धर्म-अध्यात्म 1

कल्याणकारी और शुभ होता है स्वास्तिक
स्वास्तिक का अर्थ है शुभ और अच्छा होना। स्वास्तिक कल्याणकारी और शुभ होता है। घर के सारे कष्टों को दूर करता है स्वास्तिक। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी का प्रतीक चिन्ह होता है स्वास्तिक। इसलिए किसी भी पूजा को शुरू करने से पहले स्वास्तिक बनाया जाता है। घर पर बना स्वास्तिक चिन्ह दुख और संकट को टालता है।
लक्ष्मी होगी प्रसन्न
यदि घर में पैसों की तंगी होती है तो आप सिंदूर या कुमकुम के स्वास्तिक चिन्ह को घर के बाहर बनाएं। ऐसा करने से लक्ष्मी जी की कृपा आपके उपर बनती है और पैसों की कमी दूर होती है।
व्यापार में होगी तरक्की
आप सात गुरूवार घर के उत्तर पूर्वी कोनों पर गंगाजल डालें और वहां पर स्वास्तिक चिन्ह बनाएं। और गुड़ का प्रसाद भी चढ़ाएं। इस उपाय से व्यापर में तरक्की होती है।
मनोकामना पूरी होगी
यदि आप मनोकामना पूरी करना चाहते हैं तो किसी भी मंदिर में कुमकुम या गोबर का उल्टा स्वास्तिक चिन्ह बना लें और जैसे ही आपकी मनोकामना पूरी हो जाए तब आप मंदिर में सीधा स्वास्तिक बनाएं।
धन प्राप्त करने हेतु
धन चाहते हैं तो अपने घर की देहलीज की दोनों तरफ स्वास्तिक चिन्ह बना लें और उसके उपर मौली के धागे से बंधी हुई एक एक सुपारी स्वास्तिक के उपर रख दें।
घर में आती है शांति
अपने घर की उत्तर दिशा की दीवार पर हल्दी से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं ऐसा करने से घर में सुख शांति आती है।
पितरों होंगे खुश
घर में गोबर से स्वास्तिक चिन्ह बनाने से घर में पितरों की कृपा और सुख व समृद्धि के साथ शान्ति भी आती है।
स्वास्तिक के इन उपायों को करने से आपको बहुत फायदा मिलता है। यदि आप चाहते हैं कि सभी तरह के कष्ट और रोग आपके घर से दूर हों तो आप इन बताए गए उपायों का सही प्रकार पालन करें।

धर्म का लाभ प्राप्त होने का आशीर्वाद दें
‘धर्म लाभ हो’ यह ऐसा विशेष आशीर्वाद है जो विरले ही विलक्षण संत भक्तों को देते थे। एक दिन ऐसा ही आशीर्वाद पाकर एक भाग्यवान भक्त ने पूछ लिया, ‘महात्मा जी, आमतौर पर ऋषि-मुनि धनवान, दीर्घायु, समृद्ध और विजयी होने का आशीर्वाद देते हैं। आप धर्म का लाभ प्राप्त होने का आशीर्वाद क्यों देते हैं?
संत ने उसकी जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा, ‘ऊपर बताए जो आशीर्वाद तुम्हें अब तक मिलते रहे यह तो सामान्य आशीर्वाद हैं। लक्ष्मी और धन तो कृपण के पास भी बहुत हो सकता है। दीर्घायु भी बहुतों को मिल जाती है। संतान सुख ब्रह्मांड के सभी जीव भोगते हैं। मैंने तुम्हें जो धर्म-लाभ का अलौकिक आशीर्वाद दिया है उससे तुम्हें शाश्वत एवं वास्तविक सुख मिलेगा। धर्म-लाभ वह लाभ है जिसके अंदर दुख नहीं बसता। धर्म से जीवन शुभ ही शुभ बनता है। शुभता के अभाव में प्राप्त लाभ से गुणों में ह्रास और दुर्गुणों में वृद्धि होती है। अशुद्ध साधनों से अर्जित धन-लाभ आपको सुख के अतिरिक्त सब कुछ दे सकता है। उसमें आपको सुखों में भी दुःखी बनाने की शक्ति है।’
हम प्राय: धर्म लाभ और शुभ-लाभ को जानने का प्रयास नहीं करते हैं। शुभ अवसरों पर शुभ-लाभ लिखते अवश्य हैं, लेकिन लाभ अर्जित करते समय कभी इसका ध्यान नहीं रखते कि क्या इसकी प्राप्ति के साधन शुभ हैं? लाभ ऐसा हो जिससे किसी और को कलेश न हो, किसी को हानि न पहुंचे। लक्ष्मी वहीं निवास करती है जहां धर्म का निवास है और लक्ष्मी उसे कहते हैं जो शुभ साधनों से प्राप्त हो। सम्यक नीति से न्यायपूर्वक जो प्राप्त होती है वह वास्तविक संपदा है और बाकी सब विपदा। पैसा हमारे व्यक्तित्व में तभी सही चमक पैदा कर सकता है, जब हमारे मानवीय गुण बने रहें। अमेरिकी लेखक हेनरी मिलर का कथन है- मेरे पास पैसा नहीं है, कोई संसाधन नहीं है, कोई उम्मीद नहीं है, पर मैं सबसे खुशहाल जीवित व्यक्ति हूं।
नदी जब अपने स्वभाव में बहती है उसका जल निर्मल, पीने योग्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है लेकिन जैसे ही उसमें बाढ़ आती है, वह तोड़फोड़ और विनाश का कारण बनती है। उसका निर्मल जल मलिन हो जाता है। वर्तमान में भी जो धन का आधिक्य है वह अशुभ-लाभ और अशुद्ध साधनों की बाढ़ से अर्जित लाभ ही है। यही कारण है कि इस तरह से प्राप्त की हुई संपदा विपदा ही सिद्ध हो रही है। वर्तमान की सारी अशांति और अस्त-व्यस्तता की जनक यही अनीति से अर्जित धन संपदा है। अमेरिकी विद्वान ओलिवर वेंडेल का कहना है कि आमतौर पर व्यक्ति अपने सिद्धांतों की अपेक्षा अपने धन के लिए अधिक परेशान रहता है।
विपदा ने संपदा का लिबास पहन रखा है। शुभ कहीं जाकर अशुभ की चकाचौंध में विलीन हो गया है। सभी कम करके ज्यादा पाने की होड़ में लगे हैं। सब ‘ईजी मनी’ की तलाश में हैं, ‘राइट मनी’ की खोज में कोई नहीं है। इसमें सुख पीछे छूटता जा रहा है। हमारी भलाई इसी में है कि लाभ-शुभ का प्रतिफल बनें और लाभ का सदुपयोग भी शुभ में हो। पैसों की अंधी लालसा में जब हम बेईमानी, चोरी और भ्रष्टाचार से पैसा कमाने लगते हैं, तो हम पैसे का घोर निरादर कर रहे होते हैं। जिंदगी बेहतर होती है जब हम खुश होते हैं लेकिन बेहतरीन तब होती है जब हमारी वजह से लोग खुश होते हैं।

