नई दिल्ली,अभी हाल के दिनों में रेलवे में तत्काल टिकट बुकिंग धांधली मामले का खुलासा हुआ था अब इस मामले में सीबीआई ने इंटरपोल के माध्यम से अमेरिका और रूस को पत्र लिखा है। पत्र में उन सर्वरों के बारे में सूचना मांगी गई है जिसमें सीबीआई के गिरफ्तार सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर ने रेलवे की तत्काल टिकट बुकिंग प्रणाली में सेंध लगाने के लिए अपने अवैध सॉफ्टवेयर का संचालन किया था।
सूत्रों ने बताया कि शुरुआती जांच में पता चला है कि सीबीआई में सहायक प्रोग्रामर अजय गर्ग और उसके साथी अनिल गुप्ता ने अपने अवैध सॉफ्टवेयर के लिए अमेरिका स्थित सर्वर का सहारा लिया। वहीं पकड़ में आने से बचने के लिए ई-मेल रूसी सर्वर पर तैयार किए थे। उन्होंने कहा कि इन लोगों के बनाए गए सॉफ्टवेयर का एक सर्वर होस्ट होता था। यूजर्स इसतक अजय और अनिल के दिए गए यूजर नेम तथा पासवर्ड के जरिये पहुंच सकते थे। दोनों अपने सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के लिए ट्रैवल एजेंटों से 1,000-1,200 रुपये वसूलते थे। सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि आरोपियों द्वारा बनाया गया सॉफ्टवेयर ‘निओ’ अमेरिका स्थित एक सर्वर से संचालित होता था। ऐसा उनके सर्वरों पर ट्रैफिक की गति बढ़ाने और पकड़ में आने तथा एजेंसियों की जांच से बचने के लिए किया गया। एजेंसी ने अमेरिका और रूस स्थित इन बैक-एंड सर्वरों के बारे में ब्यौरा मांगने के लिए इंटरपोल से संपर्क किया है।
बता दें कि इस तत्काल टिकट मिलने में हो रही असुविधा के पीछे बड़े घोटाले का बड़ा पर्दाफाश हुआ था। सॉफ्टवेयर के सहारे तत्काल टिकटों की एक साथ बुकिंग के कारण मिनटों में टिकट खत्म हो जाया करते थे। हैरानी की बात यह है कि यह सॉफ्टवेयर भी सीबीआई के ही असिस्टेंट प्रोग्रामर अजय गर्ग ने बनाया था।
इस घोटाले में सॉफ्टवेयर के माध्यम से ही अजय गर्ग एक-एक टिकट की जानकारी रखता था और उसी के हिसाब से अपना कमीशन लेता था। सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गर्ग अपना हिस्सा भी हाईटेक अंदाज में लेता था।अनिल कुमार गुप्ता से वह बिटक्वाइन में हिस्सा लेता था। कभी भी नकदी की जरूरत पड़ने पर हवाला के जरिये भी पैसे मांगा लेता था। यही नहीं,जब भी अनिल कुमार गुप्ता दिल्ली आता था,तो वह सीधे नकद भी गर्ग को हिस्सा दे देता था। सीबीआई को मिली जानकारी के अनुसार अजय गर्ग का यह खेल पिछले एक साल से जारी था। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यूपीएससी के मार्फत सीबीआई में आने के पहले अजय गर्ग आइआरसीटीसी में प्रोग्रामर था। आईआरसीटीसी में 2007 से 2011 के बीच नौकरी करते हुए उसने उसकी वेबसाइट की खामियों को पहचाना और नया सॉफ्टवेयर बनाकर उसे कमाई की साजिश में जुट गया।