भोपाल, मप्र के सरकारी मेडिकल कालेजों में करीब तीन हजार डाक्टरों की कमी है। जबकि एक हजार से अधिक पद खाली हैं। जिसकी वजह से मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ डाक्टरों के अभाव में डीन तो उससे सम्बद्ध अस्पताल में अधीक्षक के पद नहीं भर पा रहे हैं। नतीजतन प्रभारी अधीक्षक और डीन ही पोस्ट किये जा रहे हैं। उधर,प्रदेश के डेढ़ हजार से अधिक जूनियर डाक्टरों के पीजी में दाखिले पर भी संशय के बादल मंडरा रहे हैं। क्योंकि सरकारी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष की परीक्षा देर से हो रही है,जिससे परिणाम भी देर से ही आएंगे। दरअसल,मेडिकल कॉलेज में पहले से पदस्थ डाक्टरों का रुझान तेजी से निजी अस्पतालों और कॉलेजों की तरफ बढ़ रहा है। मेडिकल कॉलेज और उससे सम्बद्ध अस्पताल में डाक्टरों के स्वीकृत करीब 2890 पदों के विरुद्ध केवल 2027 पद ही भरे हैं। इसकी दो सबसे अहम वजहों में प्रशासनिक दखल और पदोन्नति के नियमों में स्पष्टता का अभाव माना जा रहा है। बीते साल भर में स्वैच्छिक सेवानिवृति और इस्तीफे से करीब तीन सौ डाक्टरों और विशेषज्ञ डाक्टरों ने नौकरी छोड़ दी है। इधर,मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश मालवीय ने कहा की मेडिकल कालेजों और उनसे सम्बद्ध अस्पतालों की दशा सुधारना है तो राजनीतिक और प्रशासनिक दखल रोकना होगा। यद्यपि अगले साल जनवरी में नीट परीक्षा आयोजित होगी लेकिन हाल में मई-जून में फाइनल ईयर की परीक्षा होने से अब इंटर्नशिप अगले साल के दाखिले तक पूरी नहीं हो पायेगी फलस्वरूप उन्हें पीजी में प्रवेश की खातिर एक साल का इन्तजार करना होगा। इस बारे में पूछने पर मेडिकल युनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक पंकज बुधौलिया ने कहा की इस बारे में एनएमसी से पत्राचार किया जायेगा।