नई दिल्ली, देश की सर्वोच्च अदालत ने राम जन्मभूमि विवाद मामले में भूमि अधिग्रहण एक्ट की वैधता पर दाखिल याचिका को मुख्य मामले के साथ टैग कर दिया है। इस मामले पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि जो कुछ कहना है वो संविधान पीठ के सामने कहें। हिंदू महासभा कमलेश कुमार तिवारी के साथ-साथ कई राम भक्तों ने लैंड एक्वीजिशन एक्ट की वैधता पर सवाल उठाया था।
इस याचिका में कहा गया है कि 1993 में 67.7 एकड़ जमीन अधिग्रहीत करने का अधिकार केंद्र के पास कभी था ही नहीं क्योंकि भूमि राज्य का विषय है। लिहाजा, केंद्र सरकार अपनी योजना के लिए राज्य की जमीन अधिग्रहीत नहीं कर सकती। 1993 में किया गया भूमि अधिग्रहण अवैध था।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि अयोध्या में जो गैर विवादित स्थल है, उसे रामजन्मभूमि न्यास को वापस सौंप दिया जाए। जिस भूमि पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद है वह सुप्रीम कोर्ट अपने पास रखे।
मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से दाखिल अपनी याचिका में कहा था कि अयोध्या में हिंदू पक्षकारों को जो हिस्सा दिया गया, वह रामजन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए। जबकि 2.77 एकड़ भूमि का कुछ हिस्सा भारत सरकार को लौटा दिया जाए। रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के पास करीब 70 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के पास है। इसमें से 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था। लेकिन जिस भूमि पर विवाद है वह जमीन 0.313 एकड़ ही है। सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में इस जमीन पर स्टे लगा दिया था और यहां पर किसी भी तरह की एक्टविटी पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 5 जजों की पीठ कर रही है जिसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल हैं। 29 जनवरी को इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी, जस्टिस बोबडे के छुट्टी पर जाने की वजह से सुनवाई टल गई थी।