ॐ का सही उच्चारण करें
सनातन धर्म में पूजा पाठ शुरु करते समय ॐ का जाप किया जाता है। ‘ॐ’ तीन अक्षरों से मिलकर बना है – अ , ऊ और म यह ईश्वर के तीन स्वरूपों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। इसलिए इस शब्द में सृजन, पालन और संहार, तीनों शामिल हैं और इसे एक प्रकार से स्वयं ईश्वर ही माना जाता है।
अगर इस शब्द का सही प्रयोग किया जाय तो जीवन की हर समस्या दूर हो सकती है। इस शब्द का सही उच्चारण करने से ईश्वर की उपलब्धि तक की जा सकती है।
“ॐ” शब्द का सही उच्चारण करने के साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिये।
ॐ शब्द का उच्चारण करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त या संध्या काल का चुनाव करें।
उच्चारण करने के पूर्व इसकी तकनीक सीख लें अन्यथा पूर्ण लाभ नहीं हो पाएगा।
उच्चारण करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
जब आप ॐ का उच्चारण पूर्ण कर लें, तो अगले 10 मिनट तक जल का स्पर्श न करें।
नियमित रूप से उच्चारण करते रहने से दैवीयता का अनुभव होने लगेगा।
“ॐ” शब्द का सटीक और सरल प्रयोग इसके लिए करें
अच्छे स्वास्थ्य
तुलसी का एक बड़ा पत्ता ले लें।
उसको दाहिने हाथ में लेकर “ॐ” शब्द का 108 बार उच्चारण करें।
पत्ते को पीने के पानी में डाल दें। पीने के लिए इसी पानी का प्रयोग करें।
जो लोग भी इस जल का सेवन करें, सात्विक आहार ग्रहण करें।
मानसिक एकाग्रता तथा शिक्षा में सुधार के लिए
एक पीले कागज़ पर लाल रंग से “ॐ” लिखें।
“ॐ” के चारों तरफ एक लाल रंग का गोला बना दें।
इस कागज़ को अपने पढ़ने के स्थान पर सामने लगा लें।
वास्तु दोष के नाश के लिए
घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ सिन्दूर से स्वस्तिक बनाएं।
मुख्य द्वार के ऊपर “ॐ” लिखें।
ये प्रयोग मंगलवार को दोपहर को करें।
धन प्राप्ति के लिए
एक सफ़ेद कागज़ का टुकड़ा ले लें।
उस पर हल्दी से “ॐ” लिखें।
कागज़ को पूजा स्थान पर रखकर अगरबत्ती दिखाएं।
फिर उस कागज़ को मोड़कर अपने पर्स में रख लें।

