संसद में छाया रहा महाराष्‍ट्र की जातीय हिंसा का मुद्दा, विपक्ष ने सरकार पर उठाए सवाल

नई दिल्‍ली,महाराष्‍ट्र हिंसा के मुद्दे पर संसद में गुरुवार को भी राजनीतिक घमासान मचा रहा। राज्‍यसभा में कांग्रेस सांसद रजनी पाटिल द्वारा यह मुद्दा उठाया गया। उन्‍होंने सदन में नियम-267 के तहत बहस का नोटिस दिया। इसके साथ ही उन्होंने सवाल किया कि महाराष्ट्र एक शांतिपूर्ण राज्य है, फिर वहां इतनी बड़ी घटना हो जाने पर सरकार ने सही वक्त पर एक्‍शन क्यों नहीं लिया। सपा नेता नरेश अग्रवाल ने भी इस मामले में कार्रवाई की मांग की। जबकि बीएसपी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच कराने की मांग की। सदन में शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि भीमा-कोरेगांव हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है। महाराष्ट्र सरकार की भूमिका संयमित रही। वरना परिस्थिति और बिगड़ सकती थी। महाराष्ट्र में जारी जातीय हिंसा का मुद्दा बुधवार को भी संसद के दोनों सदनों में छाया रहा था। कांग्रेस ने राज्यसभा और लोकसभा में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। उसने हिंसा के लिए भाजपा और आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया था। भाजपा ने भी कांग्रेस पर अंग्रेजों की तरह ‘बांटो और राज करो’ की नीति अपनाते हुए देश को जातिगत आधार पर बांटने का आरोप लगाया था। गुरुवार को राज्यसभा में कांग्रेस एवं बसपा ने इस मुद्दे को उठाकर एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश की। शून्यकाल शुरु होते ही बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद और कई विपक्षी सांसदों ने मामले पर बोलने की इजाजत मांगी। बता दें कि सोमवार को महाराष्ट्र के पुणे के पास आयोजित होने वाले भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान में हिंसा भड़क उठी थी।
संसद में किसने क्या कहा:-
ब्रिटिश फौज में महार रेजीमेंट थी, जो आज भी हमारी फौज में है। वह देश की रक्षा करने वाली रेजीमेंट है। उसने पेशवा को हराया था। जहां हराया था, वहां दलित समुदाय के लोग वर्षों से एकत्रित होते हैं। मैं 50 साल से खुद जानता हूं कि रास्ते में जितने भी गांव हैं, उनके निवासी वहां आने वाले दलितों की मदद करते हैं, सुविधाएं देते हैं। लेकिन इस बार हिंसा हो गई। कुछ कम्युनल लोगों ने वहां जाकर हिंसा की, जिनके मैं नाम नहीं लेना चाहता। इनके खिलाफ केस हुआ, जांच हो रही है, इसलिए इन पर ज्यादा बोलना ठीक नहीं है।
शरद पवार, एनसीपी सुप्रीमो और सांसद
महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, वह दुखद है। जो लोग ज्यादा बातें कर रहे हैं, उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है। हालात और भी खराब हो सकते थे, लेकिन राज्य सरकार ने प्रभावी कदम उठाए। ब्रिटिश नीति डिवाइड एंड रूल की रही है, वही काम अब भी जारी है। मुंबई में जो परिस्थिति बनी, वह आर्थिक शहर को खत्म करने की साजिश थी। राज्य सरकार ही नहीं, केंद्र को ध्यान देना चाहिए।
संजय राउत, शिवसेना सांसद
जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद ने वहां भड़काऊ भाषण दिए, जिसके कारण महाराष्ट्र का वातावरण बिगड़ा। दलितों पर जो अत्याचार हुआ है, उसकी निंदा होनी चाहिए।
अमर शंकर साबले, बीजेपी सांसद
31 दिसंबर को मैं कोरेगांव गया था। तब दोनों समाजों के लोगों में मेल मिलाप था। इस हिंसा के पीछे जो भी हों, उन पर कड़ी कार्रवाई हो। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कार्रवाई का भरोसा दिया है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। देश में 45 हजार दलितों पर हर साल अत्याचार होता है। हमें उसका विरोध करना चाहिए।
रामदास अठावले, आरएसपी नेता और केंद्रीय मंत्री
हम लोग इस घटना की निंदा करते हैं। दलितों को महाराष्ट्र में दबाया जा रहा है। कुछ लोगों की नीति दलितों को दबाने वाली है। जब से केंद्र में एनडीए की सरकार आई है, संघ जैसे संगठन ताकतवर हो गए हैं। इनके निशाने पर अल्पसंख्यक एवं दलित हैं।
डी. राजा, सीपीआई सांसद
सरकार सताए हुए तबकों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। महाराष्ट्र हिंसा की न्यायिक जांच होनी चाहिए। उन संगठनों पर पाबंदी लगनी चाहिए, जो हिंसा फैलाते हैं।
कनिमोझी, डीएमके सांसद
क्या है भीमा कोरेगांव की लड़ाई?
भीमा कोरेगांव की लड़ाई एक जनवरी-1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास हुई थी। यह लड़ाई महार और पेशवा सैनिकों के बीच लड़ी गई थी। महार अंग्रेजों की तरफ से लड़े थे। इस टुकड़ी में 450 महारों समेत कुल 500 सैनिक थे और दूसरी तरफ पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना में 28 हजार सैनिक थे। सिर्फ 500 सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली फौज को हरा दिया था। युद्धस्थल पर अंग्रेजों ने जयस्तंभ बनवाया था। यह लड़ाई में अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों की याद में बनवाया गया था। 1927 में यहां डॉ. भीमराव अंबेडकर पहुंचे थे। उसके बाद से दलित इस स्थल को प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर देखते हैं। वे एक जनवरी को हर साल वहां अपने सैनिकों के शौर्य को याद करने के लिए एकत्रित होते हैं।

 

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