भोपाल, मध्यप्रदेश में जनवरी 2019 से अब तक (तीन माह में) 12 बाघों की मौत हुई है। इनमें से पांच बाघ सिर्फ कान्हा नेशनल पार्क में मरे हैं। जबकि वर्ष 2018 (जनवरी से दिसंबर) में प्रदेश में 29 बाघों की मौत हुई थी, जिसमें से कान्हा में आठ बाघों की मौत का रिकॉर्ड है। सूत्रों की माने तो विश्व प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क, बांधवगढ़ की राह पर चल पड़ा है। बाघों की मौत के मामले में कान्हा लगातार दूसरे साल पहले नंबर पर है। पार्क में जनवरी से अब तक (तीन माह में) पांच बाघों की मौत हो चुकी है। यहां दो ऐसे भी मामले हुए हैं, जिनमें बाघ-बाघिन को मारकर बाघ उसका मांस खा गया। हालांकि यह अनोखी घटना नहीं है। इससे पहले पन्ना और पेंच नेशनल पार्क में भी इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि बिल्ली प्रजाति में ऐसा होता है। बाघों की मौत के मामले में बांधवगढ़ नेशनल पार्क वर्ष 2017 में पहले स्थान पर था, लेकिन वर्ष 2018 से कान्हा पार्क में लगातार बाघों की मौत हो रही हैं। अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक पार्क में 10 बाघों की मौत हुई है। यह प्रदेश के अन्य नेशनल पार्कों में हुई बाघों की मौत से बड़ा आंकड़ा है।
पार्क में दो माह के अंतराल से दूसरी घटना चार दिन पहले हुई है, जिसमें एक बाघ दूसरे को मारकर खा गया। चार दिन पहले पार्क के गश्ती दल को एक बाघ का शव क्षत-विक्षत हालत में मिला था। पड़ताल में पता चला कि बाघ टी-56 ने बाघ टी-36 को मारा और उसके शरीर का कुछ हिस्सा भी खा लिया।बाघों में दूसरे को मारकर खाने की घटना अनोखी नहीं है। इससे पहले पन्ना और पेंच नेशनल पार्क में ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन यह गंभीर बात है कि एक ही बाघ दो बाघों को मारकर खा गया है। कान्हा के बाघ टी-56 ने 21 जनवरी को एक बाघिन को मारा था, जिसके शरीर का कुछ हिस्सा वह खा गया था। ऐसे ही इस बाघ ने 22 मार्च को एक बाघ को मारा और उसके भी शरीर का कुछ हिस्सा खा गया। एक ही बाघ दो बार एक जैसी घटना को अंजाम दे चुका है। हालांकि वन अफसर इन घटनाओं को सामान्य बता रहे हैं। वे कहते हैं कि वर्चस्व की लड़ाई में ज्यादा जान जा रही हैं। जबकि जानकार कहते हैं कि मैदानी अफसर इन घटनाओं को रोक नहीं पा रहे हैं। अफसरों को बाघों में आपसी टकराव के सही कारणों का पता करना चाहिए, तभी बाघों को बचाया जा सकता है, क्योंकि पार्क प्रबंधन का दावा है कि पार्क में चीतल, हिरन सहित अन्य वन्यप्राणियों की भरमार है। इसलिए बाघों के सामने खाने का संकट नहीं है।