देहरादून,बदरीनाथ मंदिर के कपाट रविवार को सूरज ढ़लने के साथ ही छह महीने के लिए बंद हो गए। कपाट बंद होने से पूर्व की प्रक्रिया के तहत 15 नवंबर को भगवान गणेश के कपाट विधि विधान के साथ बंद कर दिए गए थे। शनिवार को बदरीनाथ मंदिर के पास ही लक्ष्मी मंदिर में विराजमान भगवती लक्ष्मी को न्यौता दिया गया था कि वह कपाट बंद होने से पूर्व भगवान के सानिध्य में विराजें। रविवार शाम जब मंदिर के कपाट बंद हुए, तो भगवान का हजारों फूलों से श्रृंगार हुआ। बदरीनाथ धाम से महज दो किलोमीटर दूर देश का आखिरी गांव माणा है। वहां की क्वारी लड़कियों पर भी एक अहम जिम्मेदारी है। जिस दिन कपाट बंद होते हैं, उसी दिन इस गांव की क्वारी लड़कियां स्थानीय ऊन से एक शॉल बनाती हैं। इसे स्थानीय भाषा में बीना कम्बल कहते हैं। इस बीना कम्बल को भगवान को घी का लेप लगाने के बाद पहनाया जाता है। अगले छह महीने तक भगवान इस कंबल को ही ओढ़े रहते हैं। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि शीत काल में बर्फ पड़ने पर भगवान को ठंड न लगे। मंदिर समिति के पास बाकी व्यवस्थाओं का चार्ज भले ही हो, लेकिन अब भी इस धाम में उन्हीं नियमों का पालन किया जाता है, जो शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए थे।