मप्र में कल से रेत खनन पर रोक अब स्टॉक से रेत बेची जा सकेगी

भोपाल, प्रदेश में रेत खदानों में एनजीटी के निर्देश पर मंगलवार से खनन पर रोक लग जाएगी। इसको देखते हुए कंपनियों ने रेत का स्टॉक कर लिया है। नर्मदा किनारे रेत के पहाड़ नजर आ रहा है। रेत भरने के लिए मजदूरों सहित जेसीबी और पोकलेन मशीनें भी खदानों में दिनरात चल रही है। होशंगाबाद में अब तक कंपनी ने करीब 55 हजार डंपर (10 लाख घनमीटर) रेत का स्टॉक कर लिया है। खनन पर रोक लगने के बाद स्टॉक से रेत बेची जाएगी।
दरअसल, इंदौर, भोपाल में रेत की अच्छी कीमत मिलती है। वर्तमान में इंदौर में 600 फीट रेत की कीमत 45 हजार, भोपाल में 25 हजार रुपए है। एनजीटी की रोक के बाद यह रेट 35 से 40 फीसदी तक बढ़ जाते हैं।
खदानों के रास्ते होंगे बंद, निकासी पर रोक
जैसे ही एनजीटी के निर्देश पर शासन स्तर से खदानों से रेत के उत्खनन पर रोक लागू होगी, वैसे ही पिछले सालों की तरह जिला खनिज विभाग जिले की सभी खदानों के पहुंच वाले रास्तों को जेसीबी-पोकलेन से खोदकर और काटकर अवरूद्ध (बंद) करेगा। होशंगाबाद-बुधनी के बीच नर्मदा पुल के नीचे-आसपास, जोशीपुर-जर्रापुर, पड़ौसी जिले सीहोर, रायसेन, हरदा सीमा के नदी तटों पर अंधाधुंध अवैध उत्खनन और रिकॉर्ड रेत की चोरी थम नहीं रही है। होशंगाबाद में भी रेत माफिया ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और डंपरों से अभी भी रेत की चोरी कर रहे है। जिस पर रोक लगाना किसी चुनौती से कम नहीं रहेगा।
रेत ठेकेदारों को रियायत देने की तैयारी
महंगी खदानें लीज पर लेने के बाद उन्हें चला नहीं पा रहे रेत ठेकेदारों को सरकार रियायत देने की तैयारी कर रही है। इसके लिए गठित मंत्री समूह संक्षेपिका तैयार कर रहा है। जिसके आधार पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निर्णय लेंगे। इस मामले में खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह, विभाग के प्रमुख सचिव सुखवीर सिंह सहित अन्य मंत्रियों एवं अधिकारियों की मुख्यमंत्री के साथ बैठक हो चुकी है। संभावना है कि राज्य सरकार जून अंत तक ठेकेदारों के लिए कुछ रियायतों की घोषणा करेगी। प्रदेश की रेत खदानें दिसंबर 2019 में नीलाम हुई थीं। एक साल के लिए सरकार ने रायल्टी में छूट दी थी। जिसका फायदा ठेकेदार नहीं उठा पाए। अव्वल तो पर्यावरण एवं उत्खनन अनुमति लेने में देरी हो गई और जैसे-तैसे खदानें चालू करने की स्थिति में आए, तो कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन लग गया। निर्माण कार्य बंद हो गए और रेत की खपत नहीं हुई। हालांकि इस बीच खदानों से रेत चोरी का सिलसिला चलता रहा। जिससे ठेकेदारों का नुकसान बढ़ गया। ठेकेदार इसीलिए राहत की मांग कर रहे हैं।
खुद खदान छोड़ी, तो किस्त जमा नहीं कर पाए
एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा के चलते ठेकेदारों ने ऊंची बोली लगाकर खदानें तो ले लीं, पर उन्हें चला नहीं पा रहे हैं। इसके चलते प्रदेश की सबसे बड़ी नर्मदापुरम (होशंगाबाद) रेत खदान को ठेकेदार ने छोड़ दिया था। जिसे फिर से नीलाम करना पड़ा। यही स्थिति रायसेन, मंदसौर, अलीराजपुर की खदानों के साथ बनी। ठेकेदार इतनी राशि भी नहीं निकाल पाए कि रायल्टी की दूसरी किस्त जमा कर पाएं। आखिर खनिज निगम में तीनों ठेकेदारों को दी गई लीज निरस्त कर दी और नए सिरे से खदानें नीलाम करने की तैयारी चल रही है। उज्जैन और आगर-मालवा जिलों की स्थिति तो और भी खराब है। दोनों जिलों की खदानों को ठेकेदार ही नहीं मिल रहे है, जबकि निगम चार बार टेंडर जारी कर चुका है।

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