(नवरात्री पर्व का प्रथम दिन) शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभय चन्द्रार्धकृत शेखराम् ।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ।।
मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका यह ‘शैलपुत्री’ नाम पड़ा था। वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशुल और बाये हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं।
अपने पूर्वजन्म में ये प्रजापति कन्या के रूप में उत्पन्न थीं। तब इनका नाम ‘सती’ था। इनका विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें इन्होंने सारे देवता को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिये आमंत्रित किया। किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस निमत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि हमारे पिता एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहें हैं, तब वहां जाने के लिये उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बतायी। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा-‘प्रजापति दक्ष किसी कारणवश रूष्ट है। अपे यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमत्रित कया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं। किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचनातक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी भी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’ शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उनको जाने की अनुमति दी।
सती ने पिता के घर पहंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकर जी के पति तिरसकार भाव हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और प्रोध से सन्तप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मानकर यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वह अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह नह सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तक्षण वहीं योगाग्निद्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारूण-दु:खद घटना को सुनकर शंकर जी ने व्रुद्ध को अपने शरीर को भस्मकर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुई। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हेंने हैमवती स्वरूप से देवताओं गर्व-भंजन किया था।
‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकर जी से हुआ। पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियां अनन्त हैं। नव दुर्गा पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चप्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना प्रारम्भ होती है।

घर में खुशहाली रखने करें ये उपाय
सभी लोग सुख और खुशहाली से रहना चाहते हैं और इसके लिए धन सबसे अहम होता है। धन के बिना किसी प्रकार के कामकाज नहीं हो सकते। कई बार धन की कमी के पीछे कुछ ऐसे कारण होते हैं जिन्हें हम ज्योतिष उपायों से ठीक कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि जिस घर में कलह होता है, वहां मां लक्ष्मी का वास नहीं होता। हर किसी की अपने गृहस्थ जीवन में सुख और शांति की कामना होती है। घर और जीवन की खुशहाली ही व्यक्ति को जीवन में प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। परिवार में व्याप्त कलह यानी की क्लेश से व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। गृह क्लेश से बचने या उसे कम करने के लिए ज्योतिष में कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। हम आगे आपको ऐसे ही कुछ उपाय बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आपका जीवन सुखमय और खुशहाल बनाया जा सकता है।
पूर्व की और सिर रखकर सोए
आप किस दिशा में सिर और पैर करके सोते हैं यह गृह कलह में काफी अहम भूमिका निभाता है। गृह कलह से मुक्ति के लिए रात को सोते समय पूर्व की और सिर रखकर सोए। इससे आपको तनाव से राहत मिलेगी। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
हनुमान जी की पूजा करें
हनुमान जी की नियमित रूप से की गई उपासना आपको सभी प्रकार के संकट और गृह कलह से दूर रखता है। यदि कोई महिला गृह कलह से परेशान हैं तो भोजपत्र पर लाल कलम से पति का नाम लिखकर तथा ‘हं हनुमंते नम:’ का 21 बार उच्चारण करते हुए उस पत्र को घर के किसी कोने में रख दें। इसके अलावा 11 मंगलवार नियमित रूप से हनुमान मंदिर में चोला चढाएं एवं सिंदूर चढाएं। ऐसा करने से परेशानियों से राहत प्राप्त होगी।
शिवलिंग पर जल चढ़ायें
प्रतिदिन सुबह में स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर मंदिर या घर पर शिवलिंग के सामने बैठकर शिव उपासना करें। आप ‘ऊँ नम: सम्भवाय च मयो भवाय च नम:। शंकराय च नम: शिवाय च शिवतराय च:।।’ मंत्र का 108 बार उच्चारण कर सकते हैं। इसके बाद आप शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। ऐसा नियमित करने से प्पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में सुख शांति बनी रहती है।
गणेश जी की उपासना करें
यदि किसी घर में कलह है या किसी भी बात पर विवाद चल रहा है तो इसमें गणेश उपासना फायदेमंद रहेगी। वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए आप नुक्ति के लड्डू का भोग लगाकर प्रतिदिन श्री गणेश जी और शक्ति की उपासना करे।
चीटियों को शक्कर या आटा डालें
चीटियों के बिल के पास शक्कर या आटा व चीनी मिलाकर डालने से गृहस्थ की समस्याओं का निवारण होता है। ऐसा नियमित 40 दिन तक करें। ध्यान रखें कि इस प्रक्रिया में कोई नागा न हो।
कुमकुम लगाए
एक गेंदे के फूल पर कुमकुम लगाकर उसे किसी देव स्थान में मूर्ति के सामने रख दें। ऐसा करने से रिश्तों में आया तनाव और मतभेद दूर होते हैं। साथ ही छोटी कन्या को शुक्रवार को मीठी वस्तु खिलाने और भेंट करने से आपके संकटों का निवारण होता है।
घर मे व्याप्त कलह क्लेश को कम करने के लिए पति-पत्नी को रात को सोते समय अपने तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और कपूर रखें। सुबह में सूर्योदय से पहले उठकर सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें और कपूर को निकालकर अपने कमरे में जला दें। ऐसा करने से लाभ मिलेगा।

