नई दिल्ली, लोकसभा चुनाव का रण जारी है। पांच चरणों के चुनाव संपन्न हो गए हैं। सिर्फ दो चरण का मतदान बचा है। एक तरफ सत्तारूढ़ भाजपा अपनी वापसी के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल मोदी सरकार को हटाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तमाम नेताओं का दावा है कि पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे, तो कांग्रेस भी सरकार बनाने का दावा कर रही है। हालांकि अगर किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला तो अभी तक एनडीए और यूपीए दोनों से किनारा करने वाले क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। यानी ऐसी स्थिति में ‘किंग’ कोई भी बने ‘किंगमेकर’ क्षेत्रीय दल हो सकते हैं।
लोकसभा चुनाव में अगर एनडीए या यूपीए को बहुमत नहीं मिलता है तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा), मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बीजेडी (बीजू जनता दल), तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति) और वाईएस जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
गौरतलब है कि इस बार उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठनबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि इस गठबंधन को यूपी में अच्छा-खासा फायदा हो सकता है। इसी तरह आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के भी अच्छे प्रदर्शन के कयास लगाए जा रहे हैं। अगर चुनाव नतीजे कयासों के मुताबिक ही रहे तो ये दल केंद्र की कुर्सी तक पहुंचने में अहम भूमिका निभाएंगे। पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश में सपा को सिर्फ 5 सीटें मिली थीं। जबकि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका था। इसी तरह ओडिशा में बीजेडी के खाते में 19, टीआरएस के खाते में 11 और वाईएसआर को 9 सीटें मिली थीं। लेकिन 2014 के बाद सियासी स्थिति काफी बदल चुकी है। यूपी में 80 में से 71 सीटें जीतने वाली भाजपा को उप चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था। सपा-बसपा गोलबंद हैं, ऐसे में स्थितियां 2014 से अलग हो सकती हैं।
इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी हुंकार भर रही हैं और वे लगातार मोदी सरकार पर हमलावर हैं। पिछले दिनों कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर ममता बनर्जी ने अपनी ताकत दिखाई थी। दूसरी तरफ, चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता भी ममता बनर्जी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। यानी गैर एनडीए और गैर यूपीए सरकार की स्थिति बनी तो ममता बनर्जी की भूमिका भी काफी अहम हो सकती है।