मप्र, छग, यूपी और बिहार के गांवों में कोरोना का संक्रमण बढ़ा, अप्रैल में कोरोना से हुई मौतों में आधे से ज्यादा मौतें गांवों में हुई

नई दिल्ली,भारत में कोरोना की दूसरी लहर तबाही मचा रही है। वहीं तीसरी लहर की चेतावनी भी आ गई है। ऐसे में केंद्र सहित राज्य सरकारों के हाथ-पांव फूलने लगे हैं। इसकी वजह यह है कि दूसरी लहर में कोरोना ने शहरों से अधिक गांवों में कोहराम मचाया है। अकेले अप्रैल माह में कोरोना के कारण देशभर में हुई 46,000 मौतों में से आधी से अधिक गांवों में हुई है। अगर तीसरी लहर आती है तो गांवों में मौत का हाहाकार मच जाएगा। क्योंकि गांवों में चिकित्सा व्यवस्था न के बराबर है। जबकि शहरों से अधिक आबादी गांवों में रहती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत के लिए अप्रैल का महीना बहुत क्रूर साबित हुआ। ,देश ने अप्रत्याशित रूप से 46,000 मौतों के साथ कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) के 66 लाख से ज्यादा नए मामले दर्ज किए। महीने के आखिरी दिन, भारत एक दिन में 4,00,000 से ज्यादा नए मामले दर्ज करने वाला एकमात्र देश बन गया, जो बताता है कि यह उफान बहुत जल्द नहीं थमने वाला है। इस महीने ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि वायरस ग्रामीण जिलों में तेजी से फैल रहा है और पहली लहर के विपरीत यह इस वक्त बहुत ज्यादा लोगों की मौत का कारण बन रहा है।
दूसरी लहर का चरम आना बाकी
अप्रैल में शुरू हुए ग्रामीण अभियान के आने वाले महीनों में सिर्फ दो कारणों से बदतर होने की आशंका है। भारत में दूसरी लहर का चरम आना अभी बाकी है, के साथ स्वास्थ्य विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि मई के मध्य या उससे आगे तक संक्रमण में बढ़ोतरी का रुझान बना रहेगा। पिछले महीने पहली बार शहरी जिलों के मुकाबले ग्रामीण जिलों में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं, भले ही मामलों की कुल संख्या शहरी जिलों में ज्यादा रही। भले ही अप्रैल में सभी दिन शहरी जिलों में सबसे ज्यादा मामले रहे हों, लेकिन उनमें से 17 दिनों में सबसे ज्यादा मौतें ग्रामीण जिलों में हुईं थीं।
मौत के मामले बढऩे के कई कारण
अप्रैल में मौत के मामले बढऩे के कई कारण हैं। ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा शहरों में मौजूद ढांचे से काफी कमजोर है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत का 65 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण जिलों में रहता है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2019 के अनुसार, सरकारी अस्पतालों के सिर्फ 37 प्रतिशत बिस्तर ही ग्रामीण भारत में हैं। जांच करने और उपचार के बारे में जागरूकता की कमी और अनिच्छा के चलते ग्रामीण आबादी कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील है। इसमें अतिरिक्त चुनौती यह भी है कि सीमित जांच और नतीजे आने में देरी के कारण संक्रमितों की आधिकारिक संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में कम है। ऐसे में समुचित इलाज नहीं मिलने के कारण गांवों में अधिक मौत हो रही है।
गांव को लेकर डर
24 अप्रैल को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वीकार किया कि कोविड-19 की चुनौती इस साल बड़ी है और गांवों को प्रभावित होने से बचाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि अगर कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में कोई सबसे पहले जीत हासिल करने जा रहा है, तो वह भारत के गांव और इन गांवों की अगुवाई करने वाले हैं। गांवों के लोग देश और दुनिया को रास्ता दिखाएंगे। लेकिन आंकड़े उनके इस आशावाद को झुठलाते हंै। अप्रैल में कम से कम 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ग्रामीण जिलों में कोरोना संक्रमण और मौतें के अधिक मामले दर्ज किए गए। इस सूची में अन्य राज्यों के अलावा मप्र, छग, यूपी, बिहार और राजस्थान जैसे सबसे ज्यादा जोखिम वाले राज्य शामिल हैं। तेलंगाना और असम में भी ग्रामीण दबाव बहुत ज्यादा है। तीन अन्य राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब ने शहरी जिलों में ज्यादा मामले देखें हैं, लेकिन ग्रामीण जिलों में मौतों की संख्या ज्यादा है। महाराष्ट्र में, ग्रामीण जिलों में संक्रमण के लगभग 42 प्रतिशत और मौतों के लगभग 60 प्रतिशत मामले सामने आए हैं। उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में, कहानी ठीक विपरीत है। यहां ग्रामीण जिलों में संक्रमण के मामले ज्यादा थे, जबकि शहरी जिलों में मौतों के मामले अधिक है।
