CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव उपराष्ट्रपति को सौंपा

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष ने महाभियोग लाने का निर्णय लिया है। जस्टिस लोया की मौत से जुड़े मामले में निराशा हाथ लगने के बाद विपक्षी पार्टियों ने इस तरफ अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए हैं। शुक्रवार को विपक्षी पार्टियों की कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद की अगुवाई में बैठक हुई। इसमें 14 दलों के लोग शामिल हुए 71 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ प्रस्ताव सौंपा गया है।
विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक करने के बाद गुलाम नबी आज़ाद ने कहा हमें सात पार्टियों का समर्थन है, इसमें कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी, बीएसपी, मुस्लिम लीग और समाजवादी पार्टी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि नायडू इस प्रस्ताव पर एक कमेटी का गठन कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि जस्टिस लोया की मौत की नए सिरे से जांच कराने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी जनहित याचिकाएं कोर्ट का समय बर्बाद करती हैं। फैसला देने वालों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा भी शामिल थे। इस फैसले से निराश होकर कांग्रेस पार्टी ने कहा था कि यह इतिहास का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन है। इस फैसले के बाद भी जस्टिस लोया की मौत से जुड़े सवालों का जवाब नहीं मिला।
क्या है प्रक्रिया?
उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। सांसदों के हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। यह प्रस्ताव राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर में से किसी एक को सौंपना पड़ता है। जिसके बाद राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वह प्रस्ताव को स्वीकार करे या अस्वीकार करे। राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर प्रस्ताव मंजूर कर लेते हैं, तो आरोप की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाता है। इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होता है। अगर यदि कमेटी जज को दोषी पाती है , तो जिस सदन में प्रस्ताव दिया गया है, वहां इस रिपोर्ट को पेश किया जाता है। यह रिपोर्ट दूसरे सदन को भी भेजी जाती है। जांच रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से समर्थन मिलने पर इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति अपने अधिकार का उपयोग करते हुए चीफ जस्टिस को हटाने का वारंट जारी करते हैं। लोकसभा एवं राज्यसभा में उसका पास होना मुश्किल है। विपक्षी दलों का न्यायपालिका पर इसे दबाव बनाने का प्रयास माना जा रहा है। वहीं सत्तारूढ़ दल मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के समर्थन में है। न्याय पालिका की विश्वसनीयता पर उसका जरूर असर पड़ना तय है।

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