भोपाल, अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करना अब सरकारी अधिकारी-कर्मचारी को भारी पड़ेगा। ऐसे अधिकारियों-कर्मचारियों की प्रदेश सरकार अब तनख्वाह काटने की तैयारी कर रही है। यह राशि अभिभावकों के खातों में जमा कराई जाएगी, ताकि वे अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा कर सकेंगे। इस फैसले के दायरे में निगम, मंडल, आयोग सहित ऐसी सभी संस्थाओं के कर्मचारी आएंगे, जहां सरकार की अंशपूंजी लगी है। इन सभी को इस नियम के मद्देनजर शासकीय कर्मचारी माना जाएगा। इसके लिए माता-पिता भरण पोषण अधिनियम के नियमों में बदलाव किया जा रहा है। माता-पिता भरण पोषण अधिनियम में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (एसडीएम) को दस हजार रुपए तक जुर्माना लगाने का अधिकार है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई भी होती है पर शासकीय कर्मचारी की तनख्वाह काटने जैसा प्रावधान नहीं है। नियमों में संशोधन करके यह व्यवस्था की जा रही है कि यदि अधिकारी या कर्मचारी को लेकर इस तरह की शिकायत मिलती है तो अभिकरण (कलेक्टर) दस हजार रुपए प्रतिमाह वेतन से काटकर अभिभावक के खाते में जमा करा सकेंगे। इसके लिए बाकायदा आदेश पारित होगी।
यदि किसी माता-पिता के चार पुत्र हैं और चारों ही शासकीय सेवा में हैं तो सबकी जिम्मेदारी मानते हुए दो-दो हजार रुपए प्रत्येक के वेतन से काटने का फॉर्मूला भी लागू किया जा सकता है। सरकारी कर्मचारी, यदि इस तरह का बर्ताव करते हैं तो उनके वेतन में से सीधे दस हजार रुपए काटकर अभिभावकों के खाते में जमा कराए जाएंगे। इसके लिए भी नियम बदले जा रहे हैं। आसाम सरकार ने ‘अभिभावक जवाबदेही एवं निगरानी विधेयक-2017″ पारित किया है। इसमें यह प्रावधान है कि यदि राज्य सरकार के कर्मचारी अपने अभियावक या दिव्यांग भाई-बहनों की देखभाल नहीं करते हैं तो उनके मासिक वेतन में से 10 फीसदी की कटौती की जाएगी। सामाजिक न्याय मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि कई बार सुनने में आता है कि जमीन, घर और गहने बेचकर बच्चों को पढ़ाने वाले माता-पिता को बुढ़ापे में दर-दर भटकना पड़ता है। हजारों-लाखों रुपए का वेतन हर माह पाने वाले कई बच्चों के माता-पिता तो वृद्धाश्रम में जीवन गुजारते हैं। यह सामाजिक और नैतिक अपराध है। पाश्चात्य संस्कृति में यह होता होगा पर श्रवण कुमार जैसे बेटे वाले देश में इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।