सिडनी, वैज्ञानिकों को प्रशांत महासागर में कांच जैसा पारदर्शी दुर्लभ ऑक्टोपस देखने मिला है। समुद्री जीव विज्ञानियों का एक समूह पिछले 34 दिनों से ऑस्ट्रेलिया के सिडनी से 5100 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित फीनिक्स आइलैंड के आसपास समुद्री रिसर्च में लगा है। वहीं पर इन्होंने समुद्री जीवन को समझने के लिए रोबोट को समुद्र के अंदर डाला। इस रोबोट के कैमरे में यह ऑक्टोपस तैरता हुआ दिखाई दिया।
कांच जैसे अन्य पारदर्शी जीवों जैसे- ग्लास फ्रॉग, कॉम्ब जैली की तरह ही यह ऑक्टोपस भी पूरी तरह ट्रांसपैरेंट ही था। सिर्फ उसकी आंखें, उसकी नसें और खाने की नली अपने असली रंग और आकार में थे।समुद्री जीव विज्ञानियों को यह कांच जैसा पारदर्शी ऑक्टोपस दो बार दिखा। दूसरी बार वाले का रंग थोड़ा अलग था। ये कुछ लाल रंग का था। ऐसा पहली बार हुआ है कि वैज्ञानिकों के पास इन सीफैलोपोड्स की स्पष्ट तस्वीर है। नहीं तो इससे पहले इनकी तस्वीर या वीडियो मिलना मुश्किल होता था। वैज्ञानिक ने जब इनका अध्ययन किया तो यह अपने पारदर्शिता या ट्रांसपैरेंसी का फायदा शिकार और शिकारियों को धोखा देने के लिए करता है।इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के मुताबिक ग्लास ऑक्टोपस की खोज 1918 में हुई थी।
इस जीव के बारे में अब तक बहुत कम जानकारी ही वैज्ञानिकों के पास है। यह आमतौर पर मीसोपिलेजिक यानी ट्विलाइट जोन में रहता है। यह जोन 656 से 3280 फीट की गहराई को कहा जाता है। लेकिन कई ग्लास ऑक्टोपस 3280 से 9800 फीट की गहराई में रहते हैं। इसे बैथीपिलेजिक यानी मिडनाइट जोन कहते हैं। अभी जो ग्लास ऑक्टोपस खोजा गया है यह मिडनाइट जोन में तैर रहा था। एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लास ऑक्टोपस की आंखों का विकास सिलेंडर जैसी आकृति में इसलिए हुए है ताकि यह कम रोशनी में भी शिकार और शिकारियों को देख सके। यह जानवरों द्वारा दूसरे जीवों को धोखा देने की एक प्रणाली है।
जिस साइंटिफिक जहाज ने इस बार ग्लास ऑक्टोपस की खोज की है, उसका नाम है वेसल फाल्कोर।वेसल फाल्कोर को गूगल के पूर्व सीईओ एरिक श्मिट और वेंडी श्मिट की गैर-सरकारी संस्था श्मिट ओशन इंस्टीट्यूट चलाता है। इस जहाज पर इस वक्त बोस्टन और वुड्स होल ओशियेनोग्राफिक इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट रिसर्च कर रहे हैं। इस रिसर्च टीम ने सुबास्टियन रोबोट को समुद्र में 21 बार भेजा। इस रोबोट ने समुद्र के अंदर करीब 182 घंटे बिताए।