ऊर्जा नगरी कोरबा हमेशा से भगवा ब्रिगेड के लिए अबूझ ही रहा है

(छत्तीसगढ़ चुनाव 2018 विशेष) कोरबा,ऊर्जा नगरी कोरबा हमेशा से भगवा ब्रिगेड के लिए अबूझ ही रहा है,यहाँ उसे राज्य की सत्ता में होने पर भी चुनाव जितने में पसीना आता रहा है। यह जिला छत्तीसगढ़ में ऊर्जा राजधानी के रूप में ख्याति रखता है। या यूँ कहा जा सकता है देश के मानचित्र पर यह नगर प्रमुख बिजली उत्पादक केंद्रों में शामिल है और पॉवर हब कहा जाता है। ऊर्जा नगरी कोरबा में कांग्रेस अर्से से बेहद पॉवरफुल है। जिले के वोटर भाजपा को हर चुनाव में झटके दे रहे हैं तो कांग्रेस को पॉवर । जिले की चार में से तीन सीटों पर कांग्रेस बीते दो चुनाव से कब्जा जमाए हुए है। 2013 में कांग्रेस ने रामपुर जैसे भाजपा के सुरक्षित गढ़ को ढहा दिया था, लेकिन कटघोरा ने जिले में भगवा की इज्जत बचा ली।
जिले की दो सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है, जबकि दो सामान्य है। लगभग सभी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है। लेकिन पाली-तानाखार सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोगंपा) लगातार दोनों पार्टियों की नाक में दम किए हुए है।परिसीमन से पहले जिले में विधानसभा की तीन सीट पाली-तानाखार, रामपुर और कटघोरा थी। 2008 में सीटों की संख्या बढ़कर चार हो गई। कोरबा अस्तित्व में आया।जिले में वोट शेयर के लिहाज से कांग्रेस लगातार हावी है। 2003 में जब केवल तीन सीट थी। कांग्रेस में दो और भाजपा के हिस्से में एक सीट आई, लेकिन भाजपा को 42 व कांग्रेस को 52 फीसद वोट मिले थे। 2008 में करीब 40 फीसद और 2013 में बढ़कर यह करीब 43 फीसद तक पहुंच गया।भाजपा का वोट हर चुनाव में बदल रहा है। 2003 में पार्टी को 42 फीसद वोट मिले। 2008 में गिरकर 33 फीसद आ गया। 2013 में वोट शेयर दो फीसद बढ़ा, लेकिन 2003 के मुकाबले फिर भी कम ही रहा।आदिवासी बाहुल्य कोरबा जिले की चार विधानसभा सीट में से दो आदिवासी वर्ग के लिए एवं दो सीट सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित है।
रामपुर विधानसभा
कोरबा जिले की रामपुर विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है। कंवर समुदाय के लोगों का इस सीट पर कब्जा रहा है। मौजूदा समय में यह सीट कांग्रेस के पास है। जबकि इससे पहले दो बार बीजेपी जीत हासिल कर चुकी है।दिलचस्प बात ये है कि छत्तीसगढ़ के गठन से पहले मध्यप्रदेश में यहां के विधायक रहे प्यारेलाल कंवर, दिग्विजय सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके बावजूद आदिवासियों की न तो तकदीर बदली और न ही क्षेत्र की तस्वीर। क्षेत्र की हालत जस की तस बनी हुई है। 2013 के चुनाव नतीजे में कांग्रेस के श्यामलाल कंवर को 67868 वोट मिले थे। बीजेपी के ननकीराम को 57953 वोट मिले थे। दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी के ननकी राम कंवर 1998 में यहां से पहली बार चुनाव जीते थे। इससे पहले कांग्रेस के प्यारेलाल कंवर इस सीट का प्रतिनिधित्व करते थे।2003 में छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में ननकीराम के सामने एक बार फिर कांग्रेस के प्यारेलाल कंवर थे। कांटे की टक्कर देखने को मिली, लेकिन महज 380 से ननकीराम ने प्यारेलाल को मात दे दी।बीजेपी के ननकीराम को 35642 वोट मिले थे।कांग्रेस के प्यारेलाल को 35262 वोट मिले थे।2008 के चुनाव नतीजे में रामपुर सीट से बीजेपी के ननकीराम लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने में सफल रहे। 2008 के चुनाव में भी दोनों के बीच सीधा मुकाबला हुआ। इस बार ननकीराम ने जीत का अंतर बढ़ा कर आठ हजार तक ले गए और लगातार तीसरी बार सदन में पहुंच गए।बीजेपी के ननकीराम को 58415 वोट मिले थे।कांग्रेस के प्यारेलाल को 50094 वोट मिले थे।
कोरबा विधानसभा
