भोपाल,नृत्य जीवन के आनंद की अनुभूति कराते हैं। फिर चाहे वे लोक नृत्य हों या शास्त्रीय नृत्य। भारतीय नृत्य-कला हमारी धर्म और संस्कृति से जुड़ी है इसलिए यह और भी आनंददायी हो जाती है। खजुराहो नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन मंगलवार को ऐसे ही आनंद की अनुभूति हुई। श्रीलक्ष्मी गोवर्धनन के कुचिपुड़ी ,मैथिल देविका और संगियों के मोहिनीअट्टम तथा वैभव आरेकर एवं साथियों के भरतनाट्यम नृत्य की चपल थिरकन से एक बार फिर खजुराहो का वैभव दमक उठा। साथ ही पर्यटन की साहसिक गतिविधियों में विशेष कर हॉट एयर बैलूनिंग ने पर्यटकों को रोमांच से भर दिया। पर्यटकों ने उत्सव में ग्लैंपिंग, विलेज टूर, वॉक विद पारधी, ई-बाइक टूर, सेग-वे टूर, वाटर एडवेंचर जैसी रोमांचक गतिविधियों का मजा लिया। विशेष कर स्थानीय संस्कृति, कला और स्थानीय बुंदेली व्यंजनों के स्वाद का भी पर्यटकों ने लुत्फ उठाया।
समारोह के दूसरे दिन की शुरुआत कुचिपुड़ी नृत्य से हुई। ख्याति प्राप्त नृत्यांगना श्री लक्ष्मी गोवर्धनन ने नृत्य में लयात्मक और गत्यात्मक पद एवं अंग संचालन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुचिपुड़ी के विशेष तरंगम प्रारूप में उन्होंने कृष्ण स्तुति से नृत्य की शुरुआत की। दरअसल यह स्तुति पूतना के कथानक पर थी।पूतना को कंस ने कृष्ण को मारने के लिए भेजा था। उत्कृष्ट नृत्य-कला एवं भाव प्रवण अभिनय से श्रीलक्ष्मी ने पूतना के चरित्र को बड़े ही सलीके से निभाया। वृन्दावन में कृष्ण के आने की खुशियाँ और इन खुशियों में पूतना का खो जाना, बाल कृष्ण से मिल कर मातृत्व भाव का पैदा होना यह सब श्रीलक्ष्मी ने नृत्य भावों में ऐसे पिरोया कि दर्शक विभोर हो गए। अंत मे कृष्ण द्वारा पूतना वध करने और उसे मोक्ष प्रदान करने के अभिनय ने भी दर्शकों को एक अलग ही अनुभूति कराई।श्रीलक्ष्मी ने तरंगम से अपने नृत्य का समापन किया। कर्नाटक शैली के विभिन्न रागों और तालों से सजी यह प्रस्तुति अद्भुत थी। कुचिपुड़ी में तरंगम एक हैरत अंगेज प्रदर्शन है। इसमें श्रीलक्ष्मी ने पीतल की थाली की रिम यानी किनारी पर लयबद्ध होकर पैरों की गति को निष्पादित किया। इसमें उनका कौशल देखने लायक था। इस प्रस्तुति में नटवांगम पर वरुण राजशेखरन, गायन पर वेंकटेश्वरन, मृदंगम पर श्रीरंग सीटी एवं वायलिन पर राघवेंद्र प्रसाद ने साथ दिया।