इस प्रकार महादेव होंगे प्रसन्न
देवों के देव महादेव को प्रसन्न करना बहुत आसान है। इनकी पूजा पूरी श्रद्धा और भाव से की जाए तो आप पर भोलेनाथ की कृपा बनी रहेगी। शिव शंकर की महिमा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। इनके अनुसार शिव स्तुति से प्रभु के हर रूप का ध्यान करने के साथ ही उन्हें प्रसन्न भी करें। जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करूणाकर करतार हरे। जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुखसार हरे। जय शशिशेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागार हरे।जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, नित्य अनन्त अपार हरे। निर्गुण जय जय सगुण अनामय निराकार साकार हरे। जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे।मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय महाकार, ओंकार हरे।जय त्रयम्बकेश्वर, जय भुवनेश्वर, भीमेश्वर, जगतार हरे।काशीपति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अधहार हरे।नीलकंठ, जय भूतनाथ, जय मृतुंजय अविकार हरे।पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे। भोलानाथ कृपालु दयामय अवढर दानी शिवयोगी।निमिष मात्र में देते है नवनिधि मनमानी शिवयोगी। सरल हृदय अति करूणासागर अकथ कहानी शिवयोगी। भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर बने मसानी शिवयोगी।
स्वयं अकिंचन जन मन रंजन पर शिव परम उदार हरे। पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।
आशुतोष इस मोहमयी निद्रा मुझे जगा देना। विषय वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना। रूप सुधा की एक बूद से जीवन मुक्त बना देना। दिव्य ज्ञान भण्डार युगल चरणों की लगन लगा देना। एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे। दानी हो दो भिक्षा में अपनी अनपायनी भक्ति विभो।
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो। त्यागी हो दो इस असार संसारपूर्ण वैराग्य प्रभो।
परम पिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुराण प्रभो। स्वामी हो निज सेवक की सुन लीजे करूण पुकार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।
तुम बिन व्यकुल हूं प्राणेश्वर आ जाओ भगवन्त हरे। चरण कमल की बॉह गही है उमा रमण प्रियकांत हरें।
विरह व्यथित हूं दीन दुखी हूं दीन दयाल अनन्त हरे। आओ तुम मेरे हो जाओ आ जाओ श्रीमंत हरे।
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे। पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे। जय महेश जय जय भवेश जय आदि देव महादेव विभो। किस मुख से हे गुणातीत प्रभुत तव अपार गुण वर्णन हो। जय भव तारक दारक हारक पातक तारक शिव शम्भो। दीनन दुख हर सर्व सुखाकर प्रेम सुधाकर की जय हो। पार लगा दो भवसागर से बनकर करूणा धार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे। जय मनभावन जय अतिपावन शोक नसावन शिवशम्भो।
विपति विदारण अधम अधारण सत्य सनातन शिवशम्भो। वाहन वृहस्पति नाग विभूषण धवन भस्म तन शिवशम्भो।
मदन करन कर पाप हरन धन चरण मनन धन शिवशम्भो। विश्वन विश्वरूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।

घर में मूर्तियां रखने से पहले जान लें ये नियम
घर और मंदिर में फर्क होता है और जो लोग घर में ही मंदिर बना लेते हैं उनके लिए कई नियम मान्य होते हैं जैसे कहां बनाना चाहिए, घर का कौन सा कोना पवित्र है वगैराह-वगैराह, लेकिन घर में मूर्तियां रखने के भी कुछ नियम होते हैं। शास्त्रों के अनुसार अगर मूर्ति की पूजा नहीं की जा सकती तो उसे घर में रखने की जरूरत नहीं है। ये नियम खास तौर से शिवलिंग पर लागू होता है।
शिवलिंग को लेकर ये भी नियम है कि एक से ज्यादा शिवलिंग घर में नहीं रखने चाहिए।
अगर ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मूर्ति रखी जा रही है या फोटो है तो उसे बाकी देवताओं से ऊपर स्थान देना चाहिए।
एक ही भगवान की तीन मूर्तियां या तस्वीरें एक साथ घर में नहीं रखनी चाहिए ये गलत प्रभाव डालती हैं।
क्या कहते हैं शास्त्र..
ये सभी नियम और कायदे खास तौर पर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाए गए हैं। अगर हम अन्य शास्त्रों की बात करें जैसे गीता में दान या उपहार के तीन प्रकार हैं (सात्विक, राजसिक और तामसिक) जिसमें से किसी में भी भगवान की मूर्ति दान या उपहार देने का कोई रिवाज नहीं है।
रिगवेद में ज्ञान को ही दान और उपहार माना गया है और इसे ही देने की बात कही गई है। मनुस्मृति में भूखे को खाना खिलाना (पुण्य के लिए), सरसों का दान (स्वास्थ्य के लिए), दिए या रौशनी का दान (समृद्धी के लिए), भूमि का दान (भूमि के लिए) और चांदी का दान (सौंदर्य के लिए) का वर्णन है, लेकिन भगवान की मूर्तियों का कहीं नहीं हैं।

