अहमदाबाद,गुजरात में 2002 के नरौदा पाटिया दंगा मामले में दायर अपीलों पर शुक्रवार को गुजरात हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने माया कोडनानी को बरी कर दिया, जबकि बाबू बजरंगी की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद पिछले साल अगस्त में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। अगस्त 2012 में एक विशेष अदालत ने पूर्व मंत्री और भाजपा नेता माया कोडनानी समेत 32 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोडनानी को 28 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत तक जेल की सजा सुनाई गई थी, जबकि सात को 21 साल की और कुछ को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की। निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 आरोपियों को बरी कर दिया था। जहां दोषियों ने निचली अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, वहीं विशेष जांच दल ने 29 लोगों को बरी किए जाने के फैसले को।
बता दें कि नरोदा पाटिया में 28 फरवरी-2002 को एक भीड़ ने हमला कर एक समुदाय के 97 लोगों को जिंदा जला दिया था। वर्ष-2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों से संबंधित इस मामले तथा ऐसे ही कई अन्य मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इन दंगों में एक हजार लोग मारे गए थे। इस मामले के प्रारंभिक गवाह 60 वर्षीय दिलवर सैयद ने कहा, उस खौफनाक मंजर के बारे में सोचते हुए मैंने वर्षों गुजार दिए। मैंने जो देखा, उसे कभी भुला नहीं सकता। उन्होंने कहा, कम से कम 100 परिवार बर्बाद हो गए। इस मामले में 64 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। बाकी बचे 61 लोगों पर हत्या, आगजनी और दंगा भड़काने के आरोप थे। इनमें से अधिकांश को जमानत मिल गई थी। इस मामले में अदालत में कुल 327 गवाह और 2,500 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए थे।