॉक्टरों की कानूनी सुरक्षा की ओर ध्यान दिया तो हमें पता चला कि 19 राज्यों में कुछ कानून हैं। जब हमने अंतर-मंत्रालयी समिति से मुलाकात की तो अतिरिक्त सचिव ने कहा कि स्वास्थ्य राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसे में यदि राज्य केंद्र को इस तरह के कानून के लिए लिखेंगी तो एक केंद्रीय कानून बनाया जा सकता है। उनका कहना था कि भारतीय दंड संहिता में इस परिस्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। लेकिन हमारा कहना था कि सार्वजनिक हित में डॉक्टरों के लिए एक विशेष प्रावधान की आवश्यकता है। यदि एक डॉक्टर के साथ मारपीट होती है तो उसके ड्यूटी पर न आने से कई सौ मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। डॉक्टर हर्षवर्धन ने मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने पत्र में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सभी मुख्य सचिवों को भेजे गए जुलाई 2017 के पत्र का हवाला दिया जिसमें आईएमए द्वारा उठाए गए मुद्दों की समीक्षा करने के लिए मंत्रालय के तहत गठित अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा लिए गए निर्णय शामिल हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों को सुझाव दे कि यदि उनके पास डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट कानून नहीं है तो वह इस मसौदे पर विचार करें।