भगवान विष्णु को लगायें चने-गुड़ का भोग
जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की गुरुवार के दिन विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग व्रत रहते हैं, केले के पौधे की पूजा करते हैं, पीली वस्तुओं का दान करते हैं और भगवान को चने या चने की दाल और गुड़ का भोग लगाते हैं। चने और गुड़ का भोग लगाने से जुड़ी एक पौराणिक कथा है।
भगवान विष्णु के परमभक्त देवर्षि नारद उनसे आत्मा का ज्ञान व लेना चाहते थे लेकिन वे जब भी श्रीहरि से इसके बारे में अपनी इच्छा प्रकट करते तो भगवान कहते कि पहले उस ज्ञान के योग्य बनना होगा। नारद जी ने स्वयं को उस ज्ञान के योग्य बनाने के लिए कठोर तप किया लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। इसके पश्चात वे पृथ्वी लोक के भ्रमण पर चले गए।
इस दौरान उन्होंने एक जगह देखा कि भगवान श्रीहरि एक मंदिर में बैठे हैं और वृद्ध् महिला उनको कुछ खिला रही है। भगवान विष्णु के वहां से प्रस्थान करने के बाद नारद मुनि वहां पहुंचे और वृद्ध महिला से जानना चाहा कि वह भगवान को क्या खिला रही थीं।
उस वृद्ध महिला ने बताया कि उसने भगवान विष्णु को गुड़ और चने प्रसाद स्वरुप खिलाए। ऐसा कहा जाता है कि नारद जी वहां पर व्रत करने लगे और लोगों में प्रसाद स्वरुप गुड़-चना बांटने लगे। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और नारद मुनि से कहा कि सच्चे मन से जो भक्ति करता है, वह ज्ञान का अधिकारी होता है।
भगवान ने उस वृद्ध महिला को वैकुण्ठ जाने का आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भक्त उनको गुड़ और चना का भोग लगाएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान विष्णु को गुड़ और चना का भोग लगाते हैं।

सूर्य देव को जल चढ़ाने के लाभ
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार सूर्य देव असीम ऊर्जा के स्रोत हैं, यह हमें मान सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाते हैं। इसलिए रविवार के दिन सूर्य देव को अघ्र्य देने (जल चढ़ाने) और उनकी पूजा से विशेष लाभ मिलता है। ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक दिन सूर्य देव को जल चढ़ाने से व्यक्ति के पास किसी चीज की कमी नहीं रहती है। आपके व्यक्तित्व में सूर्य जैसा तेज आता है।
अगर आप किन्हीं कारणों से प्रतिदिन अघ्र्य नहीं दे सकते हैं तो रविवार के दिन दीजिए, इसका बड़ा लाभ मिलेगा।
अघ्र्य इस प्रकार दें
सूर्य देव को हमेशा तांबे के पात्र से ही अघ्र्य देना चाहिए। तांबा सूर्य देव के लिए प्रभावी धातु है। कभी भी अघ्र्य के लिए स्टील, चांदी, शीशे या प्लास्टिक के पात्रों का प्रयोग न करें।
विधि
स्नान करने के पश्चात आप एक तांबे के पात्र में स्वच्छ जल भर लें। उसमें रोली या लाल चंदन, लाल पुष्प, चावल और मिश्री डाल सकते हैं। भगवान सूर्य का ध्यान करने उनके सम्मुख जल अर्पित कर दें। इस दौरान आप इन मंत्रों में से किसी एक का जाप कर सकते हैं।
ॐ सूर्याय नम:
सूर्याय नमः ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
इन वस्तुओं का दान करें
सूर्य देव को अघ्र्य देने के बाद आप अपने सामर्थ्य के अनुसार, किसी ब्राह्मण या गरीब को तांबे के बर्तन, लाल कपड़े, गेंहू, गुड़, कमल-फूल और लाल चंदन रविवार के दिन दान करें।
समस्याओं से मिलेगी मुक्ति
ऐसा करने से सिरदर्द, पित्त रोग, आत्मिक निर्बलता, नेत्र दोष आदि समस्याओं से निजात मिलेगी। जोड़ों के दर्द और शरीर में अकड़न जैसी समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।

होली पर खुशहाली के लिए करें ये उपाय
रंगों का त्योहार होली आने वाला है। उत्साह और उमंग के उत्सव होली को लेकर लोग अपने घरों की साफ-सफाई और अन्य तैयारियों में जुट गए हैं। खुशियों का यह त्योहार आपके जीवन में भी उल्लास के नए रंग भरे, इसके लिए वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं।
होली का त्योहार फाल्गुन माह के अंतिम दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार पर जब रंग उड़ते हैं तो दिलों की दूरियां भी मिट जाती हैं। इस होली पर घर की सज्जा पर विशेष ध्यान रखें। घर से पुराने कबाड़ को बाहर निकाल दें। घर के मुख्य दरवाजे पर श्रीगणेश की मूर्ति लगाएं। घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में परिवार की फोटो या सूरजमुखी की तस्वीर लगाएं। घर की पूर्व दिशा में उगते हुए सूरज की तस्वीर लगाएं। घर की दक्षिण दिशा में दौड़ते हुए घोड़ों की फोटो लगाएं। घर में रंगाई करा रहे हैं तो दीवारों पर काले रंग का इस्तेमाल करने से बचें। घर की पूर्व दिशा में हरे पौधे रखें। होली के अवसर पर अपने घर में श्रीयंत्र लाएं। इसे घर या दुकान की तिजोरी में स्थापित कर दें। माना जाता है कि ऐसा करने से कभी आर्थिक अभाव नहीं होता। होली पर मोती शंख को घर में लाएं। मान्यता है कि ये जिस भी स्थान पर रखा जाता है, वहां धन का प्रवाह होने लगता है।

पंचाक्षर मंत्र से मिलता है मनचाहा फल
सोमवार को आराधना करने से भगवान शिव प्रसन्‍न होते हैं। इस दिन पंचाक्षर मंत्र के जाप से आप मनचाहा फल पा सकते हैं।
शिव पूजन की विधि
शिव कृपा से ही सांसारिक, मानसिक पीड़ा समाप्त हो पाती है और मनुष्य अपने जीवन काल में परब्रहम को प्राप्त कर पाता है। सोमवार को शिवशंकर का दिन माना जाता है, इसलिए श्रद्धाभाव से इसदिन उनका पूजन करें। इसके लिए सोमवार के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके और व्रत का संकल्प ले कर शिवालय में जाकर सबसे पहले शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करें और इस मंत्र का जाप करे ऊं महाशिवाय सोमाय नम:। इसके बाद गाय का शुद्ध कच्चा दूध शिवलिंग पर अर्पित करें। ऐसा करने से मनुष्य के तन, मन, और धन से जुडी परेशानियां समाप्‍त हो जाती हैं। अब शिवलिंग पर शहद या गन्ने का रस चढ़ाये ऐसा करने पर नौकरी या व्यवसाय से जुड़ी सभी समस्यायें सुलझ सकती हैं। अब कपूर, गंध, पुष्प, धतूरे और भस्म से शिवजी का अभिषेक करे, अंत में शिव आरती करते हुए मनोकामना पूर्ति की दिल से प्रार्थना करें।
इन मंत्रों का करें जाप
उपरोक्‍त विधि से शिव पूजा अर्चना करने के बाद कुश के आसन पर विराजमान होकर रुद्राक्ष की माला लेकर इन चमत्कारी मंत्रों का जप करना विलक्षण सिद्धि व मनचाहे लाभ देने वाला होता है। सबसे पहले भगवान शंकर का पंचाक्षर मंत्र ऊं नमः शिवाय ही अमोघ एवं मोक्षदायी है, किंतु यदि कोई कठिन व्याधि या समस्या आ जाये तो श्रद्धापूर्वक ‘ऊं नमः शिवाय शुभं शुभं कुरू कुरू शिवाय नमः ऊं’ के मंत्र का एक लाख बार जाप करना चाहिए। यह बड़ी से बड़ी समस्या और बाधा को टाल देता है।

रात में बजरंगबली की पूजा इसलिए होती है ज्यादा लाभकारी
हनुमान जी हमेशा ही भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन रहते हैं सारा दिन प्रभु की सेवा में लगे रहते हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है कि रात के समय जब भगवान श्रीराम विश्राम करते हैं, उस समय हनुमान जी की पूजा की जाए तो वो अपने भक्तों की पुकार अवश्य सुनते हैं।
इसलिए यदि आप हनुमान जी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो रात में अवश्य हनुमान जी का पूजन करें। बजरंगबली अवश्य आपकी पुकार सुनेंगे।
कष्ट दूर करें
यदि आपके जीवन में किसी भी तरह की परेशानी या कष्ट हैं तो रात के समय हनुमान चालीसा का पाठ करें। यदि आप पाठ 9 बजे रात शुरू करते हैं तो हर दिन उसी वक्त करें। यानी पाठ करने का समय ना बदलें। अपना आसन भी एक ही रखें उसे भी ना बदलें। आप देखेंगे की 21 दिन लगातार पाठ करने के बाद आपकी समस्या हल होना शुरू हो जाएगी।
यदि बच्चा आपका कहना नहीं मानता है
प्रत्येक मंगलवार तथा शनिवार रात 8 बजे श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, कुछ ही दिन में बच्चे का स्वभाव बदलेगा और आपकी बात मानने लगेगा।
यदि विदेश में सफलता नहीं मिल रही है
यदि आप विदेश में हैं और आपको सफलता नहीं मिल रही है तो हनुमान चालीसा का प्रतिदिन रात 8.30 बजे पाठ करें और कोशिश करें कि 9 दिन में 108 पाठ पूरे हो जाएं। आप देखेंगे आपको सफलता मिलने लगेगी।
इन बातों का रखें ख्याल
हनुमान जी की वो तस्वीर लगायें जिसमें भगवान राम, लक्ष्मण और सीता जी भी हों।
हनुमान जी की पूजा उपासना करते समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, आपके पूजा का स्थान साफ होना चाहिए।
हनुमान जी की पूजा के बाद आरती अवश्य करें।
हनुमान जी को बेसन से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
पूजा के स्थान पर शांति रखें।

