नई दिल्ली,राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज नई दिल्ली में संविधान अंगीकार करने के वर्षगांठ के अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान, स्वतंत्र भारत का आधुनिक ग्रंथ है। इसका स्थान सर्वोच्च है, लेकिन यह धाराओं तथा नियमों/उपनियमों का संग्रह मात्र नहीं है। हम भारतीयों के लिए यह प्रेरणादायी और सजीव दस्तावेज है। हमारे समाज के लिए यह एक आदर्श है। राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ.बी.आर. अम्बेडकर और संविधान परिषद में उनके सहयोगी बहुत उदारवादी थे। उन्होंने संविधान संशोधन के लिए लचीला रूप अपनाया और इसमें विभिन्न विचार धाराओं का समावेश किया। स्वतंत्रता, न्याय व भ्रातृत्व, निष्पक्षता तथा समानता की सीमाओं को विस्तार देने के लिए संविधान निर्माताओं ने आने वाली पीढ़ियों की बुद्धिमत्ता पर भरोसा जताया। उन्हें विश्वास था कि आने वाली पीढ़ियां न सिर्फ संविधान का संशोधन करेगी बल्कि वे बदलते समय के अनुसार इसकी पुर्नव्याख्या भी करेंगी। यदि हम संविधान की भावना के प्रति सच्चाई बरतते हैं तो यह आने वाले सभी समय में देश की सेवा करता रहेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के नागरिक ही संविधान के अंतिम संरक्षण हैं। देश के नागरिकों में ही सम्प्रभुता समाहित है और नागरिकों के नाम पर ही संविधान को अंगीकृत किया है। संविधान नागरिक को सशक्त बनाता है साथ ही नागरिक भी संविधान का पालन करके, इसे संरक्षित करके और अपने शब्दों व कार्यों से इसे अधिक सार्थक बनाकर संविधान को सशक्त बनाते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में संभवत: सबसे महत्वपूर्ण शब्द है- न्याय। न्याय एक शब्द है, परंतु यह एक जटिल और स्वतंत्रता प्रदान करने वाली अभिव्यक्ति है। न्याय, हमारे संविधान और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का साधन और साध्य है। न्याय को समाज के विकास, बदलती मान्यताएं, जीवनशैली और प्रौद्योगिकी के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। सामाजिक न्याय हमारे राष्ट्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण विचार है। सरलतम शब्दों में यह समाज के असंतुलन को समाप्त करने पर केन्द्रित है। सामाजिक न्याय का अर्थ समान अवसर प्रदान करना भी है। न्याय की यह मान्यता १९४९ में मान्य थी और यह आज भी प्रासंगिक है।