पेंशन घोटाले की जांच रिपोर्ट मंत्रालय में कैद होकर रह गई

भोपाल,पेंशन घोटाले के लिए बने जस्टिस एनके जैन आयोग की रिपोर्ट मंत्रालय की चारदीवारी में कैद होकर रह गई। जस्टिस जैन ने एक हजार पेज की रिपोर्ट में पेंशन वितरण की व्यवस्था पर न सिर्फ सवाल उठाए हैं, बल्कि अधिकारियों को भी निशाने पर लिया है। पांच साल पहले सामाजिक न्याय विभाग ने मंत्रिमंडलीय समिति की सिफारिश के साथ इसे सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा था पर यह मंत्रालय से विधानसभा की आधा किलोमीटर की दूरी अब तक तय नहीं कर पाई। यह जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग की थी पर अब वो जिम्मेदारी सामाजिक न्याय विभाग के ऊपर डाल रहा है। जस्टिस जैन ने जांच करने के बाद सितंबर 2012 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में उठाए गए बिंदुओं का परीक्षण करने के लिए वरिष्ठ मंत्री जयंत मलैया की अध्यक्षता में तत्कालीन मंत्री अनूप मिश्रा और संसदीय कार्यमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की समिति बनाई थी। समिति ने जुलाई 2013 में सामान्य प्रशासन विभाग को परीक्षण प्रतिवेदन सौंप दिया और विभाग ने इसे 27 जुलाई को सामाजिक न्याय विभाग को सौंप दिया। सामाजिक न्याय विभाग ने आठ अगस्त 2013 को रिपोर्ट सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दी। तब से रिपोर्ट विभाग में ही ठंडे बस्ते में है। उधर, विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सामाजिक न्याय के पास रिपोर्ट है। उसे ही कार्यवाही करनी है। विधानसभा में रखने का फैसला सरकार लेगी। सामाजिक न्याय मंत्री गोपाल भार्गव ने विधानसभा में रामनिवास रावत के सवाल के लिखित जवाब में बताया है कि विधानसभा में रिपोर्ट रखने की समयसीमा बताना संभव नहीं है।
दरअसल, रिपोर्ट में अधिकारियों पर सीधी उंगली उठाई गई है। रिपोर्ट विधानसभा में आते ही सरकार को बताना पड़ेगा कि उसने अनियमितता के दोषियों के खिलाफ क्या-क्या कार्रवाई की। सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में सुधार की जो अनुशंसाएं की गई थीं, उन पर तो विभाग काम कर चुका है पर ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। जस्टिस जैन ने जांच के दौरान पाया कि सवा लाख से ज्यादा अपात्रों के खातों में पेंशन लंबे समय तक जमा की जाती रही। इनमें से कई का निधन काफी समय पहले हो गया था। करीब 23 करोड़ रुपए ऐसे पेंशनरों के खातों में जमा थे। बैंक और डाक घरों से लिखा-पढ़ी करने के बाद यह रकम शासन के खजाने में जमा हुई। इंदौर में हुई जांच से पता लगा कि सहकारी समितियों के माध्यम से पेंशन बांटने का फैसला नगर निगम का था। समितियों के माध्यम से जो पेंशन बंटी, उसमें करीब 15 हजार पेंशनरों का कहीं कोई अता-पता ही नहीं मिला। नंदा नगर समिति के पास पेंशन के करीब 17 लाख रुपए बचे थे, जिसे उसने वापस कर दिया था। जांच आयोग ने पेंशनरों के सत्यापन का तंत्र बनाने की जरूरत बताई थी। इसके मद्देनजर सरकार ने समग्र सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के तहत सत्यापन कराया। इसमें करीब सवा चार लाख ऐसे हितग्राहियों की पहचान हुई जो सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने के हकदार नहीं थे। इनके नाम सूचियों से हटाए गए।

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