पूजा में फूलों का महत्व
फूल हमारी श्रद्धा और भावना का प्रतीक हैं। इसके साथ ही ये हमारी मानसिक स्थितियों को भी बताते हैं। फूल बहुत ही शुभ और पवित्र होते हैं। इसलिए कोई भी पूजा बिना फूलों के पूरी नहीं होती है। फूलों के अलग-अलग रंग और सुगंध अलग तरह के प्रभाव पैदा करते हैं। पूजा में सही रंग के फूल सही तरीके से अर्पित किए जाएं तो जीवन की सभी समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
धार्मिक मान्यताओं में फूलों का प्रयोग पूजा और उपासना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इससे ईश्वर की कृपा बहुत जल्दी होती है। आइए जानते हैं उपासना में फूल क्यों होते हैं इतने महत्वपूर्ण।
भगवान विष्णु को नियमित रूप से पीले गेंदे के फूलों की माला चढ़ाएं। इससे आपको संतान सम्बन्धी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
लक्ष्मी जी को नियमित गुलाब अर्पित करने से आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है।
गुलाब देने से रिश्ते मजबूत होते हैं। प्रेम और वैवाहिक जीवन सुखद हो जाता है।
किसी भी एकादशी को कृष्ण जी को दो कमल के फूल अर्पित करें।
आपकी संतान प्राप्ति की अभिलाषा पूरी होगी।
अगर 27 दिन तक रोज एक कमल का फूल लक्ष्मी जी को अर्पित किया जाए तो अखंड राज्य सुख की प्राप्ति होती है।
नियमित रूप से देवी को गुड़हल अर्पित करने से शत्रु और विरोधियों से राहत मिलती है।
सूर्य जो गुड़हल का फूल डालकर जल अर्पित करने से नाम यश मिलता है।
सफ़ेद फूल जल में डालकर चन्द्रमा को अर्पित करें।

पीले रंग का होना चाहिये घर का ताला
घर की सुरक्षा के लिए लगाया जाने वाला ताला हम सबके घर का अहम हिस्सा है। ताला घर को सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं वास्तु शास्त्र में तांबे के ताले को घर के लिए शुभ माना गया है। साथ ही ताले को सदैव पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। कुछ लोगों के घर का मुख्य दरवाजा उत्तर दिशा की ओर होता है। इनके लिए पीले रंग का ताला अच्छा माना गया है। यानी कि आप पीतल से बना ताला इस्तेमाल कर सकते हैं। मान्यता है कि वास्तु के हिसाब से तालों का इस्तेमाल करने पर घर की सुरक्षा मजबूत होती है। इससे घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता।
वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि कारखानों और फैक्ट्रियों के लिए लोहे के ताले का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही इस ताले की दिशा पश्चिम होनी चाहिए। दरअसल लोहे का संबंध शनि ग्रह से माना गया है। कहते हैं कि लोहे की चीजों का प्रयोग करने से शनि की स्थिति मजबूत होती है। ज्योतिष के अनुसार शनि की मजबूती से व्यक्ति को व्यवसाय में लाभ मिलता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
ताले की चाबी के बारे में कहा जाता है कि यह किस्मत की भी कुंजी होती है। इसलिए ताले के साथ ही चाबी को लेकर भी सावधानी बरतनी चाहिए। वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि आमतौर पर पीतल के ताले हर किसी के लिए शुभ होते हैं। पीतल का ताला पीले रंग का होता है। और पीले रंग का गुरु ग्रह से संबंध है। गुरु को जीवन की खुशियों का कारक माना गया है। ऐसे में माना जाता है कि पीतल का ताला इस्तेमाल करने से घर में खुशियां आती हैं।

भोलेनाथ को इस प्रकार कर सकते हैं प्रसन्न
भगवान शंकर भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है। वैसे तो धर्मग्रंथों में भोलेनाथ की कई स्तुतियां हैं, पर श्रीरामचरितमानस का ‘रुद्राष्टकम’ अपने-आप में बेजोड़ है।
‘रुद्राष्टकम’ केवल गाने के लिहाज से ही नहीं, बल्कि भाव के नजरिए से भी एकदम मधुर है। यही वजह है शिव के आराधक इसे याद रखते हैं और पूजा के समय सस्वर पाठ करते हैं। ‘रुद्राष्टकम’ और इसका भावार्थ आगे दिया गया है।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
(हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं)
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥
(निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं।)
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥
(जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है)
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
(जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं। सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं)
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥
(प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।)
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
(कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।)
न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
(जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।)
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥
(मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो। बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए। हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।)
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥
(जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।)

दीपावली पर धन लाभ के लिए करें ये उपाय
दिवाली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने सुबह उठते ही मां लक्ष्मी को नमन कर सफेद वस्त्र धारण करें और मां लक्ष्मी के श्री स्वरूप व प्रतिमा के सामने खड़े होकर श्री सूक्त का पाठ करें एवं कमल फूल चढ़ाएं। लक्ष्मी पूजन कर 11 कौड़ियां लक्ष्मी पर चढ़ाएं। अगले दिन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें इससे धन वृद्धि होती है। लक्ष्मी का षोडश पूजन कर उन्हें मालपूए या गुलाबजामुन का भोग लगाकर उसे गरीबों में बांटने से चढ़ा हुआ कर्जा उतर जाता है।
वहीं साफ-स्वच्छ कपड़े पहनना और उन्हें करीने से संभाल कर रखने से घर में सकारात्मकता का संचार होता है और देवी लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहती है।
घर में साफ-सफाई और रोशनी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इससे लक्ष्मी आकर्षित होती हैं। इसके विपरित जाले, गंदगी और धूल-मिट्टी फैली हो तो अलक्ष्मी आकर्षित होती हैं।
हल्दी और चावल पीसकर उसके घोल से घर के मुख्य द्वार पर ‘श्रीं’ लिखने से लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन देती हैं।
गाय के दूध से श्रीयंत्र का अभिषेक करने के बाद, अभिषेक का जल पूरे घर में छिड़क दें और घर में जहां आपका धन पड़ा हो वहां श्रीयंत्र को कमलगट्टे के साथ धन स्थान पर रख दें। इससे धन लाभ होने लगेगा।
शंख का घोष करें
शंख में वास्तुदोष दूर करने की अद्भुत क्षमता होती है। जहां नियमित शंख का घोष होता है और सुबह और शाम दोनों समय होता है, वहां के आसपास की हवा भी शुद्ध और सकारात्मक हो जाती है और घर की कलह खत्म होती है। मानसिक शांति प्राप्त होती है। जो लोग अपने जीवन व वास्तु में बदलाव चाहते हैं तो रोजाना सुबह-शाम शंख का घोष अवश्य ही करें।