औद्योगिक व ऊर्जानगरी का दर्जा प्राप्त कोरबा विधानसभा को मिनी भारत की संज्ञा भी दी जाती है। यहां भारत के लगभग सभी राज्यों के लोग निवासरत हैं और सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग समस्याएं भी हैं।कोरबा विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण सीट है। पिछले दो चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की लहर के बावजूद कांग्रेस यहां पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है। यही कारण है कि अब जब रमन सिंह सरकार को राज्य में सत्ता चलाते हुए काफी समय हो गया है, तो इस एंटी इनकंबेसी का फायदा उठाया जा सके। कांग्रेस की पूरी कोशिश होगी कि वह एक बार फिर इतिहास को दोहराए और कोरबा पर बड़ी जीत हासिल कर हैट्रिक जमाए।वहीं, भारतीय जनता पार्टी इस इतिहास को तोड़ना चाहेगी। कोरबा जिला पूरी तरह से व्यवसायिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। यहां पर कई बड़ी कोयला कंपनियों को प्लांट, बिजली कंपनियों के प्लांट मौजूद हैं। ऐसे में व्यवसाय और रोजगार के हिसाब से कोरबा छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक माना जाता है।पिछले दो चुनावों में कोरबा सीट पर कांग्रेस के जय सिंह अग्रवाल बड़े अंतर से जीत दर्ज करते आए हैं ।2013 चुनाव में कांग्रेस के जय सिंह अग्रवाल,को 72386 वोट मिले थे जबकि जोगेश लांबा, बीजेपी को 57937 वोट मिले थे। जीत का अंतर 587 वोट था। 2008 चुनाव, में जय सिंह भैया, कांग्रेस,को 48277 वोट मिले थे वहीँ बनवारी लाल अग्रवाल, बीजेपी, 47690 वोट मिले थे। जीत का अंतर 14449 वोट था।
कटघोरा विधानसभा:
कोरबा जिले की कटघोरा विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। जबकि इससे पहले कांग्रेस का मजबूज गढ़ माना जाता था। इस बार बदले सियासी समीकरण में अजीत जोगी की पार्टी की दस्तक से मुकाबला दिलचस्प और त्रिकोणीय होने की उम्मीद है।कटघोरा विधानसभा सीट पर आजादी के बाद से छत्तीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले कांग्रेस के बोधराम कंवर का वर्चस्व रहा है।सन 1993 तक श्री कंवर लगातार इस सीट से विधायक रहे हैं। 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के बनवारी लाल अग्रवाल ने कटघोरा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। श्री अग्रवाल को 2003 के विधानसभा चुनाव में बोधराम कंवर से हार का सामना करना पड़ा।2013 तक श्री कंवर ही इस सीट से विधायक रहे। 2013 के चुनाव में भाजपा के मिस्टर क्लीन कहे जाने वाले लखनलाल देवांगन से बोधराम कंवर को हार का सामना करना पड़ा। 2013 में लखनलाल देवांगन ने बोधराम कंवर कांग्रेस को 13163 वोटों से मात दी थी। 2008 में बोधराम कंवर ने ज्योतिनंद दुबे भाजपा को 6979 वोटो से हराया था।
पाली – तानाखार :
पाली तानाखार विधानसभा सीट वैसे तो कोरबा जिले में आती है।.लेकिन ये बिलासपुर, सूरजपुर और कोरिया जिले की सरहद को भी छूता है।जितनी दिलचस्प इसकी भौगोलिक स्थिति है।उतनी ही यहां की राजनीति…दरअसल पिछले 15 सालों से प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा यहां कांग्रेस को हराने में असफल रही है। 2013 के चुनाव में तो वो यहां तीसरे नंबर पर रही थी।पाली-तानाखार विधानसभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। कांग्रेस का मजबूत दुर्ग माना जाता है, लेकिन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। मौजूदा समय में कांग्रेस के रामदयाल उइके विधायक हैं।2008 में परिसीमन के बाद पाली-तानाखार सीट अस्तित्व में आई है। इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के जयसिंजयसिंह अग्रवाल विधायक बने थे। ये इलाका बिलासपुर, सूरजपुर और कोरिया जिले की सरहद से लगा हुआ है।पाली तानाखार केंदई जलप्रपात और चैतुरगढ़ के प्राचीन मंदिरों के लिए प्रदेश में अपनी अलग पहचान रखता है। इसके बावजूद ये इलाका कोरबा जिले का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता है। यहां न तो कोई बड़े उद्योग स्थापित हो सके और न ही मूलभूत सुविधाएं।बता दें कि पिछले 15 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज बीजेपी यहां कांग्रेस को हराने में असफल रही है। 2013 के चुनाव में तो वो यहां तीसरे नंबर पर रही थी। जबकि कांग्रेस के रामदयाल उइके ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के प्रत्याशी को करीब 19 हजार वोट से शिकस्त दी थी।कांग्रेस के रामदयाल उइके को 69450 वोट मिले थे।जीजीपी के हीरा सिंह मरकाम को 40637 वोट मिले थे।बीजेपी के श्यामलाल मारवी को 33397 वोट मिले थे।2008 के चुनाव परिणाम में कांग्रेस के रामदयाल उइके को 56676 वोट मिले थे।जीजीपी के हीरा सिंह मरकाम को 27233 वोट मिले थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *