‘दद्दा’ मलखान सिंह को अब डकैत कहलाना पसंद नहीं, अन्याय और महिला अस्मिता के मुद्दे पर लड़ रहे चुनाव

लखीमपुर खीरी, ‘दद्दा’ मलखान सिंह को अब डकैत कहलाना नहीं पसंद। उन्होंने चंबल के बाहर तक अपनी छवि रॉबिनहुड की बना रखी है। वह कहते हैं, ‘मैंने 15 साल चंबल पर राज किया। जी हां हम बात कर रहे है रौबीली मूछें, माथे पर तलवार के जैसा तिलक और डकैतों की सी वेशभूषा वाले पूर्व दस्यु सरगना ठाकुर मलखान सिंह की। 70 के दशक में चंबल जिनके नाम से कांप जाता था, वह ठाकुर मलखान सिंह अब बीहड़ों से बाहर आ चुके हैं। नेपाल की सीमा से 85 किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी पहुंचे मलखान उत्तर प्रदेश के धौरहरा से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।
मलखान अब 76 साल के हैं और खुद को बागी ही कहते हैं। हालांकि, 1982 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद से उन्होंने अपनी अमैरिकन सेल्फ-लोडिंग राइफल नहीं उठाई है। पूर्व समाजवादी पार्टी नेता शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया के टिकट पर चुनाव लड़ने का जिम्मा जरूर उठा लिया है। वह अन्याय और महिला अस्मिता के मुद्दों पर मैदान में हैं।
दद्दा से जब सवाल किया गया कि आखिर क्यों उन्होंने मध्य प्रदेश छोड़कर उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो वह जवाब में पूछते हैं कि जब पीएम मोदी गुजरात छोड़कर वाराणसी से चुनाव लड़ सकते हैं तो वह धौरहरा से क्यों नहीं लड़ सकते। मलखान को उनके खूनी इतिहास और उन पर चले 94 केसों की याद दिलाने पर वह नाराज हो जाते हैं और कहते हैं, ‘मुझे डकैत मत कहो, मैं बागी हूं। सबसे बड़े डकैत नेता और नौकरशाही। विजय माल्या और नीरव मोदी असली डकैत हैं।’ अपने इतिहास के बावजूद उन्होंने चुनावी शपथपत्र में उन्होंने किसी आपराधिक आरोप होने की बात से इनकार किया है। उनका कहना है कि वह अपनी सजा भुगत चुके है और उन्हें अदालतों ने बरी कर दिया है। धौरहरा से मलखान ने इससे पहले 2009 में कांग्रेस के जितिन प्रसाद के लिए कैंपेन किया था। हालांकि, उन्होंने आगे बताया, ‘मुझे बांदा से कांग्रेस का टिकट चाहिए था। मैं ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज बब्बर से मिला। जितिन प्रसाद ने मुझे बताया कि मेरी उम्मीदवारी पक्की है। फिर उन्होंने मुझे धोखा दिया। मैं धोखे का बदला लूंगा।’

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