शहरों में उलझी रही सरकार और गांवों हुए बदहाल…
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर भारत के कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों को अपनी गिरफ्त में ले चुकी है, जो पहले से कहीं अधिक तेज एवं मारक है। कोरोना की इस दूसरी लहर में मरीजों की बढ़ती संख्या से विकसित एवं आधुनिक चिकित्सा सुविधा वाले प्रदेशों एवं महानगरों का स्वास्थ्य ढांचा तक चरमरा गया है, जिसमें दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, देहरादून, सूरत, चेन्नई आदि शामिल हैं। यहां मरीजों की संख्या में हुई अभूतपूर्व बढ़ोतरी से टेस्टिंग, एंबुलेंस, अस्पताल बेड, ऑक्सीजन आदि जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं कम पड़ गई हैं। साथ ही किसी आपात स्थिति को संभालने के लिए रेमडेसिविर जैसी दवाएं एवं वेंटिलेटर की उपलब्धता भी सीमित हो गई है। यह दुखद सच्चाई है कि इस बार कोरोना से जुड़ी अधिकांश मौतें समय पर आपात चिकित्सा सुविधाएं न मिलने के कारण हो रही हैं। ऐसे में गांवों को कैसे बचाया जा सकता है।
गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति
राज्य सरकारी अस्पताल में कुल बेड ग्रामीण अस्पतालों में बेड का प्रतिशत शहरी अस्पतालों में बेड का प्रतिशत हैं
भारत 713,986 37 63
पश्चिम बंगाल 78,566 25 75
तमिलनाडु 77,532 52 48
उत्तर प्रदेश 76,260 51 49
कर्नाटक 69,721 30 70
महाराष्ट्र 51,446 24 76
राजस्थान 47,054 27 73
केरल 38,004 44 56
मध्य प्रदेश 31,106 32 68
दिल्ली 24,383 0 100
आंध्र प्रदेश 23,138 28 72
तेलंगाना 20,983 37 63
गुजरात 20,172 58 42
ओडिशा 18,519 34 66
पंजाब 17,933 32 68
असम 17,142 64 36
हिमाचल प्रदेश 12,399 46 54
बिहार 11,664 47 53
हरियाणा 11,240 60 40
झारखंड 10,784 54 46
छत्तीसगढ़ 9,412 54 46
उत्तराखंड 8,512 39 61
जम्मू और कश्मीर 7,291 17 83
मेघालय 4,457 44 56
त्रिपुरा 4,429 45 55
चंडीगढ़ 3,756 0 100
पुदुचेरी 3,569 3 97
गोवा 3,012 46 54
अरुणाचल प्रदेश 2,404 89 11
मिजोरम 1,997 30 70
नागालैंड 1,880 34 66
सिक्किम 1,560 17 83
मणिपुर 1,427 51 49
मप्र के कलेक्टरों ने हमें गावों के लिए फुर्सत ही नहीं
एक तरफ मप्र के गांवों में कोरोना तेजी से फैल रहा है, वहीं दूसरी तरफ शासन-प्रशासन का पूरा फोकस शहरों पर ही है। गांवों में जांच के पर्याप्त इंतजाम नहीं होने की वजह से अभी ग्रामीण क्षेत्र के हालात नजर नहीं आ रहे हैं। जिला और संभागों के अधिकारी मंत्रालय की रोजाना होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, फरमान और शहरों में कोरोना नियंत्रण में उलझे रहते हैं। उनके पास शहर से बाहर निकलकर गांवों की स्थिति देखने का समय भी नहीं है। सरकार ने जिन जनप्रतिनिधियों को कोरोना नियंत्रण का दायित्व सौंपा है, वे भी सिर्फ बैठकों तक सीमित हैं। प्रदेश के करीब आधा दर्जन जिलों के अधिकारियों ने सामान्य बातचीत में स्वीकार किया की गांवों के लिए हमारे पास समय ही नहीं है। जिले के प्रशासनिक अफसरों का दिनभर का समय रोजाना मंत्रालय से होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंस, रेमडेसिविर इंजेक्शन का वितरण, ऑक्सीजन की व्यवस्था, दवाओं का वितरण, कानून-व्यवस्था और स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं कार्यालय की बैठकों में बीत रहा है। विपरीत हालात में भी जनप्रतिनिधि ऐसे कामों की सिफारिश कर रहे हैं, जो मौजूदा हालात में कतई अति आवश्यक नहीं है। करीब आधा दर्जन जिलों के कलेक्टरों ने चर्चा में यह स्वीकारा कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी बीमारी का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य अमला शहरों में कोविड नियंत्रण में जुटा है। ग्रामीण क्षेत्र में भी चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।

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