नई दिल्ली,मोदी सरकार के कैशलेस अभियान को बड़ा झटका लगा हैं क्योंकि देश में करेंसी का सर्कुलेशन एक बार फिर नोटबंदी से पहले के स्तर पर पहुंच गया है। केन्द्रीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में करेंसी का सर्कुलेशन नोटबंदी से पहले के स्तर का 99.17 फीसदी हो चुका है। आरबीआई के मुताबिक 23 फरवरी 2018 तक अर्थव्यवस्था में संचालित कुल करेंसी 17.82 लाख करोड़ रुपये है। वहीं नोटबंदी से ठीक पहले 4 नवंबर 2016 तक कुल करेंसी सर्कुलेशन 17.97 लाख करोड़ रुपये था।
बात दे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान करते हुए अर्थव्यवस्था में संचालित 500 और 1000 की करेंसी को प्रतिबंधित करते हुए लगभग 8 लाख करोड़ रुपये की कुल मुद्रा को वापस ले लिया था। इसकी जगह रिजर्व बैंक ने पहले 2000 रुपये और फिर 500 रुपये की नई करेंसी को संचालित किया। नोटबंदी का यह फैसला केन्द्र सरकार ने देश में कालेधन पर लगाम लगाने, नकली करेंसी पर नकेल कसने और देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए उठाया था। केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद नवंबर 2016 से देश में पेमेंट करने के लिए डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल में बड़ा इजाफा देखने को मिला था। जिसके बाद देश के सभी बैंकों ने डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल के लिए बड़ी तैयारी की। लेकिन आरबीआई के जनवरी 2018 के बाद के आंकड़ों में देखा गया कि देश में करेंसी ट्रांजैक्शन बढ़कर 89,000 करोड़ के पर पहुंच गया जबकि डिजिटल माध्यमों से पेमेंट का आंकड़ा तेजी से गिर गया। रिजर्व बैंक के इन आंकड़ों ने अर्थशास्त्रियों को भी हैरान कर दिया है। वहीं केन्द्र सरकार के लिए भी यह चुनौती है क्योंकि नोटबंदी लागू करने के लिए केन्द्र सरकार ने देश में कैशलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने का हवाला भी दिया था। लिहाजा,अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या करेंसी सर्कुलेशन के स्तर से नोटबंदी का एक अहम मकसद विफल हो चुका है और अब देश डिजिटल माध्यमों से दूर हो रहा है? यह पूछने पर कि हीरा, शराब और जेम्स कारोबारियों द्वारा बैंकों के साथ धोखाधड़ी कर विदेश भाग जाने से देश की जनता पर बैंकों के प्रति कैसा प्रभाव पड़ेगा। विजय कौल कहा कि लोगों को पता है कि उनका पैसा सरकारी बैंकों में है और उसके पीछे सरकार का समर्थन है जिससे उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। इनके भागने से उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
विजय कौल ने कहा, हां,लेकिन यह बैंकों के निजीकरण की मांग कर रहे लोगों के लिए जरूर एक बहुत बड़ा धक्का है क्योंकि अगर यहां भी अमेरिका जैस विकसित देश की तरह बैंकों का निजीकरण हो जाएगा तो जैसा हाल (आर्थिक संकट) वहां 2007 में हुआ था ठीक वैसा ही भारत में देखने को मिलता’।
निवेश को इच्छुक विदेशी कारोबारी के मन नें इन घोटालों के कारण भारत की छवि के बारे में अर्थशास्त्री विजय कौल ने कहा, निवेशक के मन में भारत की छवि को लेकर इन घोटालों का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि उन्हें यहां के हालात की जानकारी है और उन्हें पता है कि कहां निवेश करना बेहतर रहेगा।