नई दिल्ली,देश में पहले से ही सरकारी अस्पतालों में छह लाख डॉक्टरों की कमी है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या महज एक लाख के करीब रह जाने का अनुमान लगाया गया है। इनमें से भी बड़े पैमाने पर सरकारी सेवा छोड़ रहे हैं। केंद्र सरकार के मुताबिक एम्स से लेकर जिला अस्पताल तक के डॉक्टर निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। इसके मद्देनजर उसने राज्यों को आगाह किया है कि वे डॉक्टरों की सेवा शर्तो एवं वेतन में सुधार करें, अन्यथा डॉक्टरों का संकट बढ़ सकता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद के अनुसार सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या घट रही है। क्योंकि राज्यों में स्थाई नई भर्तियां बंद हैं। राज्य सरकारें पैसा बचाने के लिए अस्थाई डॉक्टर नियुक्त करती हैं। कई राज्यों में यह वेतन भी समय पर नहीं मिलता। ऐसे में उन्हें सरकारी सेवा छोड़ने से रोकना संभव नहीं है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट-2015 के अनुसार सरकारी अस्पतालों में तैनात एलोपैथी डॉक्टरों की संख्या मात्र 1.06 लाख रह गई थी। प्रसाद के अनुसार निजी अस्पतालों के विस्तार के कारण सरकारी डॉक्टरों को निजी क्षेत्र में अच्छे पैकेज मिल रहे हैं। इसलिए यह संख्या और घट सकती है।
स्वास्थ्य मंत्रालय का अनुमान है कि 2,500-3,000 डॉक्टर हर साल सरकारी सेवा छोड़ रहे हैं। इनमें सेवानिवृत्त होने वाले डॉक्टर, विदेश गए और निजी क्षेत्र में जाने वाले डॉक्टर शामिल हैं। कुछ अपने अस्पताल खोलने के कारण भी सरकारी नौकरी छोड़ देते हैं। एम्स से नौकरी छोड़ने वाले डॉ. राजवर्धन आजाद के मुताबिक सरकारी सेवा छोड़ने के तीन कारण हैं। पहला काम और प्रोन्नति के बेहतर मौके नहीं मिलना। दूसरा अपना अस्पताल या क्लीनिक शुरू करना। तीसरा अधिक पैसे के लिए निजी क्षेत्र में जाना।
बडी संख्या में नौकरी छोड़ रहे डॉक्टर, सेवा शर्तो में सुधार हो, नहीं तो बढ़ेगा संकट-केंद्र