गणेश जी को इसलिए चढ़ाई जाती है दूर्वा
आजकल सब जगह भगवान गणेश विराजे हुए हैं। गणेशोत्सव के दौरान घर-घर में गणपति की स्थापना की जाती है और भली-भांति पूजा की जाती है। इस दौरान भगवान गणेश को कई चीज़ें अर्पित भी की जाती हैं जिसमें से एक दूर्वा भी है। कहा जाता है कि बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा पूरी नहीं होती है। गणपति को दूर्वा इसलिए चढ़ाना जरुरी है।
दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र
ॐ गणाधिपाय नमः ,ॐ उमापुत्राय नमः ,ॐ विघ्ननाशनाय नमः ,ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः ,ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ,ॐ एकदन्ताय नमः ,ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः ,ॐ कुमारगुरवे नमः
कथा
कहते हैं कि प्रचीन काल में अनलासुर नामक एक असुर था जिसकी वजह से स्वर्ग और धरती के सभी लोग परेशान थे। वह इतना खतरनाक था कि ऋषि-मुनियों सहित आम लोगों को भी जिंदा निगल जाता था। इस असुर से हताश होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि के साथ महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस असुर का वध करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर उन्हें बताया कि अनलासुर का अंत केवल गणपति ही कर सकते हैं।
पेट में होने लगी थी जलन
कथा के अनुसार जब गणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय किए गए, लेकिन गणेशजी के पेट की जलन शांत ही नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि को एक युक्ति सूझी। उन्होंने दूर्वा की 21 गठान बनाकर श्रीगणेश को खाने के लिए दी। जब गणेशजी ने दूर्वा खाई तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान श्रीगणेश जी को दूर्वा अर्पित करने की परंपरा शुरु हुई।

भगवान श्रीकृष्ण की हर लीला भक्तों के मन को है लुभाती
भक्ति की परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाले भगवान हैं। योगेश्वर रूप में वे जीवन का दर्शन देते हैं तो बाल रूप में उनकी लीलाएं भक्तों के मन को लुभाती है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक हर कोई कान्हा की भक्ति से सराबोर है। चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय श्रीकृष्ण का जो महामंत्र प्रसिद्ध हुआ, वह तब से लेकर अब तक लगातार देश दुनिया में गूंज रहा है। आप भी मुरली मनोहर श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए उनके मंत्र के जाप की शुरुआत कर सकते हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे॥
15वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन के समय प्रसिद्ध हुए इस मंत्र को वैष्णव लोग ‘महामन्त्र’ कहते हैं।
‘ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय’
भगवान श्रीकृष्ण के इस द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। प्रेम विवाह करने वाले अभिलाषा रखने वाले जातकों के लिए यह रामबाण साबित होता है।
‘कृं कृष्णाय नमः’
यह पावन मंत्र स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया है। इसके जप से जीवन से जुड़ी तमाम बाधाएं दूर होती हैं और घर-परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।
‘ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम्।’
जीवन में आई विपदा से उबरने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का यह बहुत ही सरल और प्रभावी मंत्र है। इस महामंत्र का जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण मदद को दौड़े आते हैं।
आदौ देवकी देव गर्भजननं, गोपी गृहे वद्र्धनम्।
माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।।
कंसच्छेदनं कौरवादिहननं, कुंतीसुपाजालनम्।
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।
श्रद्धा और विश्वास के इस मंत्र का जाप करने से न सिर्फ तमाम संकटों से मुक्ति मिलती है, बल्कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। सुख, समृद्धि और शुभता बढ़ाने में यह महामंत्र काफी कारगर साबित होता है।
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 1 ।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 2 ।।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 3 ।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 4 ।।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 5 ।।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 6 ।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 7 ।।
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। 8 ।।
कन्हैया की स्तुति करने के लिए तमाम मंत्र हैं लेकिन यह मंत्र उनकी मधुर छवि का दर्शन कराती है। इस मंत्र की स्तुति में कान्हा की अत्यंत मनमोहक छवि उभर कर सामने आती है। साथ ही साथ योगेश्वर श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी और विश्व के पालनकर्ता होने का भी भान होता है।