आयोग ने आदिवासी किसान की जमीन के मामले में की पड़ताल

भोपाल, मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने दो मामलों में संज्ञान लिया है। आयोग के सदस्य मनोहर ममतानी ने यह संज्ञान लेकर संबंधित विभागाधिकारियों से समय-सीमा में जवाब मांगा है। पहला मामला भोपाल जिले का है। भोपाल का एक आदिवासी (भील जाति) किसान बीते पांच महीनों से जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण परेशान हो रहा है। नीलबड़ इलाके में रहने वाला किसान परिवार अपनी ही जमीन के सीमांकन के लिए पांच माह से जिला प्रशासन और पुलिस अफसरों के चक्कर काट रहा है, लेकिन उसकी जमीन का सीमांकन नहीं हो पा रहा है। पीड़ित राजेश भील ने बताया कि उसकी मां राधाबाई और मौसी रूकमणि बाई का खेत नीलबड़ में है। बीते कई सालों से पड़ोसी किसानों द्वारा उनकी भूमि पर अपना आधिपत्य जताया जा रहा है। इसकी शिकायत उसने पुलिस में की थी। जहां से सीमांकन कराने का सुझाव दिया गया। इसके बाद तहसील में आवेदन दिया, जहां से थाना प्रभारी परवलिया सड़क को सीमांकन के लिए पुलिस बल मुहैया कराने पत्र लिख गया, लेकिन पुलिस बल नहीं मिला। बल्कि इसके लिए उल्टे उनसे पैसों की मांग की गई। ऐसा आरोप इस किसान परिवार ने लगाया है। दो बार नोटिस जारी हो चुके हैं, लेकिन फिर भी सीमांकन नहीं हो पा रहा है। मामले में आयोग ने कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक (देहात), जिला भोपाल से प्रकरण की जांच कराकर एक माह में जवाब मांगा है।
दूसरा मामला रायसेन जिले का है। गैरतगंज में स्कूली बच्चों के खेलने से जनपद सीईओ को परेशानी होती थी, लिहाजा बीते बुधवार की शाम पूरे खेल मैदान में ट्रेक्टर से बखर चलवा दिया। इसके बाद भी छात्र और युवा खेलने पहुंच गये, तो पुलिस मय बस्ते के एक लड़के को उठा ले गई। इससे भड़के युवाओं और खिलाड़ियों ने थाना घेरा, तो पुलिस को उसे छोड़ना पड़ा। गैरतगंज में एकमात्र खेल मैदान से लगा हुआ जनपद सीईओ पूनम दुबे का सरकारी आवास है। इसी मैदान को सीईओ ने ट्रªेक्टर से हल चलवाकर खेत बना दिया। इस बारे में सीईओ ने बताया कि बच्चों के खेलने से होने वाले भारी शोर से उन्हें परेशानी होती थी। मैदान में दूसरी तरफ खेलने को कहा गया, तो बच्चों द्वारा बदतमीजी की गई। कलेक्टर ने कार्यवाही का भरोसा दिलाया है। मामले में आयोग ने कलेक्टर, रायसेन से प्रकरण की जांच कराकर 15 दिन में जवाब मांगा है।

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