नई दिल्ली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि यदि भारत को विश्वगुरू बनाना है और उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पानी है तो हम सभी को पंथ-संप्रदाय का भेद किये बिना सिखों के दशम गुरू गुरू गोविंद सिंह के आदर्शों को अपनाना होगा और देश को उनके जैसे नेतृत्व की जरूरत पहले भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। भागवत ने संघ से जुड़े सिख संगठन ‘राष्ट्रीय सिख संगत’ द्वारा गुरू गोविंद सिंह के 350वें प्रकाश वर्ष के अवसर पर यहां आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सिखों के दशम गुरू गुरू गोविंद सिंह ने समाज में वीरता जगाई थी और खालसा पंथ की स्थापना की थी। भारत के बारे में कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे प्राचीन देश है, अब तक समर्थ है और आगे भी रहेगा तो गुरू गोविंद सिंह जी हैं जिनकी वजह से ऐसा है। संघ प्रमुख ने कहा कि गुरू गोविंद सिंह ने बलिदान का ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जिसे पूरे देश ने स्वीकार किया। इसी परंपरा को देखकर ध्यान में आता है कि उनकी वजह से ही भारत इतना समर्थ है और यदि यदि भारत को विश्वगुरू बनाना है तो समाज में किसी पंथ, संप्रदाय, भाषा और प्रांत का भेद किये बिना हम सभी को गुरू गोविंद सिंह जैसा बनना होगा। हमें उनके चरित्र का अध्ययन करना होगा और हम उनका थोड़ी भी अंश अपना सकें तो यह काम संभव हो जाएगा। भागवत ने कहा, ‘‘उनके नेतृत्व की वजह से भारत तब इतना समर्थ था। उनके जैसे नेतृत्व की आवश्यकता आज भी है, आगे भी रहेगी। यह काम हमें निरंतर करते रहना है।’’ संघ प्रमुख ने सिखों के प्रथम गुरू गुरू नानक से लेकर दसवें गुरू तक के कालखंड का उल्लेख किया और भारत में आये विदेशी आक्रांताओं का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय भारत में पश्चिम से जो आक्रांता आये थे, वे अहंकारी थे और मानते थे कि वो ही सही हैं। जबकि हमारे देश की संस्कृति ‘हम भी सही, तुम भी सही और मिलकर चलने’ वाली है। भागवत ने कहा कि तब के गुरू हिंदू मुसलमान का भेद नहीं करने को कहते थे। आक्रांता कोई भी हो, तब लड़ाई अच्छे और बुरों की थी, संतों और दुष्टों की थी। यह भारत को बचाने की बात थी। गुरू नानक जी के समय से ही यह बात चली।