नई दिल्ली,बिल्डरों की मनमानी से निजात दिलाने के लिए बनाए गए रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (आरईआरडीए) के तहत मंगलवार से बिना नियामक की मंजूरी कोई नई रियल एस्टेट परियोजना शुरू नहीं की जा सकेगी। इसके बाद भी कुल चार राज्यों मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब ने ही अपने यहां नियामक की नियुक्ति की है। स्थिति यह है कि दिल्ली तक में अब तक नियामक की नियुक्ति नहीं की गई है। दिल्ली में डीडीए के उपाध्यक्ष फिलहाल अंतरिम रेग्युलेटर के तौर पर काम कर रहे हैं। स्थिति यह है कि देश के 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक न तो स्थायी नियामक की नियुक्ति की है और न ही कोई अंतरिम व्यवस्था की है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल संसद ने रियल एस्टेट कानून पारित किया था। उसके बाद इस कानून को कई चरणों में लागू किया जाना था। इस कानून के तहत सभी राज्यों को रियल एस्टेट कानून आधिसूचित करने के साथ-साथ राज्य में नियामक की नियुक्ति करनी थी। लेकिन, मध्यप्रदेश, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र को छोड़कर किसी भी राज्य ने अब तक स्थायी नियामक नियुक्त नहीं किया है। विनियामक की नियुक्ति इस लिए जरूरी है, क्योंकि नई व्यवस्था के तहत मंगलवार के बाद से पहले से चल रही परियोजनाएं भी इसके दायरे में आ जाएंगी। नई व्यवस्था के हिसाब से चालू परियोजनाओं को भी नियामक के यहां पंजीकृत कराना जरूरी है, लेकिन दिक्कत की बात यह है कि अनेक राज्यों में अब तक नियामक बने ही नहीं हैं। वहां यह कानून किस तरह से लागू होगा, इसे लेकर केंद्र सरकार भी चुप है। कुल 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ही अब तक अंतरिम विनियामक की व्यवस्था की है।
स्थिति यह है कि देश के कुल राज्यों में से अब तक 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इससे संबंधित अधिसूचना जारी कर दी गई है, जबकि छह राज्यों ने अब तक नियमावली ही तैयार की है, इन्हें अधिसूचित नहीं किया है। महाराष्ट्र में विनियामक के पास रियल स्टेट परियोजाओं को पंजीकृत करने के 3, 700 आवेदन आए हैं, जबकि मध्यप्रदेश में अब तक 700 आवेदन प्राप्त हुए हैं। कर्नाटक में आवेदनों की संख्या 202 है। केंद्र सरकार के अफसरों का कहना है कि संसद ने कानून पारित कर दिया है और केंद्र सरकार जो सहायता दे सकती है, वह दे रही है। पूर्व आवास और शहरी विकास मंत्री एम.वैंकेया नायडू बीते कुछ महीने से लगातार राज्यों को पत्र लिखकर चेता रहे थे कि इस दिशा में फौरन कदम उठाते हुए नियामक नियुक्त किया जाए, ताकि खरीददारों को बिल्डरों की मनमानी से राहत मिल सके।