रायपुर, छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र ढ़ाई रोज में खत्म हो गया। विपक्ष हंगामा मचाता रहा और सरकार ने अप्रत्याशित रफ्तार दिखाकर ढेर सारे विधेयक ध्वनिमत से पारित करवा लिये। आलम यह कि पेश किये गये प्रत्येक विधेयक को पारित होने में बमुश्किल दो मिनट का समय लगा। ग्यारह रोज के लिए आहूत सत्र के पहले और दूसरे दिन विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। सिंचाई मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के परिवार से जुड़े जमीन मामले में उनकी खिंचाई की। सत्ता पक्ष ने विपक्ष को उसी के अंदाज में जवाब दिया। तीसरे रोज भी विपक्ष अपनी रणनीति के तहत सत्ता पक्ष को घेरते हुए शोर मचा रहा था तब सरकार ने सदन में अपना जरूरी काम निबटाया और इसके बाद बीच में ही एकाएक सत्र अवसान हो गया। विपक्ष इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए राज्यपाल से शिकायत करने पहुंचा। छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रमुख भूपेश बघेल ने आरोप लगा दिया कि सरकार पनामा पर चर्चा से डर गई और अधबीच में सत्र खत्म करा दिया। जनता कांग्रेस के विधायक अमित जोगी, जो कि कांग्रेस के हो-हल्ले को भाजपा और कांग्रेस की साठगांठ के रूप में देख रहे थे, वे सत्र खत्म होने पर एक कांग्रेसी विधायक सियाराम कौशिक तथा एक निलम्बित कांग्रेसी विधायक आर.के. राय के साथ सदन के गर्भगृह में धरने पर बैठ गये। छत्तीसगढ़ विधानसभा के इतिहास में पहली दफा मार्शल का उपयोग हुआ और इन तीनों विधायकों को बाहर कर दिया गया। देश के तमाम राज्यों की विधानसभाओं में कई मौकों पर मार्शलों का उपयोग होता रहा है। लेकिन ३ अगस्त २०१७ के पहले तक छत्तीसगढ़ विधानसभा इस मामले में अपवाद रही। जाहिर है कि अब आगे आने वाले समय में मार्शलों को सेवा का अवसर मिलेगा। बीते सत्रह वर्षों से वे इस सेवा के लिए तरसते रहे। अब तक कभी उनका उपयोग करने की नौबत नहीं आई तो इसे छत्तीसगढ़ की संसदीय व्यवस्था के अनुपम उदाहरण के रूप में देखा जाता था। मगर बदलते वक्त के साथ यहां भी बदलाव हो ही गया। विपक्ष ने भी गर्भगृह में आकर अपनी मर्यादा तोड़ी। अब वह सत्ता पक्ष पर आरोप लगा रहा है कि उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था का गला घोंट दिया। इधर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कह रहे हैं कि सदन चर्चा के लिए है। हंगामे के लिए नहीं। हम चर्चा के लिए तैयार थे लेकिन विपक्ष हल्ला कर रहा था। संसदीय कार्यमंत्री अजय चंद्राकर ने भी विपक्ष को नकारात्मक ठहराया है। विपक्ष का मत है कि सरकार चर्चा से भाग रही थी। सरकार का पक्ष है कि विपक्ष नियमों के दायरे में रहकर चर्चा के लिए तैयार होने की बजाय सदन की कार्यवाही में बाधक बन रहा था। अब पूरे घटनाक्रम पर नजर डाली जाये तो लगता है कि विपक्ष ने सरकार को घेरने का सुनहरा मौका खो दिया। अगर वह सदन में शोरगुल मचाने की बजाय चर्चा के लिए वैकल्पिक उपायों का इस्तेमाल करता तो वह अपने मकसद में कामयाब हो जाता। अब उसनें गेंद खुद ही सरकार के हाथ में थमा दी है। सदन का समय बहुत कीमती होता है। इसका एक-एक क्षण जनहित के मुद्दों पर उपयोग होना चाहिए। सरकार को सवालों के घेरे में लाने के लिए विपक्ष के पास सर्वोत्तम मंच सदन ही है। यहां विपक्ष से कई चूक हुई। एक तो उसके दो विधायक जनता कांग्रेस के साथ खड़े नजर आये। अब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने से भी कुछ बनने वाला नहीं है। नेता प्रतिपक्ष ने स्वयं संकेत दिया कि विपक्ष को शोरगुल मचाने से रोकना उनके बस में नहीं है। सत्ता पक्ष ने इस मामले में विपक्ष को घेर दिया। विपक्ष अगर संयम से काम लेता तो आखिर सत्ता पक्ष चर्चा से वैâसे बच सकता था। तमाम ज्वलंत मुद्दों पर किसी न किसी रूप में, किसी सीमा तक चर्चा का रास्ता निकाला जा सकता था। मगर विपक्षी हंगामे ने सरकार को राहत की सांस लेने का रास्ता दिखा दिया। विपक्ष के ढाई रोज के हंगामे को जनता ने देखा है। वह तो खुद को ठगा सा महसूस करेगी कि इस सियासी तमाशे में उससे जुड़े कई मुद्दे अनसुने रह गये।