छतरपुर,जलाभावग्रस्त जिला घोषित करने के साथ ही कलेक्टर ने 200 मीटर की दूरी पर ट्यूबवेल खनन में प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन जमीं से पानी निकलने का काम नहीं रुक रहा। आमतौर पर मशीनों को पकडऩे के लिए पुलिस तुरंत सक्रिय हो जाती है इसलिए एक रात उत्खनन करने के बदले पुलिस को डेढ़ से दो हजार रूपए देने पड़ते हैं।
सूत्रों का कहना है कि जिले में करीब आधा सैकड़ा बोरिंग मशीनें दिन-रात ट्यूबवेल उत्खनन में लगी हैं। कलेक्टर के आदेश को लागू करने में राजस्व और पुलिस विभाग का महत्वपूर्ण रोल होता है। राजस्व विभाग को जब जानकारी मिलती है तब इस पर कार्यवाही की जाती है लेकिन पुलिस विभाग कार्यवाही करने के बजाय अपनी कमाई करने में लगा है जिस गांव में बोरिंग मशीनें ट्यूबवेल उत्खनन करती हैं उस क्षेत्र के बीट प्रभारी को नजराने के तौर पर राशि उपलब्ध कराई जाती है ताकि कोई गाड़ी न पकड़ सके। सूत्रों की मानें तो जिले भर में मशीनें ट्यूबवेल उत्खनन कर रही हैं। सूत्रों का कहना है कि राजस्व विभाग अभी ट्यूबवेल उत्खनन करने वाली मशीनों पर विशेष ध्यान नहीं दे रहा।
अन्य मामलों में पुलिस रोती है स्टाफ का रोना
ध्यान देने वाली बात यह है कि घटनाओं की जानकारी के बावजूद समय पर पुलिस नहीं पहुंचे और जब उससे सवाल किए जाएं तो वह स्टाफ का रोना रोती है लेकिन ट्यूबवेल उत्खनन में सीधे वे कमाई से जुड़ते हैं इसलिए इसमें स्टाफ की कमी का सवाल ही नहीं है। खासतौर से जमीनी मामलों को सुलझाने में पुलिस की जो भूमिका होनी चाहिए वह दिखाई नहीं देती। कई ऐसे उदाहरण हैं जहां समय पर पुलिस नहीं पहुंची। परिणामस्वरूप कई घटनाएं भी घटित हो जाती हैं। ऐसा भी देखने में आता है कि पुलिस की आंखों के सामने घटना हुई और उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। इसका जीताजागता उदाहरण सरवई बस स्टेण्ड के पास एक व्यक्ति को बड़ी बेरहमी से मारा गया था और इस घटना को डायल 100 के तत्कालीन स्टाफ द्वारा देखी भी गई थी।
इनका कहना है-
प्रशासन को जैसे ही जानकारी मिल रही है वह कार्यवाही कर रहे हैं। मैंने एसडीएम और तहसीलदार को सख्त निर्देश दिये हैं, जो टीमवार तरीके से निरीक्षण भी कर रहे हैं। इसके अलावा जानकारी मिलने पर तत्काल कार्यवाही की जाएगी। – रमेश भंडारी, कलेक्टर, छतरपुर
एक रात के डेढ़ हजार दो और ट्यूबवेल का खनन कराओ
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