(नवरात्रि विशेष)भोपाल,सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते। स्वर्गापवर्गदे देवी कात्यायनी नमोस्तुते।
दुर्गा पजा के छठे दिन जिस देवी की पूजा का महात्मय है वह हैं देवी कात्यानी। देवी कात्यायिनी की जो व्यक्ति श्रद्धा भक्ति सहित पूजा करते देवी उनकी सभी प्रकार की कामना पूरी करती हें और व्यक्ति यश और सम्मान के साथ जीवन यापन करके अंत समय में देवी के लोक में स्थान प्राप्त करते हें।
देवी मां की महिमा के विषय में जानने से पहले आप मां के स्वरूप को अपनी आंखों में बसा लीजिए। कहा भी गया है कि निर्गुण रूप से सगुण ब्रह्म की उपासना आसान होती है इसिलए हमें भी मां के स्वरूप को अपने मन में बसा लेना चाहिए। देवी कात्यायनी का शरीर स्वर्ण के समान कांतिमय हैं। इनकी तीन आंखें हैं और चार भुजाएं हैं। देवी का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में हैं जो भक्तों के मन का भय दूर करने वाला और साहस प्रदान करने वाला है। नीचे वाला दायां हाथ भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने हेतु वरदान की मुद्रा मे हैं। देवी के ऊपर वाले बायें हाथ में चमकता हुआ तलवार है जो शत्रुओं को नष्ट करने के लिए तत्पर है और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प देवी के हाथ में शोभा पा रहा है।
यह देवी ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रूप में प्रकट हुई इसलिए मां कात्यायनी के नाम से त्रिलोक में पूजित होती हैं देवी महातम्य में दुर्गा सप्तशती में जिस महान असुर महिषासुर के वध का वर्णन किया गया है उस महिषासुर का मर्दन करने वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती देवी कात्यायनी है । देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से मुक्त कराने के लिए देवों के तेज से जिस महादेवी का प्रकटीकरण हुआ था वह देवी यही हैं। यह देवी ही सर्वेश्वरी हैं, महामाया है यही जगत के उद्धार के लिए नाना रूप धारण करती हैं। इनका वाहन सिंह है।
दुर्गा पूजा का छठा दिन अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इसदिन माता की आंखों के लिए बेल के फल को निमंत्रण दिया जाता है अर्थात उनकी पूजा की जाती है और उनसे कहा जाता है की मां ने आंखों की ज्योति के लिए आपको चुना है जिसे सप्तमी पूजा के दिन पेड़ से तोड़कर लाया जाता है और उससे मां की आंखें बनती है। इस दिन योग साधक आज्ञा चक्र की साधना करते हैं और इस च का भेदन कर कुण्डलिनी जागरण की दिशा में आगे बढ़ते हैं।
देवी कात्यायनी की पूजा शुरू करने से पहले कलश स्थित देवी दवताओं की पूजा करनी चाहिए फिर माता की प्रतिमा के दोनों ओर स्थित लक्ष्मी, गणेश, जया फिर कार्तिकेय, सरस्वती एवं विजया नामक योगिनी की पूजा करनी चाहिए। इनकी पूजा के पश्चात महिषासुरमर्दिनी भगवती कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए। मॉ की पूजा शुरू करते हुए सबसे पहले हाथों में फूल लेकर इस मंत्र से मां का ध्यान करना चाहिए चन्द्रहासोवलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दघाद्देवी दानवघातिनी ध्यान के बाद पंचोपचार सहित देवी की पूजा और आरती कीजिए। देवी की पूजा के बाद विधान के अनुसार महादेव और ब्रह्मा की पूजा करें। कहा गया है जो देवी कात्यायनी की पूजा श्रद्ध भक्ति सहित करता है उसकी हर कामना पूरी होती है। देवी के भक्त को रोग, दोष छू नहीं पाता और जीवन आनन्दमय रहता है।
(अमित व्यास द्वारा )