लोकतंत्र के महायज्ञ लोकसभा के चुनाव में 50 हजार करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान

नई दिल्ली, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महायज्ञ की पूर्णाहुति हो चुकी है। अगर इस यज्ञ पर खर्च हुई रकम पर नजर डाली जाए, तो होश फाख्ता हो जाएंगे। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अनुसार सात चरणों में कराए गए इस चुनाव का कुल खर्च 50 हजार करोड़ रुपए यानी 7 अरब डॉलर है। 17वें लोकसभा चुनाव को दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव माना गया है। 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का खर्च इससे कम करीब 6.5 अरब डॉलर था। 2014 के लोकसभा चुनाव का खर्च करीब 5 अरब डॉलर था। पांच साल बाद 2019 में हो रहे 17वें लोकसभा चुनाव में इस खर्च में 40 फीसद इजाफा हो चुका है।
एक मतदाता पर खर्च हुए 560 रुपए
जिस देश की साठ फीसद आबादी तीन डॉलर 210 रुपया प्रतिदिन पर गुजारा करती है, उसमें प्रति मतदाता औसतन आठ डॉलर (अगर एक डॉलर का मूल्य 70 रुपए हो तो कुल 560 रुपए) का खर्च लोकतंत्र को मुंह चिढ़ाता है। सर्वाधिक खर्च सोशल मीडिया, यात्राएं और विज्ञापन के मद में किया जाता है। 2014 में सोशल मीडिया पर महज 250 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, इस बार यह खर्च बढ़कर पांच हजार करोड़ रुपए जा पहुंच गया है।
विज्ञापन पर खर्च
जेनिथ इंडिया के अनुसार 17वें लोकसभा चुनाव में 26 अरब रुपए सिर्फ विज्ञापन के मद में खर्च किए गए। चुनाव आयोग के अनुमान के मुताबिक 2014 में दोनों मुख्य पार्टियों ने विज्ञापन पर करीब 12 अरब रुपए खर्च किए थे।
खर्च सीमा का ख्याल किसी को नहीं
राज्यों के हिसाब से लोकसभा चुनाव में कोई प्रत्याशी 50 लाख से 70 लाख के बीच खर्च कर सकता है। अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम को छोड़कर कोई भी उम्मीदवार किसी भी प्रदेश में अपने चुनाव प्रचार में अधिकतम 70 लाख खर्च कर सकता है। ऊपर के तीनों राज्यों में खर्च सीमा 54 लाख है। दिल्ली के लिए यह सीमा 70 लाख जबकि अन्य संघ शासित प्रदेशों के लिए 54 लाख है। विधानसभा चुनावों के लिए यह सीमा 20 लाख से 28 लाख के बीच है। इनमें किसी भी उम्मीदवार के चुनाव प्रचार में शामिल कुल खर्च होता है चाहे वह उसका कोई समर्थक खर्च करे या फिर राजनीतिक दल। चुनाव के पूरा होने के बाद सभी उम्मीदवारों को अपने खर्च का विवरण &0 दिनों के भीतर चुनाव आयोग को देना होता है।
बढ़ता चुनाव खर्च
चुनाव आयोग के अनुसार पहले तीन लोकसभा चुनावों का खर्च 10 करोड़ रुपए से कम या उसके बराबर था। इसके बाद 1984-85 में हुए आठवें लोकसभा चुनाव तक कुल खर्च सौ करोड़ रुपए से कम था। 1996 में 11वें लोकसभा चुनाव में पहली बार खर्च में पांच सौ करोड़ रुपए का आंकड़ा पार किया। 2004 में 15वें लोकसभा चुनाव तक यह खर्च एक हजार करोड़ रुपए को पार कर गया। 2014 में खर्च &870 करोड़ रुपए 2009 के खर्च से करीब तीन गुना अधिक था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *