जबलपुर,एसटीएफ के हत्थे चढ़े अवैध हथियारो की तस्करी करने वाले अंतर्राज्जीय गिरोह ने कई राज उगले है। 10 सालो से फल फूल रहे इस अवेध धंधे के तस्करों ने ऐसा जाल बिछा दिया कि एसटीएफ को भी जॉच करने में समय लग रहा है। इस मामले में एक और नया मोड़ आ गया है। जिसमे कई रसूखदार लोगो के नाम सामने आने के बाद जांच को जबलपुर से भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया है। जबलपुर एसटीएफ प्रभारी के अनुसार जल्द ही मामले में बड़ा खुलासा होने वाला है। इस फर्जीवाड़े में इंदौर भोपाल ग्वालियर सागर दमोह समेत अन्य जिलो के कई शास्त्र विक्रेताओं के शामिल होने के सबूत मिले है। एसटीएफ प्रभारी ने बातचीत मे ये खुलासा किया है कि गिरोह के सरगनाओ ने कई बड़े लोगो के नाम उगले है जो अब एसटीएफ की रडार पर है।
-ये था पूरा मामला
अक्टूबर माह मे स्पेशल टास्क फोर्स(एसटीएफ) ने एक अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया था जो अवैध हथियारों का धंधा करता था। एसटीएफ की टीम ने गिरोह के चार सदस्यों को अवैध हथियारों के जखीरे के साथ गिरफ्तार किया। पुलिस ने आरोपियों के पास से 8 नग पिस्टल 12 बोर की तीन राइफल और 430 जिंदा कारतूस बरामद किए ,इसके साथ ही 121 फर्जी बंदूकों के लाइसेंस और फर्जी सील भी बरामद की थी। एसटीएफ के मुताबिक पिछले लंबे समय से मध्य प्रदेश में अवैध हथियारों के धंधे की खबरें मिल रही थी जिस पर लंबे समय से एसटीएफ आरोपियों के पीछे लगा हुआ था इस दौरान पुलिस को सूचना मिली की डोनाल्ड देवन जैकब नाम का एक शक्स लंबे समय से अवैध हथियारों की खरीद फरोक्त में लिप्त है जिसका पीछा और मुखबिरी करने पर पुलिस ने मुख्य आरोपी डी डी जैकब और मनीष एडबिन को गिरफ्तार किया। साथ ही इनके एक साथी शेख साजिद को भी दमोह से गिरफ्तार किया गया। तीनों ही आरोपियों के पास से बड़ी मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं यह आरोपी अब तक प्रदेश भर में 200 से ज्यादा हथियारों को बेच चुके हैं पुलिस ने बताया इस गिरोह के सभी सदस्य देश में सक्रिय हैं जिनकी सरगर्मी से तलाश की जा रही है पुलिस ने बताया कि आरोपी उत्तरप्रदेश और दूसरे राज्यों से हथियारों को लाते थे और प्रदेश में फर्जी लाइसेंस बनाकर बेच दिया करते थे आरोपियों ने बड़ी चालाकी से लाइसेंस बनाना भी सीख लिया था क्योंकि मुख्य आरोपी जैकब पहले हथियारों की एक दुकान में काम भी कर चुका था। साफ है कि अवैध हथियारो का ये धंधा बेपर्दा होने से कई सवाल खड़े हो रहे थे और जैसे- जैसे आरोपियों पर शिकंजा कस रहा था, वैसे- वैसे कई कड़िया खुल रही थी। इसी बीच मामले में शुरुआत से कार्यवाही कर रही एसटीएफ प्रभारी हरिओम दीक्षित से जांच छीनकर भोपाल ट्रांसफर करना कई सवाल खड़े कर रहा है।
-क्या फर्जीवाड़े में राजनैतिक या रसूखदार लोगो के नाम सामने आने के बाद इसे दबाने का प्रयास शुरू हो गया है?
-क्या शुरुआत से फर्जीवाड़े को उजागर करने और निष्पक्षता के साथ काम कर रहे अधिकारी पर पुलिस के आला अधिकारियों को भरोसा नही था ?
-क्या राजनीतिक दवाब में जांच को ट्रांसफर कर दिया गया ?
लाज़मी है बंदूक रखने वाले कुछ ही लोग होते है जिनमे रसूखदार, राजनैतिक हस्तियां अधिक होती है। अब देखना होगा कि क्या मामले में निष्पक्ष जांच हो पाएगी।