भोपाल, कोरोना की सबसे घातक दूसरी लहर में जहां एक ओर आक्सीजन के लिए तड़पते लोग अस्पतालों में जगह न मिलने पर गंभीर स्थिति का शिकार हो गए, वहीं दवाइयों के अभाव में कई लोग दम तोड़ गए। लेकिन इस संक्रमण के दानवी दौर में भी वे लोग गंभीर संक्रमण की स्थिति से बचने में कामयाब रहे, जिन्हें वैक्सीन के रूप में कोरोना कवच के रूप में मिला हुआ था। मप्र में चिकित्सकों द्वारा एक सर्वे में यह तथ्य उजागर हुआ कि जिन लोगों ने कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज लगवाए थे उनकी तादाद जहां संक्रमण के इस दौर में बेहद कम थी, वहीं वे गंभीर स्थिति से बचे रहे, जबकि केवल एक डोज लगवाने वाले भी अस्पताल कम ही पहुंचे, लेकिन उससे ज्यादा उन लोगों की तादाद रही, जिन्हें कोई वैक्सीन नहीं लगवाई थी।
कोरोना की दूसरी लहर का संक्रमण अब जहां कम होता जा रहा है, वहीं मरीजों का आकलन शुरू हो गया है। इंदौर के अरबिंदो मेडिकल कालेज के रेडियोलाजी विभाग द्वारा किए गए सर्वे में यह आश्चर्यजनक बात सामने आई कि कोरोना वैक्सीन ने जहां मरीजों की तादाद घटाई, वहीं संक्रमित हुए लोग भी गंभीर स्थिति से बचने में कामयाब रहे। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के शिकार हुए लोगों में 71.1 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी, जबकि एक डोज लगवाने वाले मरीजों की तादाद 22.8 प्रतिशत थी, लेकिन दोनों ही डोज लगवाने वाले केवल 6.1 प्रतिशत मरीज कोरोना का शिकार हो पाए।
पुरुषों को सर्वाधिक शिकार बनाया
कोरोना की दूसरी लहर ने पुरुषों को सर्वाधिक शिकार बनाया। कोरोना से संक्रमित हुए कुल मरीजों में दो तिहाई पुरुष थे और उनमें भी सर्वाधिक तादाद उन लोगों की थी, जिन्होंने वैक्सीन का यो तो कोई डोज नहीं लगाया या एक ही डोज लगवा पाए।
वैक्सीन नहीं लगवाने वालों के फेफड़े सर्वाधिक संक्रमित
सर्वे में यह बात सामने आई कि जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी उनके लंग्स सर्वाधिक संक्रमित पाए गए। इनमें से 12.8 प्रतिशत लोगों के 75 प्रतिशत फेफड़े संक्रमित होने से मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच गए, लेकिन जिन्होंने वैक्सीन के दोनों डोज लगवाए थे उनके फेफड़े 25 प्रतिशत से ज्यादा संक्रमित नहीं हो पाए।
25 से 50 प्रतिशत फेफड़े संक्रमित होने के बाद ही अस्पताल पहुंचे मरीज
अध्ययन में पाया गया कि जितने संक्रमित पहुंचे उनके लंग्स 25 से 50 प्रतिशत संक्रमित थे, जबकि कई लोग इससे भी गंभीर स्थिति में पहुंच गए। जिन मरीजों के फेफड़े 75 प्रतिशत संक्रमित थे वो थ्रोम्बोएम्बोलिसम नामक बीमारी के भी शिकार हुए, जिसमें शरीर में खून के थक्के बनना शुरू हो जाते हैं और यह थक्के हार्ट में पहुंचकर दिल की धमनियों को अवरुद्ध कर देते हैं और ऐसे में वे हार्ट अटैक के शिकार हो जाते हैं। ऐसे रोगियों को दवाइयों के जब हाई डोज दिए जाते हैं तो कई मरीजों में इन दवाइयों का साइड इफेक्ट भी नजर आने लगता है। खासतौर पर डायबिटीक, यानी शुगर के मरीजों को दूसरी बीमारियां घेरना शुरू कर देती हैं।
हाई रिस्क वालों का अब तेजी से होगा वैक्सीनेशन
शासन ने अभी हाईरिस्क वालों को तेजी से वैक्सीन लगवाने के निर्देश दिए हैं, जिसके चलते नगर निगम ने इनका वैक्सीनेशन तेजी से करवाने का निर्णय लिया है। हाथ ठेला, ऑटो, सैलून, दुकानदार, कामकाजी महिलाएं, गैस टंकी, दूध विक्रेता, पेट्रोल पम्प कर्मी, मजदूर से लेकर अन्य सभी श्रेणी के हाई रिस्क वाले 18 से 45+ के लोगों का 15 से 20 दिनों में वैक्सीनेशन करने का लक्ष्य नगर निगम ने तय किया है, जिसके लिए जोनों पर निगम के वैक्सीनेशन सेंटर भी रहेंगे।