कानपुर,कई बैंक आफ बड़ौदा समेत कई बैंकों को 800 करोड़ रुपए से ज्यादा का चूना लगाने वाले रोटोमैक पेन कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी को केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने हिरासत में ले लिया है। इस बीच सीबीआई ने कोठारी के घर समेत तीन ठिकानों पर छापा मारा है। सूत्रों के अनुसार सीबीआई ने उनकी पत्नी और बेटे से भी पूछताछ की है। सीबीआई की एक टीम ने देर रात विक्रम कोठारी के तिलकनगर स्थित बंगले पर छापा मारा और उन्हें हिरासत में ले कर रात से ही पूछताछ शुरू कर दी । टीम ने उनकी पत्नी और बच्चों से भी पूछताछ की। बैंक ऑफ बड़ौदा ने रोटोमैक के खिलाफ सीबीआई के पास शिकायत दर्ज कराई है। मीडिया में विक्रम कोठारी के भी विदेश भाग जाने की ख़बरें थीं। रविवार को वह कानपुर में एक रिसेप्शन में दिखाई दिए थे। ख़ास बात यह है कि इस रिसेप्शन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे। हालांकि, विक्रम कोठारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आने से पहले ही वहां से निकल गए थे।
ऐसी खबरे थीं कि हीरा व्यवसायी नीरव मोदी की भांति कोठारी भी विदेश भागने की फिराक में हैं। कोठारी रोटोमैक पेन कंपनी के प्रमोटर हैं। उनके ऊपर इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया समेत कई बैंकों से 800 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण लिया है। सूत्रों के अनुसार कोठारी को ऋण देने में इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने नियमों के पालन में ढिलाई की। कंपनी के प्रवर्तक ने उनके विदेश भाग जाने की आशंकाओं को आधारहीन करार दिया। कोठारी ने कहा मैं कानपुर का वासी हूं और मैं शहर में ही रहूंगा। हालांकि कारोबारी काम की वजह से मुझे विदेश यात्राएं भी करनी होती हैं। कोठारी ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से 485 करोड़ रुपये और इलाहाबाद बैंक से 352 करोड़ रुपए का ऋण लिया था। उन्होंने ऋण लेने के बाद उन्होंने न तो मूलधन चुकाया और न गी ब्याज दिया।
पिछले साल ऋण देने वाले बैंकों में शामिल बैंक ऑफ बड़ौदा ने रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को जानबूझकर ऋणचूक करने वाला (विलफुल डिफॉल्टर) घोषित किया था। इस सूची से नाम हटवाने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण ली थी। जहां मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीबी भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे सूची से बाहर करने का आदेश दिया था। बाद में रिजर्व बैंक द्वारा तय प्रक्रिया के अनुसार एक प्राधिकृत समिति ने 27 फरवरी 2017 को पारित आदेश में कंपनी को जानबूझ कर ऋण नहीं चुकाने वाला घोषित कर दिया।